वो कश्मीर में बैट बनाने वाला कारीगर था। फरवरी के अंत में अपने घर बिहार आया। लॉकडाउन लगा तो यहीं फंस गया। दोस्तों को खेलने के लिए कुछ बैट बनाकर दिए। ये बैट इतने पसंद किए गए कि कई खरीदार भी आ गए। उसने अपने साथ काम करने वाले नौ और साथियों के साथ ये बैट बनाकर दिए। कुछ पैसे कमाए।
कोरोनाकाल में इन कारीगरों के संघर्ष को भास्कर ने छापा तो बात हुक्मरानों तक पहुंच गई। अब जिले के डीएम इन हुनरमंदों की मदद कर रहे हैं। सब ठीक रहा तो ये लोग अगले पंद्रह दिन में बिजनेसमैन बन चुके होंगे। मंगलवार को ही इनकी कंपनी को जीएसटी नंबर मिला है।
बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के अबुलेस अंसारी पिछले पांच साल से जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में बैट बनाने की फैक्ट्री में कारीगर थे। फरवरी में घर लौटे। मार्च के अंत में वापस कश्मीर जाना था। लॉकडाउन लगा तो वो यहीं फंस गए।
लॉकडाउन में गांव के लोगों के साथ क्रिकेट खेलते। कुछ साथियों ने कहा आप तो बैट बना सकते हैं, क्यों नहीं हमारे लिए बना देते। अबुलेस को गांव में ही एक पॉपुलर विलो का सूखा पेड़ मिल गया। उन्होंने उसकी लकड़ी से कुछ बैट बनाकर दोस्तों को फ्री में दे दिए।
बैट अच्छे थे। लोकल मार्केट में मिलने वाले बैट से काफी बेहतर। दोस्तों से बात और क्रिकेट प्रेमियों तक पहुंची। अब अबुलेस के पास खरीदार आने लगे। अबुलेस ने बिना संसाधन ये बैट बनाए और इन्हें 800 रुपए के रेट से बेच दिए। ऑर्डर आने पर उन्होंने अपने गांव के साथियों की मदद ली जो उनके साथ कश्मीर में बैट बनाने का ही काम करते थे।
भास्कर में खबर छपने के बाद शुरू हुई आत्मनिर्भर बनने की कहानी
29 मई को दैनिक भास्कर ने अबुलेस के इस सफर को छापा। खबर छपने के बाद उनके पास न सिर्फ कई और मीडिया वाले पहुंचे। बल्कि, प्रशासन भी पहुंचा। जिले के डीएम कुंदन कुमार ने इन हुनरमंदों को मदद का भरोसा दिया। और यहीं से इन कारीगरों के बिजनेसमैन बनने की कहानी शुरू हुई।
जल्द ही कंपनी शुरू होने की उम्मीद
अबुलेस बताते हैं कि भास्कर में खबर छपने के बाद मैं मशहूर तो हुआ ही, मदद भी मिली। जिले के डीएम हमारी हर तरह से मदद कर रहे हैं। हम सभी दस साथियों का पार्टनरशिप एग्रीमेंट बन गया है। कंपनी का नाम, बैनर, स्टैम्प बन चुका है। मंगलवार को कंपनी को जीएसटी नंबर मिल गया। अगले एक-दो दिन में कंपनी के नाम का करंट एकाउंट खुल जाएगा। 11 सिंतबर को अबुलेस और उनके सभी साथियों को डीएम ने मिलने भी बुलाया है। प्रशासन उनके डीपीआर के बाद उन्हें कारोबार शुरू करने के लिए आर्थिक मदद देगा।
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