नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मंगलवार को विश्व के प्राचीनतम मानव निर्मित वेटलैंड भोज ताल के दक्षिणी हिस्से में तेजी से हो रहे अवैध और पक्के निर्माणों को लेकर राज्य सरकार को नोटिस दिया है। एनजीटी ने भोपाल की कानून की एक छात्रा आर्या श्रीवास्तव की याचिका पर संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार व नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। जस्टिस स्योकुमार व डॉ. एसएस गर्बियाल की जूरी ने कहा कि वैश्विक महत्व की रामसर साइट होते हुए भी सरकारी एजेंसियां तालाब के संरक्षण में नाकाम साबित हो रही हैं। वेटलैंड कंजर्वेशन मैनेजमेंट रूल के तहत वेटलैंड के एफटीएल के नजदीक स्थाई निर्माण प्रतिबंधित हैं। मास्टर प्लान 2005 में भी एफटीएल के 50 मीटर में पक्के निर्माण पर रोक है। इसके बाद भी सरकारी संस्थाओं की ओर से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई न करना, उनकी नाकाबिलियत दर्शाता है।
चार सप्ताह के अंदर जवाब तलब किया
एनजीटी ने चार सप्ताह के भीतर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, मप्र के मुख्य सचिव, कलेक्टर भोपाल, राज्य वेटलैंड अथॉरिटी एप्को, निगमायुक्त और पीसीबी से चार सप्ताह के अंदर जवाब तलब किया है।
पहाड़ी काटकर पक्के निर्माण...
आर्या के वकील धर्मवीर शर्मा के मुताबिक भदभदा क्षेत्र में पहाड़ी काटकर पक्के निर्माण हो रहे हैं। डॉ. अलंकृता मेहरा बनाम मप्र सरकार केस में एनजीटी ने 4 बार अहम आदेश जारी किए, लेकिन किसी का भी पूर्णतः पालन एजेंसियों ने नहीं किया।
भास्कर तत्काल... 321 पक्के अतिक्रमण
अगस्त 2019 में हुए सर्वे में बड़े तालाब के भीतर 321 पक्के अतिक्रमण मिले थे। बेहटा, भैंसाखेड़ी, बोरवन एरिया में कैचमेंट के भीतर निर्माण मिले थे। खानूगांव में 46, हलालपुर में 121 और बेहटा में 72 अतिक्रमण चिह्नित हुए थे। आज भी यही स्थिति है।
कुछ शेड और बाउंड्रीवॉल तोड़कर कार्रवाई बंद
सर्वे के बाद कुछ शेड और बाउंड्रीवॉल तोड़ कर कार्रवाई बंद कर दी गई। बमुश्किल 15 स्थानों पर कार्रवाई हुई। इनमें से कई जगह वापस निर्माण हो गया।
2016 की डीजीपीएस रिपोर्ट भी सिर्फ फाइलों में कैद
2016 में नगर निगम ने तालाब का डीजीपीएस सर्वे कराया था। निगम ने यह रिपोर्ट सत्यापन के लिए एप्को को भेज दी। एप्को ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
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