कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए महाराष्ट्र में अब एक नई पहल हो रही है. यहां आवाज के माध्यम से कोरोना की जांच होगी. महाराष्ट्र सरकार के मंत्री आदित्य ठाकरे (Aaditya Thackeray) ने इस बारे में ट्वीट भी किया है. माना जा रहा है कि बीएमसी (Brihanmumbai Municipal Corporation) अगले हफ्ते से वॉइस-बेस्ड तकनीक से संक्रमण की जांच शुरू कर सकती है. जानिए, क्या है ये तकनीक और किसलिए फायदेमंद हो सकती है.
आवाज सुनकर लोगों में संक्रमण पहचानने की इस तकनीक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) काम करता है. इसके तहत किसी संदिग्ध मरीज को मोबाइल या किसी कंप्यूटर के सामने बोलने को कहा जाएगा. इसमें पहले से ही वॉइस एनालिसिस एप इंस्टॉल्ड होगा. साथ ही साथ संदिग्ध के वाइटल पैरामीटर यानी तापमान, बीपी का एनालिसिस भी होगा.
संदिग्ध के बोलने के साथ ही AI आधारित सिस्टम अपना काम शुरू कर देगा. ये देखेगा कि संदिग्ध की आवाज की फ्रीक्वेंसी क्या है और क्या आवाज में कोई खरखराहट या ऐसी कोई ध्वनि सुनाई दे रही है. संदिग्ध की आवाज को उस व्यक्ति की आवाज से मिलान किया जाएगा जो स्वस्थ हो. बता दें कि एप में पहले से ही स्वस्थ लोगों की आवाज के सैकड़ों-हजारों सैंपल डले होंगे. इसके बाद AI केवल 30 सेकंड में अपनी जांच की रिपोर्ट थमा देगा.
इस तकनीक के पीछे एक ऑडियो बेस्ड एप काम करता है, जिसे टिंबर कहते हैं. ये वॉइस क्वालिटी पर काम करता है. हमारे कान वॉइस पैरामीटर में हुए अलग-अलग बदलावों को पहचान नहीं पाते हैं, जबकि AI बखूबी ये काम करता है. बता दें कि किसी भी व्यक्ति की आवाज में 6300 अलग-अलग वॉइस पैरामीटर होते हैं, जिसमें फर्क पहचानना आम आदमी के लिए आसान नहीं. यही वजह है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जा रही है. चूंकि कोरोना वायरस सबसे पहले लंग्स पर ही असर डालता है इसलिए मानकर चला जा रहा है कि इससे आवाज में भी कोई न कोई बदलाव होता होगा क्योंकि लंग्स का संबंध रेस्पिरेटरी सिस्टम से है और ये आवाज से जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि महाराष्ट्र में वॉइस टेस्टिंग तकनीक की शुरुआत हो रही है.
इसके अलावा आरटी-पीसीआर टेस्टिंग भी होती रहेगी, जो कोरोना की जांच के मामले में काफी भरोसेमंद मानी जा रही है. रियल टाइम पॉलिमरेस चेन रिएक्शन नाम का ये टेस्ट लैब में होता है. इस टेस्ट के लिए एक ट्यूब के ज़रिये गले या नाक से स्वाब का नमूना लिया जाता है. नमूना लेने के लिए ट्यूब को करीब 20 सेकंड तक नाक या गले में रखा जाता है और फिर वहां हल्का से ट्विस्ट करके निकाला जाता है. स्वाब नमूने को वायरस ट्रांसमिशन मीडिया में रखा जाता है. इस टेस्ट में रिजल्ट मरीज़ को 12 से 16 घंटे में मिल जाता है. फिलहाल कोरोना टेस्टिंग में इसे ही सबसे पक्की जांच माना जा रहा है.
बता दें कि इजरायल ने सबसे पहले वॉइस टेस्टिंग तकनीक की बात की. जुलाई में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए तकनीकी तौर पर बेहद जानकार इस देश ने ऐसी टेस्ट तकनीक खोजने की पहल की, जो जल्द से जल्द रिजल्ट दे सके. फिलहाल हो रही जांचों में कई घंटे और दिन भी लग रहे हैं. इससे रिजल्ट आने तक मरीज से संक्रमण दूसरों में फैल सकता है. यही देखते हुए इजरायल ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित इस तकनीक की बात की. इसके लिए भारत से भी इजरायल ने हाथ मिलाया है. अगर टेस्ट के नतीजे सही लगते हैं तो भारत में किट बनाई जाएंगी और मार्केटिंग जैसे काम इजरायल करेगा. इसके तहत आवाज के अलावा ब्रीद-एनालाइजर टेस्ट भी होगा. इसमें एक उपकरण में शख्स की सांस का सैंपल लिया जाएगा फिर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से उसकी जांच होगी. इसके अलावा इसोथर्मल टेस्टिंग के नाम से भी एक टेस्ट होगा. ये एक बायोकेमिकल टेस्ट है जिसके तहत थूक या लार के सैंपल से जांच होती है. इसके नतीजे लगभग 30 मिनट में आते हैं.
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