प्रदेश में कोरोना का पहला लाॅकडाउन 19 मार्च से शुरू हुआ और जून मध्य तक सरकार ही नहीं, किसानों और कारोबारियों से लेकर उद्योगपतियों तथा अन्य छोटे-मोटे काम से जुड़े लोग आर्थिक तौर पर धराशायी हो गए। अनलाॅक शुरू होने के बाद से अब तक प्रदेश को 1900 करोड़ रुपए की टैक्स समेत अन्य आय हुई, जिससे सरकारी खजाने की हालत थोड़ी सुधरी। लेकिन कोरोना ने प्रदेश के हर व्यक्ति और तबके को अब तक उबरने नहीं दिया।
भास्कर टीम ने सरकार के अफसरों, अर्थशास्त्रियों, कारोबारियों, उद्योगों और कृषि विशेषज्ञों से बातचीत करके बाजार की आर्थिक स्थिति की पड़ताल की। इससे यह बात सामने आई कि कोरोना और लाॅकडाउन से केवल अनाज-किराना कारोबार ही कुछ फायदे में है, जबकि सभी कारोबारों पर नजर डालें तो प्रदेश को नियंत्रित करने वाले राजधानी के अलग-अलग बाजारों को अब तक लगभग 20 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ा है। जहां तक प्रदेश के सरकारी खजाने का सवाल है, अक्टूबर-नवंबर में धान का पैसा बाजार में आने से रौनक बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। लेकिन कारोबार से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक कोरोना की दहशत कायम रहेगी, लगभग हर तरह के कारोबार के लिए आमदनी तो दूर, खर्च निकाल पाना मुश्किल होगा।
सरकार - निर्माण और भर्तियां रोकीं तब पटरी पर आया प्रदेश
प्रदेश में लॉकडाउन शुरू होते ही तीन महीने के भीतर एक-एक कर ज्यादातर बड़े-छोटे कारखाने बंद करने पड़े। प्रदेश की आमदनी के हालात गंभीर हुए तो सरकार ने तत्काल गैरजरूरी खर्च और बड़े निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी। इस तरह करीब 30 हजार करोड़ रुपए बचाए। नई भर्तियों पर रोक लगाने से करीब 100 करोड़ रुपए बचे। इसी तरह निर्माण विभागों में बरसों से जंग खाती मशीनों, गाड़ियों व फर्नीचर आदि को बेचकर 500 करोड़ रुपए जुटाने का प्लान बनाया गया। सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बाजार में कैश फ्लो बनाए रखने की थी, इसलिए मनरेगा, किसानों को धान बोनस की किस्त और गोधन न्याय योजना के अंतर्गत गोबर खरीदी जैसी योजनाएं शुरू की गईं। इससे करीब 5-7 करोड़ रुपए का कैश फ्लो आया।
पिछले एक माह में जीएसटी में छत्तीसगढ़ ने बेहतर काम किया। अगस्त महीने से जो अच्छे संकेत मिले, वह अगले तीन माह तक बने रहेंगे तो हालात सुधर जाएंगे। अब केंद्रीय योजनाओं का पैसा भी आएगा, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। यही नहीं, धान का उत्पादन बेहतर हुआ तो नवंबर-दिसंबर में धान बेचने से किसानों के खाते में करीब 15 हजार करोड़ रुपए आएंगे। इससे बाजार सुधरेगा।
विश्लेषण : वित्त विभाग के उपसचिव सतीश पांडेय के मुताबिक
फसल - सब्जी उत्पादकों को 50 तो फल उत्पादकों को 75% घाटा
कोरोना ने छत्तीसगढ़ में फल और सब्जी उत्पादक किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। मार्च से शुरू हुई इस महामारी के कारण सब्जी उत्पादक किसानों को 50% तो फल उत्पादकों को 75% तक घाटा उठाना पड़ा है। वहीं धान उत्पादक किसान कोरोना से ज्यादा प्रभावित नहीं हुए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में फल का रकबा चार लाख हेक्टेयर है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि राज्य में लगभग 10 हजार हेक्टेयर में केला तथा 20 हजार हेक्टेयर में पपीते की खेती की जाती है। एक किसान एक हेक्टेयर में 4 लाख रुपए का केला बेचता है, इस हिसाब से 400 करोड़ रुपए के केले का उत्पादन सीजन में होता है। पपीता का अंश भी इतना ही है। लेकिन कोरोना के दौर में इन फलों के दाम ऐसे गिरे कि एक-तिहाई कीमत ही मिली। सब्जी कारोबारियों को भी बड़ा नुकसान हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रदेश में सब्जी का रकबा लगभग 6 लाख हेक्टेयर है।
कोरोना काल में 3 लाख हेक्टेयर में ही सब्जी लगाई गई। सब्जी किसान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 5 से 8 लाख रुपए तक की सब्जी बेचते थे, लेकिन इस बार आधा दाम भी नहीं हुआ। कृषि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि प्रदेश में 20 हजार करोड़ की सब्जियों का उत्पादन हुआ, लेकिन ये बिकीं केवल 10 हजार करोड़ में, यानी 50 फीसदी सीधा नुकसान। कृषि वैज्ञानिक डा.संकेत ठाकुर का कहना है कि कोराेना के कारण फल-सब्जी उत्पादकों का तगड़ा नुकसान हुआ है। हालात दो-तीन माह में सामान्य हुए, तब भी इस नुकसान से उबरने के लिए अगले सीजन का इंतजार करना होगा।
विश्लेषण : कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर और थोक सब्जी कारोबारी श्रीनिवास रेड्डी के अनुसार
व्यापार - बड़े-छोटे कारोबार में भी अब तक आधी रिकवरी
राजधानी में 19 मार्च से लाॅकडाउन शुरू हुआ और अप्रैल तक केवल अतिआवश्यक चीजों की ही दुकानें खुलीं। जून में अनलॉक की शुरुआत हुई, लेकिन बाजार पूरी तरह से नहीं खुले। 19 मार्च से 6 अगस्त तक पूर्ण-आंशिक लॉकडाउन के 139 दिनों में दुकानें केवल 79 दिन ही खुलीं। लॉकडाउन के इन 5 महीनों में सबसे ज्यादा नुकसान सराफा, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, जूता-चप्पल, श्रृंगार, होटल, रेस्तरां, शॉपिंग मॉल पर हुआ है। व्यापारिक संगठन कैट ने व्यापार विशेषज्ञों के जरिए विस्तृत रिपोर्ट तैयार करवाई है। इसमें कहा गया है कि बंद से प्रदेश में रोजाना लगभग 800 करोड़ रुपए और राजधानी में 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का व्यापार प्रभावित हुआ है।
इस तरह, लॉकडाउन के दौरान रायपुर में ही 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कारोबार पर असर हुआ है। नवरात्रि, शादी सीजन, रामनवमी, गुड फ्राइडे, ईद-बकरीद, राखी और सावन सोमवार जैसे त्योहारों पर दुकानदार सामान नहीं बेच पाए। जबकि इसी सीजन में 35 फीसदी बिजनेस हो जाता है। छत्तीसगढ़ चैंबर अध्यक्ष जितेंद्र बरलोटा और कैट अध्यक्ष अमर पारवानी ने कहा कि इस लॉकडाउन में हर सेक्टर को नुकसान हुआ। राहतें भी ऐसी नहीं हैं, जिनसे नुकसान कम हो।
विश्लेषण : छत्तीसगढ़ चैंबर अध्यक्ष जितेंद्र बरलोटा और कैट अध्यक्ष अमर पारवानी के अनुसार
उद्योग - कारखानों में 60% उत्पादन 30% लोगों की नौकरी गई
छत्तीसगढ़ में इंडस्ट्रियल एरिया और छोटे उद्योगों में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी गई है। उरला, सिलतरा, बीरगांव, भनपुरी, धरसींवा समेत आसपास के शहरों की फैक्ट्रियों में 3 लाख से ज्यादा मजदूर काम कर रहे थे। इनमें से 2 लाख मजदूर अपने घरों को लौट गए। हर स्तर के कारखानों में उत्पादन कम हुआ है। लाॅकडाउन के दौरान ही बड़े-छोटे उद्योग शुरू हो गए थे, लेकिन पिछले चार माह से किसी भी कारखाने में उत्पादन 60 प्रतिशत से अधिक नहीं है। इस वजह से जिन फैक्ट्रियों में 65 से 100 मजदूरों की जरूरत होती थी वहां 30 से 35 में ही काम चलाया जा रहा है। आम तौर पर एक मंझौले उद्योग में 125 लोगों का स्टाफ होता था, तो अब 50 में काम चलाया जा रहा है।
अब ठेकेदारों को 30 फीसदी मजदूर का आर्डर ही दे रहे हैं। रायपुर में ही उद्योगों से जुड़े मजदूरों और कर्मचारियों को मिलाकर 5000 से ज्यादा लोगों की नौकरी गई है। छोटे उद्योगों को प्रोडक्शन 50 फीसदी या उससे भी कम है और 10 हजार से ज्यादा छोटे कारोबारी, मजदूर और स्टाफ की नौकरी गई है। छग स्पंज आयरन एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल नचरानी तथा शहर के प्रमुख उद्योगपतियों का दावा है कि जिनकी नौकरियां गईं, दिसंबर 2020 तक तो उनकी वापसी मुमकिन नहीं लगती।
विश्लेषण : उद्योग महासंघ अध्यक्ष महेश कक्कड़, उरला इंडस्ट्रीज एसोसिएशन अध्यक्ष अश्विन गर्ग और कैट अध्यक्ष अमर पारवानी
नौकरियां - 20 हजार सरकारी पदों पर भर्ती-नियुक्ति टली
कोरोना काल यानी पिछले 6 महीने में प्रदेश में 20 हजार से ज्यादा सरकारी भर्ती या नियुक्तियां बेमुद्दत टालनी पड़ गई हैं। 14 हजार से अधिक शिक्षकों की भर्ती अब तक रुकी है, जबकि लिखित परीक्षा महीनों पहले हो गई पर नतीजे रोकने पड़े हैं। खुद सीएम भूपेश बघेल ने इस भर्ती की रिपोर्ट मांगी है। माना जा रहा है कि यह भर्ती अगले महीने तक हो पाएगी। कोविड की वजह से ही लगभग पौने 3 सौ पदों के लिए होने वाली पीएससी मेंस परीक्षा टलते-टलते अब अक्टूबर में होने की बात आ रही है। यह परीक्षा भी 6 माह से लंबित है। जीएडी ने दो महीने पहले विभागों से कहा है कि वे प्रमोशन के रिक्त पदों की जानकारी देवें। लिस्ट आ जाने पर पीएससी के जरिए यह काम होगा। बताते हैं कि 2014 में प्रमोशन वाले 65 पद सीधी भर्ती में कंवर्ट करके पीएससी को भेजे थे।
इसी तरह, सहायक प्राध्यापकों के 1300 पद भरे जाने हैं, लेकिन पिछले छह माह से लिखित परीक्षा टल रही है। अब यूपीएससी के नए नियम आए हैं, इसलिए कोविड संक्रमण को ध्यान में रखकर यह परीक्षा अगले कुछ हफ्ते में ली जाएगी। उच्च शिक्षा विभाग में क्रीड़ा अधिकारी के 61 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया अब जाकर अगले हफ्ते से शुरू होनी है। इसी विभाग में ग्रंथपाल के 56 पदों के लिए इंटरव्यू भी लंबे समय तक रुकने के बाद दो-तीन दिन में शुरू होगा। प्रदेश के पूर्व एसीएस बीकेएस रे का मानना है कि कोविड की वजह से नौकरियों में लगभग एक साल का नुकसान हो गया, अर्थात जब ये भर्तियां शुरू होंगी, तब तक एक साल का बैकलाॅग और खड़ा हो जाएगा। यह युवाओं के लिए परेशानी की वजह है। कोरोना की वजह से आर्थिक स्थिति व व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो रही है। नौकरियां-भर्ती के लिए चरणबद्ध रणनीति की जरूरत है। ऑनलाइन व्यवस्था कामचलाऊ है। सरकार को विकल्प तलाशने ही होंगे।
विश्लेषण : विभिन्न विभागों से मिली जानकारियों के आधार पर रिटायर्ड एसीएस बीकेएस रे का मत
सरकार के लिए खर्च घटाना, आय बढ़ाना ही विकल्प
"इकानॉमी दुरुस्त करने बजट बैलेंस करना होगा। इनकम ज्यादा व खर्च कम करना होगा। जीएसटी के कारण सरकार के पास ज्यादा टैक्स नहीं बचा है। आय बढ़ाने वाली चीजों पर फोकस करना होगा।" -एसके चक्रवर्ती, पूर्व संयुक्त सचिव, वित्त
यह महामंदी, माइनस 30 फीसदी तक गिरावट
"अगले 3 माह में मंदी का असर माइनस 30% तक हो जाएगा। यह महामंदी है। सरकार को संसाधन बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। लघु व बड़े उद्याेगों के साथ निर्माण क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए, ताकि प्रदेश के लोगों को रोजगार मिले।"
-रविन्द्र ब्रह्मे, अर्थशास्त्री
केन्द्र हमारा पैसा नहीं देगा तो तकलीफें बढ़ेंगी
"व्यवसायिक और औद्योगिक गतिविधियां जब तक देश में शुरू नहीं होंगी स्थिति नहीं सुधरेगी। केन्द्र हमारा पैसा नहीं देगा तो तकलीफें बढ़ेंगी। जो राज्य जितना रेवेन्यू कलेक्ट करेगा उसके मुताबिक ही सरकार की आर्थिक स्थिति चलेगी।"
-रविन्द्र चौबे, कृषि मंत्री
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