राज्य सरकार ने अखिल भारतीय सेवा के अफसरों आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों का अंशदायी पेंशन स्कीम (सीपीएफ) में अपना हिस्सा 10 से बढ़ाकर 14% कर दिया है, जबकि प्रदेश के अफसरों और कर्मचारियों का 10 फीसदी ही रखा है। यह अंतर इसी माह में सामने आया है। इससे पहले अखिल भारतीय सेवा और राज्य के अफसरों का कर्मचारियों का अंश पिछले 15 साल से बराबर था।
राज्य के जो अफसर और कर्मचारियों को यह लाभ नहीं मिला है, उनकी संख्या लगभग 3 लाख है। वित्त विभाग के अनुमान के अनुसार राज्य के कर्मचारियों को यह फायदा दिया जाता है तो हर साल 72 करोड़ रु. अतिरिक्त खर्च आएगा।
दरअसल, केंद्र ने 2004 और राज्य सरकार ने 2005 के बाद सेवा में आने वाले कर्मियों के लिए पेंशन बंद कर दी है। इसकी जगह अंशदायी पेंशन योजना शुरू की है, जिसमें कर्मचारी का 10 फीसदी और सरकार अपनी ओर से 10 फीसदी राशि मिलाकर सीपीएफ में जमा करती है। इस जमा राशि पर ही रिटायरमेंट के बाद उस समय की स्थिति के अनुसार कर्मचारियों को लाभ दिए जाते हैं।
ऐसे आया अंतर
2005 से 2020 तक केंद्र और राज्य के कर्मचारियों को सीपीएफ स्कीम में 10 फीसदी कर्मचारी की और 10 फीसदी ही राज्य सरकार की थी। वहीं, 2020 में केंद्र सरकार ने जब अपने कर्मचारियों के लिए सीपीएफ में राशि 10 से बढ़ाकर 14 फीसदी की तब राज्य ने प्रदेश में कार्यरत अखिल भारतीय सेवा के अफसरों को यह लाभ दे दिया, लेकिन राज्य के अफसरों और कर्मचारियों को इससे वंचित रखा गया है। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल प्रदेश की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है, स्थिति ठीक होने के बाद यह लाभ दिया जाएगा।
इसी महीने से लाभ मिलना हुआ है शुरू
अखिल भारतीय सेवा के अफसरों को सीपीएफ में 4% का लाभ इसी माह से मिलना शुरु हुआ है। यदि किसी अफसर का वेतन 1 लाख रु. है तो उसके सीपीएफ में साल भर में पहले 12,000 रु. जमा होते थे, अब 4800 रु. ज्यादा यानी 16800 रुपए जमा होंगे। इसके अलावा ज्यादा वेतन होने पर अंश की राशि बढ़ती जाएगी। राज्य के अफसरों में डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी समेत अन्य सेवा के अफसरों का वेतन समान होने पर भी अंश 12000 रुपए ही जमा होगा।
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