— Jaya Prada (@realjayaprada) March 2, 2020
अमर सिंह के निधन पर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया, 'वरिष्ठ नेता एवं संसद श्री अमर सिंह के निधन के समाचार से दुख की अनुभूति हुई है. सर्वजनिक जीवन के दौरान उनकी सभी दलों में मित्रता थी. स्वभाव से विनोदी और हमेशा ऊर्जावान रहने वाले अमर सिंह जी को ईश्वर अपने श्रीचरणों में स्थान दें. उनके शोकाकुल परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं.' वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी ट्वीट किया, 'राज्यसभा सांसद अमर सिंह जी के दुखद निधन पर मेरी गहरी संवेदनाएं. ईश्वर से प्रार्थना है कि वे दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करें एवं शोक संतप्त परिजनों को यह आघात सहने की शक्ति दें. आरआईपी अमर सिंह जी.'
Saddened to know about the passing away of senior leader and MP #AmarSingh: Defence Minister Rajnath Singh pic.twitter.com/5fKRejJ99P
— ANI (@ANI) August 1, 2020
बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया, 'संसद अमर सिंह को मैं लंबे समय से जानता हूं. आज उनका निधन हो गया. हालांकि वह ज्यादातर समाजवादी पार्टी के साथ थे, लेकिन सभी दलों में उन्होंने दोस्त बनाएं. शोकाकुल परिवार के प्रति मेरी संवेदना.'
Amar Singh MP and a person I have known for long, died today. Although he was mostly with SP, but he made friends across the spectrum of political https://t.co/sq1ncErLyj condolences to his family
— Subramanian Swamy (@Swamy39) August 1, 2020
कभी मुलायम सिंह के खामसखास थे
एक जमाना था जब समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह उन पर बहुत भरोसा करते थे लेकिन पार्टी की बागडोर अखिलेश के हाथों में आने के साथ ही अमर को किनारे कर दिया गया. हालांकि एक समय ऐसा था जब अमर सिंह को पार्टी के लिए उपयुक्त माना जाता था. नेटवर्किंग से लेकर तमाम अहम जिम्मेदारियों का दारोमदार उनके कंधों पर था. 90 के दशक के आखिर में अमर सिंह को उत्तर प्रदेश में शुगर लॉबी का असरदार आदमी माना जाता था. इसी सिलसिले में उनकी तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम से करीबी बढ़ी. वर्ष 1996 के आसपास वो समाजवादी पार्टी में शामिल हुए. फिर जल्दी ही पार्टी के महासचिव बना दिये गए. वो ताकतवर होते गए. कहा जाने लगा था कि मुलायम कोई भी काम बगैर उनके पूछे नहीं करते.
तब कहा जाता था अमर के लिए कुछ भी असंभव नहीं
उस वक्त ये भी कहा जाने लगा कि राजनीति में अमर सिंह के लिए कोई भी काम असंभव नहीं. 2008 में भारत की न्यूक्लियर डील के दौरान वामपंथी दलों ने समर्थन वापस लेकर मनमोहन सिंह सरकार को अल्पमत में ला दिया. तब अमर सिंह ने ही समाजवादी सांसदों के साथ साथ कई निर्दलीय सांसदों को भी सरकार के पाले में ला खड़ा किया. संसद में नोटों की गड्ढी लहराने का मामला भी सामने आया. इस मामले में अमर सिंह को तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा.
हालांकि ये भी सही है कि अमर सिंह की कार्यशैली ने पार्टी में ही ताकतवर लोगों को नाराज कर दिया. एक समय में समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की हैसियत ऐसी थी कि उनके चलते आज़म ख़ान, बेनी प्रसाद वर्मा जैसे मुलायम के नज़दीकी नाराज़ होकर पार्टी छोड़ गए. नतीजा ये हुआ कि मुलायम को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी. वर्ष 2010 में पार्टी से निकाल दिया गया.
छह साल बाद समाजवादी पार्टी में फिर लौटे
वर्ष 2016 में समाजवादी पार्टी में वो फिर लौटे. राज्य सभा के लिए चुने गये. लेकिन जल्दी ही फिर उनके लिए मुश्किल भरे दिन आने वाले थे. एक साल बाद बाद ही समाजवादी पार्टी में जबरदस्त उठापटक के बाद अखिलेश पार्टी के सुप्रीमो बन गए. अमर सिंह फिर किनारे हो गए.
हालांकि उन्होंने तब अखिलेश के खिलाफ जमकर बयानबाजी की. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में जमकर बयान दिए. उन्होंने इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी पैतृक संपत्ति दान में देने की भी घोषणा की. शायद अमर मानकर चल रहे थे कि भाजपा में उनका प्रवेश हो पाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका. पिछले दो सालों से अमर सिंह करीब करीब भारतीय राजनीति से नदारद हो चुके हैं.
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