राज्य सेवा से आईपीएस अवार्ड में बड़ा विवाद सामने आया है। मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ आए दो राज्य पुलिस सेवा के अफसर और एक बीएसएफ के अफसर के कारण स्थानीय पुलिस अधिकारियों को प्रमोशन में नुकसान हो रहा है। बीएसएफ से राज्य पुलिस सेवा में शामिल हुए अफसर का विवाद रमन सरकार से जुड़ा है। इस वजह से राज्य सेवा के जिन 6 अफसरों को आईपीएस अवार्ड होना था, उनमें से दो पद बाहरी के कारण जा रहे हैं। रमन सरकार में स्पेशल डीजी बने जिन अफसरों को कांग्रेस सरकार ने डिमोट किया था, उन्हें फिर से प्रमोशन मिल गया है, लेकिन अब नया विवाद राज्य सेवा से आईपीएस अवार्ड से जुड़ा है। 1998 बैच के राज्य सेवा के 6 अफसरों को आईपीएस अवार्ड होना है। इनमें पहला नंबर धर्मेंद्र सिंह छवई का है। दूसरा दर्शन सिंह मरावी और तीसरा यशपाल सिंह का नाम है। इसके बाद उमेश चौधरी, मनोज खिलारी और रवि कुर्रे हैं। छवई मध्यप्रदेश पीएससी से 1996 में डीएसपी सलेक्ट हुए थे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद उन्हें यहां भेजा गया, जिसके विरोध में वे हाईकोर्ट गए थे। अब वे छत्तीसगढ़ आ गए हैं। उनके आने के पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि मध्यप्रदेश में फिलहाल 1995 बैच के अधिकारियों को ही आईपीएस अवार्ड नहीं हुआ है, जबकि यहां 1998 बैच के तीन अफसर राजेश अग्रवाल, विजय अग्रवाल और रामकृष्ण साहू आईपीएस हो गए हैं। इन सबके कारण सीडी टंडन, सुरजनराम भगत और प्रफुल्ल ठाकुर आदि पीछे रह जाएंगे। एक और अधिकारी संतोष महतो भी संविलियन में आए हैं, जो हाल ही में जांजगीर तबादले को लेकर चर्चा में आए थे।
राज्य बनने के बाद आए लेकिन 1997 कैडर
सबसे बड़ा विवाद यशपाल सिंह के छत्तीसगढ़ पुलिस कैडर में संविलियन को लेकर है। यशपाल सिंह 2010 में छत्तीसगढ़ आए थे। बीएसएफ कैडर के अधिकारी होने के बावजूद उन्हें सीधे एडिशनल एसपी बना दिया गया, जबकि डीएसपी के पद पर संविलियन होना था। राज्य गठन वर्ष 2000 में हुआ, इसलिए 1997 कैडर देने पर भी आपत्ति है। छत्तीसगढ़ स्टेट पुलिस ऑफिसर्स एसोसिएशन ने इस बात पर आपत्ति जताई है। एसोसिएशन के सदस्य मनोज खिलारी का कहना है कि दूसरे राज्यों से आए अधिकारियों के संविलियन के कारण डीएसपी कैडर के साढ़े चार सौ से ज्यादा अधिकारियों का हित प्रभावित होगा। वैसे यह विवाद जब रमन सरकार ने इन्हें शामिल किया था तब से ही चल रहा है। उस वक्त रापुसे संघ के प्रतिनिधियों ने सरकार के समक्ष कड़ी आपत्ति दर्ज कराया था।
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