जॉन राजेश पॉल | दिल्ली से एक रुपए चलता है तो गांव तक 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं। पूर्व पीएम स्व. राजीव गांधी की यह चिंता आज भी सरकारी सिस्टम में बनी हुई है। अब छत्तीसगढ़ सरकार ऐसा फूल प्रूफ सिस्टम बनाने की तैयारी में है, जिसमें जितनी राशि जारी होगी, उतनी ही संबंधित व्यक्ति तक पहुंचेगी। बीच में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं होगी। मंत्रालय से राशि जारी होने के बाद अंतिम छोर तक राशि पहुंचने की ट्रेकिंग की जाएगी। इसके लिए मशहूर आईटी कंपनियों की भी मदद ली जा रही है।
प्रदेश में आर्थिक अनियमितता व सरकारी खजाने का लीकेज रोकने के लिए सरकार तगड़ा सिस्टम बनाने में जुटी है। मनी लीकेज को लेकर सरकार गंभीर है। शिक्षाकर्मियों का वेतन जारी करने के तीन महीने के बाद उन तक नहीं पहुंचा तो शायद पहली दफे लोकल इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी एलआईबी से इसकी तस्दीक कराई गई। नया फुल प्रूफ सिस्टम बनाने के लिए मशहूर आईटी कंपनियों से संपर्क किया जा रहा है। हालांकि इसका ब्लूप्रिंट बनकर तैयार है।
लेकिन सिस्टम की प्रोसेसिंग के वक्त कोई ठोस व नया पाइंट-सुझाव सामने आता है तो उसे भी शामिल किया जाएगा। साॅफ्टवेयर को लेकर मंत्रालय में प्रारंभिक प्रेजेंटेशन हो चुका है। इसमें विभागवार कर्मचारियों का डेटा तो बनेगा ही, वे जिस विभाग में काम करते हैं, उनके काम करने का तौर-तरीका भी सिस्टम में अपलोड होगा। उसी के आधार पर मानिटरिंग (ट्रैकिंग) कर खामी, गलती या अनियमितता पकड़ी जाएगी। इसमें सरकार के हर तरह के पेमेंट कवर्ड होंगे। पेमेंट कैसे होते हैं यह भी रहेगा, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
बड़े विभागों में समस्या-शिकायतें ज्यादा
मालूम हो कि वर्तमान में शिक्षा, पंचायत, ट्राइबल, स्वास्थ्य विभागों में वेतन को लेकर सबसे ज्यादा लेटलतीफी की शिकायतें आती हैं। इन विभागों में नियमित, अनुदान व कई तरह की भर्तियों से कर्मचारी रखे जाते हैं। उनके भुगतान के तरीके भी काफी जटिल हैं। जैसे अरबन या पंचायतों में पे-बिल, अटेंडेंस, फिर उनका वैरिफ़िकेशन जैसे काम में कई अफसर लेट करते हैं। इससे दूसरों का भी वेतन अटक जाता है।
अभी यह होता कि वित्त विभाग पहले सभी विभागों को वेतन आबंटन जारी करता है। वे इसे आगे के कार्यालयों को भेजते हैं। शिक्षाकर्मियों व ट्राइबल विभाग व हेल्थ में अक्सर शिकायत रहती है। दरअसल ढिलाई भी होती है। अब तक कोई फुल प्रूफ सिस्टम नहीं है। मंत्रालय से सैलरी आबंटन जारी होते ही नीचे पहुंच जाता है। बैंकों से विड्रॉ भी कर लिया जाता है, लेकिन कर्मचारियों के खातों में नहीं पहुंचता।
ये फायदे होंगे
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