केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत 3 साल तक आंगनबाड़ी केंद्रों को प्री प्राइमरी स्कूल में बदलने का फैसला किया है। केंद्र की नई पॉलिसी लागू होने से पहले भास्कर ने केंद्रों की जमीनी हकीकत तलाश की, तो केंद्रों की खस्ता हालत सामने आई। प्रदेश के दूरदराज़ के इलाकों में जो केंद्र चल रहे हैं, उनकी स्थिति बेहद ख़राब है। कहीं झोपड़ियों में केंद्र है, तो कहीं किराए का एक कमरा लेकर केंद्र चल रहा है। और तो और, कई स्थानों पर लोग घरों में ही केंद्र बनाए हैं। कई जगह तो एक ही कमरे में खाना भी बनता है, और वहीं बच्चे पढ़ते-खेलते भी हैं।
रायपुर }कचरे से घिरा भवन, लगा है ताला
भास्कर की टीम जब सुबह बड़ा भवानी नगर कोटा स्थित आंगनबाड़ी केंद्र पहुंची तो ताला लगा था। कोई भी नहीं था। कोरोना की वजह से कोई नहीं आ रहा। इसमें एक ही कमरा है और परिसर कचरे से घिरा मिला। कभी-कभी खुलता है तो बच्चे नहीं अाते। वहीं, रामकृषण परमहंस वार्ड का अांगनबाड़ी केंद्र सरकारी भवन के बजाय मोहल्ले के घर जैसा ही है। एक टूटा-फूटा बोर्ड ही बता रहा है कि यह अांगनबाड़ी केंद्र है। किराए में दो कमरों का केंद्र।
बालोद: पांडेपारा में घर पर केंद्र
बालाेद जिला मुख्यालय में आंगनबाड़ी केंद्र सरकारी भवन नहीं बल्कि घरों में संचालित हो रहा है। ऐसा हाल नयापारा और पांडेपारा का है। एक कार्यकर्ता किराया देकर तो दूसरा खुद के घर में केंद्र संचालित कर रही है। बारिश व गर्मी में बच्चों को कई समस्याओं से जूझना पड़ता है। शहर के वार्ड 16 का केंद्र यादव भवन शिकारीपारा में लग रहा है तो वार्ड 6 और 7 के बच्चे एक ही केंद्र में पढ़ने मजबूर हैं।
कवर्धा : 1600 से ज्यादा केंद्रों में ताला
कबीरधाम जिले में 1600 से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। कोरोना के चलते सभी केंद्रों में ताला लगा हुआ है। केंद्रों की सफाई नहीं हो रही है। आंगनबाड़ी भवन खस्ताहाल पड़े हुए हेैं। महिला एवं बाल विकास विभाग का दावा है कि बंद के दौरान बच्चों के घरों तक रेडी-टू-ईट पहुंचाई जा रही है। बंद के दौरान 6 माह से 3 वर्ष के सामान्य व मध्यम कुपोषित 45144 बच्चों को 750 ग्राम रेडी- टू- ईट घर पहुंचाकर दी गई।
जगदलपुर : कुआकोंडा में 10 से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे झोपड़ी में
नकुलनार के कुआकोंडा ब्लाक में 154 अांबा केंद्र चल रहें हैं। ब्लाक मुख्यालय से महज 6 किमी के फासले पर गढ़मिरी ग्राम पंचायत के कामापारा, पूतमरका सहित टिकनपाल के कर्रेपारा, अंधोंडीपारा जैसे 10 से अधिक गांवों में अम्बा केंद्र झोपड़ी में चल रहें है। वहीं कटेकल्याण ब्लाक के बड़ेगुडरा परियोजना में भी 7 अांगनबाड़ी केंद्र झोपड़ी में चल रहें हैं। कुअाकाेंडा के परियाेजना अधिकारी बिंदु स्वर्णकार ने बताया नए भवन प्रस्तावित किए गए हैं। कुछ जगह कार्य पूर्ण हो रहे हैं।
कोरबा: जर्जर व्यवस्था के बीच केंद्र, 2200 में से 1700 के पास अपना भवन नहीं
जिले में 2265 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। जिसमें से 1700 केन्द्र किसी न किसी के घर के परछी में या फिर आधी अधूरी सुविआओं के बीच किराए में लग रहे हैं। 350 केन्द्रों को मॉडल जरूर बनाया गया है जहां पूरी सुविधा व संसाधन हैं। शेष केन्द्रों में बच्चों के खेलने व पढ़ने के सामान पुराने पड़े हुए हैं। स्व सहायता समूहों द्वारा माह मेें दो बार वितरित होने वाला पोषण आहार बच्चों को घर पहुंचाकर देना है, लेकिन लॉक डाउन के दौरान केन्द्र में तय दिन को नहीं पहुंच रहा है। अधिकांश भवनों की हालत जर्जर है। केन्द्रों में साफ सफाई का अभाव है, लंबे समय से रंगरोगन नहीं होने के कारण वहां बच्चों को बिठाकर पढ़ाना उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना होगा।
मोफलनार में सालों पुराना भवन, जोखिम
दंतेवाड़ा के गीदम ब्लॉक के मोफलनार केंद्र में तो भवन की हालत इतनी ज्यादा खराब है, कि ये कब बच्चों पर घातक साबित हो जाए, कहा नहीं जा सकता। यहां का भवन सालों पुराना है। आंगनबाड़ी में बच्चे आते भी हैं, तो उन्हें कई बार सहायिकाएं बाहर ही पढ़ाती हैं। हालांकि लॉक डाउन के कारण अभी केंद्र बन्द हैं।
बेंगपल्ली में चार साल से बंद केंद्र
ये तस्वीर धुर नक्सलगढ़ दंतेवाड़ा के गांव गुमियापाल के आश्रित गांव बेंगपल्ली की है। ग्रामीण बताते हैं कि यहां पहले झोपड़ी में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित था। लेकिन 4 सालों से ये भी बन्द पड़ा हुआ है। यहां के बच्चे आंगनबाड़ी नहीं जाते हैं ऐसे में नन्हें बच्चों का सुपोषण अभियान व शिक्षा से जुड़ पाना दूर की बात है।
दुर्ग : पड़ोसियों को भी केंद्र का पता नहीं
भिलाई-2 परियोजना के चरोदा सेक्टर के जोन-02 पिछले चार साल से एक झोपड़ी नुमा किराए के कमरे में आंगनबाड़ी केंद्र चल रहा है। लेकिन पड़ोसियों तक को जानकारी नहीं थी। यहां न तो कभी बच्चों के लिए भोजन पकाते देखा और न कभी बच्चे दिखाई दिए। पास में कब्जे की जमीन पर केंद्र है। चरोदा सेक्टर के जोन-1 पश्चिम के केंद्र क्रमांक-9 भी टीन शेड वाले कमरे में चार साल से संचालित है। यहां बिजली नहीं है। लोगों ने केंद्र को कभी खुलते नहीं देखा।
अबूझमाड़ : यहां का केंद्र ही अबूझ
ये तस्वीर अबूझमाड़ की है जहां केंद्र तो है लेकिन इसका संचालन भगवान भरोसे है। उधर, दंतेवाड़ा में 329 आंगनबाड़ियां हैं, जिनका खुद का भवन ही नहीं है। कहीं किराए से तो कहीं खुद के घर से महिलाएं संचालित कर रही हैं। लेकिन जहां आंगनबाड़ी है भी तो वहां कई भवनों की स्थिति खराब हो चुकी है। लॉक डाउन के कारण अभी केंद्र बन्द है, ऐसे में बच्चे खेल भी नहीं खेल पा रहे।
रायगढ़ : 155 केंद्रों के पास खुद का भवन नहीं
रायगढ़ में 3409 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। इनमें सबसे ज्यादा 155 शहरी क्षेत्र में हैं, जो किराये के भवनों या दूसरे जुगाड़ से चल रहे हैं। पंचायतों में मनरेगा स्कीम में आंगनबाड़ी भवन बनाएं जा रहे हैं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में ऐसी कोई स्कीम नहीं है। भवन बनाने के लिए सरकार से 10 करोड़ रुपये मांगे गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में 50 भवन जर्जर हो चुके हैं। केंद्रो में बर्तन तो हैं पर फर्नीचर और खेलने के सामान नहीं हैं। राशन और रेडी टू ईट फूड घर जाकर दिया जा रहा है।
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