बालाघाट और मंडला जिले में जानवरों को खिलाने के लिए रखा गया घटिया चावल इंसानों को बांटने का मामला गरमा गया है। शुक्रवार को पता चला कि मई और जून में भोपाल, शिवपुरी, भिंड और सागर जिले में भी जिला प्रबंधकों ने इसी तरह का घटिया चावल बांटने की शिकायत की थी, लेकिन खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम (नान) के अफसरों ने ध्यान नहीं दिया और यह चावल बांट दिया गया।
सागर व शिवपुरी जिले में 23 से 35 हजार क्विंटल चावल से भरे दो रैक आए थे, जबकि भोपाल में 350 क्विंटल चावल बांटने की बात सामने आ रही है। फिलहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर मामले की जांच ईओडब्ल्यू की जबलपुर यूनिट को सौंप दी गई है। वहीं, मंडला व बालाघाट के दो गोदामों में मिला 47000 क्विंटल चावल पोल्ट्री ग्रेड का चावल सील कर दिया गया है। बालाघाट में फ्री प्रराइज शाप भी सील की गई है।
चावल और गेहूं की खरीदी पर भी नजर
नान और विपणन संघ ने पिछले साल 73 लाख मीट्रिक टन गेहूं करीब 12 हजार करोड़ रुपए की खरीद की थी। इसी तरह करीब 23 हजार मीट्रिक धान 5 हजार करोड़ रुपए में खरीदी की थी। इसके अलावा 500 करोड़ रुपए का बारदाना खरीदा गया था, जिसमें प्लास्टिक की 3.5 लाख और जूट की 1.5 लाख गठान थी। फिलहाल इस खरीदी की जिन पर लोगों पर जिम्मेदारी है, उनमें ज्यादातर लेखा संवर्ग के सहायक लेखा अधिकारी है, जिन्हें प्रभार देकर जिला प्रबंधक बना दिया गया है। नान मुख्यालय में पदस्थ एक वरिष्ठ लेखाधिकारी को महाप्रबंधक चावल मिलिंग,उपार्जन, बारदाना और लेखा अधिकारी एकाउंट का चार्ज दिया गया है। ये पिछले तीन सालों से यह जिम्मेदारी देख रहे हैं, जबकि इनकी लोकायुक्त में भी जांच चल रही है। वहीं, निगम मुख्यालय स्तर पर तीन एडिशनल कलेक्टर और एक वित्त सेवा के वरिष्ठ अधिकारी पदस्थ हैं जिनकी उपस्थिति के बाद भी निगम के एक लेखा संवर्ग के अधिकारी को इतने महत्वपूर्ण दायित्व दिए जाने से भी अनियमितताओं को बढ़ावा मिलने की आशंका है। नान के एमडी तरुण पिथोड़े का कहना है कि निश्चित रूप से वर्क डिस्ट्रब्यूशन नए सिरे से किया जाना चाहिए।
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ये होंगी ईओडब्लयू को सौंपी जांच की शर्तें
- जांच के दायरे में पहले आएंगे नान के डीएम-क्वालिटी इंस्पेक्टर आएंगे।
- धान के मिल में जाने और निकलने की जवाबदारी क्वालिटी इंस्पेक्टर की है और गोदाम में पहुंचने के बाद 25 फीसदी माल की पड़ताल का जिम्मा डीएम के पास होता है, दोनों जगह बड़ी खामियां हैं।
खाद्य विभाग ने जांच के साथ ईओडब्ल्यू को भेजी बालाघाट कलेक्टर की रिपोर्ट
- मिलर्स के पास धान जाने और मिलिंग के बाद चावल बाहर निकलने पर पहली पड़ताल क्वालिटी इंस्पेक्टर करते हैं। इसके बाद धान के गोदाम पहुंचने के बाद 25 फीसदी माल का निरीक्षण जिला प्रबंधक द्वारा की जाती है। इन दोनों स्तर पर प्रथम दृष्टया ही बड़ी लापरवाही और खामी सामने आई है।
जबलपुर में 60 हजार क्विंटल घटिया चावल रिजेक्ट
जबलपुर में एफसीआई की टीम ने सरकारी व निजी गोदामों में भरा 12 करोड़ रु. का 60 हजार क्विंटल घटिया चावल पकड़ा। टीम ने कार्रवाई करते हुए इसे रिजेक्ट कर दिया। इस चावल को मिलर्स और क्वालिटी इंस्पेक्टर मिलकर खपाने वाले थे।
ईओडब्ल्यू जांच का दायरा बढ़ाने को स्वतंत्र
ईओडब्ल्यू जांच का दायरा बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है, वे जो जानकारी मांगेंगे वो दी जाएगी। फिलहाल विभाग की ओर से बालाघाट में मिलर्स की फैक्ट्री में रखे चावल के साथ तमाम गोदामों को सील कर दिया है।'
फैज अहमद किदवई, प्रमुख सचिव, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति
बड़ा सवाल : बालाघाट और मंडला से कहां-कहां गया चावल
अब सवाल यह है कि बालाघाट और मंडला का पोल्ट्री ग्रेड का चावल किन-किन जिलों में बांटा गया। इसकी जांच की जा रही है। हर साल 7.50 लाख टन चावल गरीबों में बांटा जाता है, लेकिन इस साल कोरोना के कारण केंद्र ने गरीबों को मुफ्त चावल बांटे जाने के एेलान के बाद 3.50 लाख टन खपत बढ़ गई। इससे मिलर्स ने आनन-फानन में जो चावल सप्लाई कर दिया, वो एफएक्यू (एवरेज फेयर क्वालिटी) स्तर का नहीं था। इस हिसाब से 100 किलो धान से निकला 67 किलो चावल जरूरी था। मानकों के अनुसार 1 क्विंटल चावल में 25 किलो टूटन ही हो सकती है। प्रदेश के अधिकांश जिलों में जो चावल बांटा गया, उसमें टूटन 40 से 50% तक थी। इसकी क्वालिटी कंट्रोलर अफसरों ने जांच क्यों नहीं की। इसमें यह सामने आ रहा है कि औसत दर्जे से निम्न स्तर का चावल होने पर प्रति क्विंटल के हिसाब से निचले स्तर का होने पर 25 से 35 रुपए प्रति क्विंटल दिया जाता था। यह राशि साल भर में 50 करोड़ रुपए से ज्यादा होती है।
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