ठाकुरराम यादव | बस और लोकल ट्रांसपोर्ट पर कोरोना का कहर ऐसा टूटा है कि पूरी इंडस्ट्री और इससे जुड़े 8 हजार परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश में 19 मार्च से बसों के पहिए थमे हैं। डेढ़ माह पहले बसें शुरू की गईं, लेकिन सवारियां नहीं मिलीं। जो बसें चलीं, उनका डीजल का खर्च नहीं निकला इसलिए ऑपरेटरों ने उन्हें वापस खड़ी करवा दिया। तब से अब तक 99 फीसदी से ज्यादा बसें बंद हैं। हजारों बसें ऐसी हैं जो 19 मार्च के बाद से आज तक नहीं चलीं और पहियों पर काई जमने लगी है। बसों के छोटे-बड़े मालिकों की जमा पूंजी किस्तें भरने में खत्म हो रही है। उनका दावा है कि हर महीने करीब 100 करोड़ रुपए के हिसाब से पूरे कारोबार को 600 करोड़ रुपए का ऐसा नुकसान हुआ है, जिससे उबरना मुश्किल है। इससे भी बुरा हाल ड्राइवर-कंडक्टरों से जुड़े 8 हजार परिवारों का भी है। यह ऐसा तबका है, जिसने रोजी-रोटी के लिए मुर्गी से लेकर सब्जी तक बेचना शुरू कर दिया है।
राजधानी रायपुर से बसों की कनेक्टिविटी देश के कई बड़े और प्रमुख राज्य तक है। हजार से ज्यादा बसें इंटर स्टेट की हैं जिनमें मुख्य रुप से रायपुर से मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश तक चलती हैं। इन राज्यों के कई प्रमुख शहर बसों से राजधानी रायपुर से जुड़े हुए हैं। लॉकडाउन से पहले रोज 10,000 से ज्यादा यात्री रायपुर से दूसरे राज्य और उन राज्यों से रायपुर सफर करते थे। राज्य के भीतर रायपुर से जगदलपुर, कांकेर, नारायणपुर, अंबिकापुर, बिलासपुर, महासमुंद, पिथौरा, बागबाहरा, कवर्धा, बेमेतरा, गरियाबंद, डेवभोग आदि प्रमुख रूट में बसें चलती हैं। रायपुर के अलावा राज्य के अलग-अलग जिलों से दूसरे जिले तक बड़ी संख्या में बसें चलती रही हैं।
परिवार चलाने की जद्दोजहद
प्रदेश के लगभग सभी कारोबार लॉकडाउन खुलने के बाद पटरी पर लौटने लगे हैं, लेकिन ट्रांसपोर्ट सेक्टर अब भी बुरी तरह डूबा है क्योंकि लोग बसों में सफर करने से बच रहे हैं। इस वजह से हजारों ड्राइवर-कंडक्टर ही नहीं, कुछ बस ऑपरेटरों को भी दूसरा काम शुरू करना पड़ा है। बसों के ड्राइवर ट्रक चलाने लगे हैं, कुछ ऑटो लेकर उतर गए, कुछ मुर्गी से लेकर सब्जी-भाजी बेच रहे हैं। छोटी-मोटी दुकानों में नौकरी कर ली है ताकि परिवार को भुखमरी से बचा सकें। बस ऑपरेटर भी बिना इनकम के अपने ड्राइवर कंडक्टर इत्यादि को ज्यादा दिनों तक तनख्वाह देने की स्थिति में नहीं है। मार्च से अगस्त के बीच इन छह महीने में इस बिजनेस को करीब 600 करोड़ का नुकसान हो चुका है। अगर दो-तीन माह में कोरोना वैक्सीन आ भी गई तो बसों का 6 माह नार्मल चल पाना मुश्किल है।
खड़ी बसों पर भी लंबा खर्च
पहले चरण का लॉकडाउन खुलने के बाद प्रशासन की अनुमति मिलने पर ऑपरेटरों ने बस चलाने का प्रयास किया था, लेकिन पैसेंजर नहीं मिलने के कारण सप्ताहभर में ही ऑपरेटरों को बसें रोकनी पड़ीं क्योंकि 35-40 सीटर बसों में मुश्किल के एक-दो यात्री मिल रहे थे। इससे ड्राइवर, कंडक्टर का वेतन तो दूर, बसों का डीजल खर्च नहीं निकल पा रहा था। बस ऑपरेटरों का कहना है कि बसों को गैरेज में खड़ा भी किया जाए तो इसके मेंटेनेंस पर काफी खर्च है। टैक्स देना पड़ रहा है, बैटरी खराब हो रही है, टायर सूख रहे हैं और इंजन का भी मेंटेनेंस है। खड़ी बस का खर्च पर 10 हजार रुपए महीना है। यह खर्च मजबूरी है, नहीं तो पूरी बस कबाड़ होने का खतरा भी है।
आमदनी नहीं, केवल नुकसान
बस आपरेटर भावेश दुबे ने कहा कि पिछले छह महीने और आगे कितने महीने तक धंधा चौपट रहेगा कहा नहीं जा सकता। इस दौरान आमदनी शून्य है, लेकिन खर्च कम नहीं है। बस यदि महीनेभर तक नहीं चलीं तो उसपर लंबा-चौड़ा खर्च बैठ जाता है। इसलिए मेंटनेंस जरूरी होता है। इस पर हजारों रुपए खर्च होते हैं। मेंटनेंस न कराया जाए तो 15 से 25, 30 लाख और उससे भी महंगी कीमत की बसों को कबाड़ होने में समय नहीं लगता। टैक्स इत्यादि भरना भी जरूरी है। छोटे-बड़े सभी बस ऑपरेटरों की स्थिति खराब है। जिनकी एक-दो बसें हैं, उन्हें तो नुकसान है ही, बड़े ऑपरेटर जिनके पास 50-100 बसें हैं, उन्हें भी बड़ा नुकसान हो रहा है।
तीन बार में पांच माह का टैक्स माफ
कुछ और राहतों की मांग
"राज्य शासन ने फैसला कर लिया है। सरकार ने तीन महीने का छूट पहले दिया था। अब सितंबर और अक्टूबर में शर्तों के साथ छूट दिया गया है। इसमें बस आपरेटरों को ड्राइवर, कंडक्टर और हेल्पर का एनओसी लेना है। उम्मीद की जाती है कि बस आपरेटर अब बसों का संचालन प्रारंभ करेंगे।"
- मोहम्मद अकबर, परिवहन मंत्री
"कोरोना से बस सेवा बुरी तरह प्रभावित हुई है। बस ऑपरेटर हो या ड्राइवर, कंडक्टर या इस पेशे से जुड़ा कोई और, पिछले 6 माह से किसी को भी एक पैसे की आय नहीं हुई है।"
- प्रमोद दुबे, संरक्षक बस आपरेटर एसोसिएशन
"बस परिवहन सेवा से जुड़े मालिकों से लेकर कर्मचारियों तक की स्थिति खराब हो चुकी है। शासन से राहत मांग रहे हैं, लेकिन ज्यादा सुनवाई नहीं हो रही है। इसलिए धरना दिया जाएगा।"
- प्रकाश देशलहरा, अध्यक्ष छग यातायात महासंघ
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