राजस्थान (Rajasthan) में ये कोई पहली बार नहीं है कि जबकि सरकार को बनाने-गिराने के खेल में राजभवन अखाड़ा बन गया हो. वहां विधायकों की परेड हुई हो. फिर विधायकों ने धरना देकर सरकार बनाने का दावा पेश किया हो.
1993 में ऐसा ही बीजेपी (BJP) के भैरोसिंह शेखावत (Bhairon Singh Shekhawat) ने किया था. तब केंद्र में पीवी नरसिंहराव की सरकार थी. शेखावत की पार्टी चुनाव के बाद सबसे बड़ा दल बेशक बनकर उभरी थी लेकिन उनके पास पर्याप्त बहुमत नहीं था.
दरअसल इस मामले की शुरुआत 1992 से ज्यादा हुई थी. दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद केंद्र ने भैरोसिंह शेखावत की बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया था. हालांकि इस सरकार में भी बीजेपी सबसे बडा़ दल था और जनता दल (दिग्विजय सिंह) के साथ मिलकर उसने अपनी सरकार को बचाया हुआ था.
चुनाव नतीजों में किसी के पास बहुमत नहीं था
बाबरी ध्वंस के बाद जब केंद्र ने राजस्थान की सरकार को बर्खास्त कर दिया तो 10 महीने बाद वहां ताजा चुनाव कराए गए. 10 महीने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा रहा. नवम्बर 1993 में विधानसभा चुनाव हुए. नतीजों में किसी दल के पास अकेले सरकार बनाने लायक नंबर्स नहीं थे.
तब राजस्थान में राज्यपाल बलिराम भगत थे. इससे पहले वो 14 महीने के अल्प समय के लिए छठी लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके थे. इसके बाद राजीव गांधी सरकार में 1984 से 86 तक विदेश मंत्री भी थे. वो खांटी नेता थे.
भैरोसिंह शेखावत ने सरकार बनाने का दावा पेश किया
बीजेपी 95 सीटें लेकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. बहुमत से लिए 101सीटें चाहिए थी. जिससे बीजेपी 06 सीटें दूर थी. कांग्रेस को 76 सीटें मिली थी. निर्दलीयों को 21 जगह जीत मिली थी. शेखावत ने तब निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया.
कांग्रेस भी सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ में लगी थी
कांग्रेस भी 76 सीटों के बाद भी सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ में लगी थी. विधायकों की खरीद-फरोख्त का खेल शुरू हुआ. सियासी माहौल गर्माने लगा. तब भैरोसिंह शेखावत ने राजभवन के सामने विधायकों की परेड कराई, धरना भी दिया. बीजेपी नेता लालकृशष्ण आडवाणी भी जयपुर आए.
आखिरकार राज्यपाल ने शेखावत को बुलाया
ये उठापटक सात दिनों तक चलती रही. आखिरकार दबाव बढ़ने लगा. कांग्रेस को महसूस हो गया कि वो शायद सरकार नहीं बना पाएगी. दबाव में राज्यपाल बलिराम भगत को शेखावत को सरकार बनाने के लिए बुलाना ही पड़ा. शेखावत ने सरकार बनाई.
तब आडवाणी की रथयात्रा से अल्पमत में आई थी शेखावत सरकार
इससे पहले भी भैरोसिंह शेखावत को दो साल पहले ऐसे ही सत्ता संघर्ष का सामना करना पड़ा था. तब मामला भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से जुड़ा हुआ था.
जनता दल ने समर्थन वापस लिया
वर्ष 1990 में बीजेपी और जनता दल की सरकार के मुखिया भैरोंसिंह शेखावत थे. मार्च में सरकार बनी थी. अक्टूबर में जब बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोक कर बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया तो बीजेपी ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किए. जयपुर में प्रदर्शनों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई. टकराव, आगजनी के बाद पुलिस फायरिंग हुई, कर्फ्यू लगाना पड़ा. जनता दल ने शेखावत सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
जनता दल में फूट से बची थी सरकार
जनता दल के ऐसा करते ही भैरोसिंह शेखावत की सरकार अल्पमत में आ गई. बीजेपी के पास तब 85 विधायक थे. जनता दल के पास 55. कांग्रेस और जनता दल ने शेखावत से इस्तीफा मांगा. इसी दौरान जनता दल में फूट पड़ गई. जनता दल नेता दिग्विजय सिंह ने पार्टी से बगावत करके 25 विधायकों के साथ अलग पार्टी बनाई. उसका नाम रखा गया जनता दल(दिग्विजय). इस नए दल ने तुरंत शेखावत को समर्थन दे दिया. शेखावत सरकार को बचाने में कामयाब रहे.
फिर एक और बार शेखावत हुए थे ऐसी हालत से रू-ब-रू
वैसे इसी तरह की स्थिति से बीजेपी नेता भैरोसिंह फिर एक बार दो-चार हुए थे लेकिन तब वो मुख्यमंत्री की दौड़ में बेशक नहीं थे लेकिन जनसंघ से जरूर जुड़े हुए थे. तब सत्ता संघर्ष में गोली भी चल गई थी.
ये 1967 के चुनावों की बात है
साल 1967 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. तब राजस्थान में विधानसभा में कुछ सदस्यों की संख्या 184 हुआ करती थी. किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस पार्टी 89 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन बहुमत से 03 सीट दूर थी. तब स्वतंत्र पार्टी को 48, जनसंघ को 22 और सोशलिस्ट पार्टी को 8 सीटें मिली थी.
कांग्रेस बहुमत से 03 सीटें दूर थी
कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. वहीं दूसरी ओर स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ और सोशलिस्ट पार्टी ने भी निर्दलीय विधायकों के सहयोग से सरकार बनाने का दावा किया. तब राज्यपाल संपूर्णानंद थे. जो कांग्रेसी नेता रह चुके थे. फैसला उन्हें ही करना था. कांग्रेस की ओर से मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, तो विपक्ष की तरफ से लक्ष्मण दिग्विजय सिंह.
राजभवन में जबरदस्त चली थी रस्साकशी
राजभवन में दोनों खेमे जबरदस्त रस्साकशी में लगे थे. विपक्षी खेमे का नेतृत्व भैरोंसिंह शेखावत, लक्ष्मण सिंह और गायत्री देवी कर रहे थे. दो-तीन दिन ये हालत रही. विपक्ष ने आरोप लगाया कि राज्यपाल जानबूझकर उन्हें सरकार बनाने के लिए नहीं बुला रहे हैं जबकि टोटल नंबर उनके पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त हैं.
फायरिंग हुई एक की मौत हो गई
विपक्ष ने विरोध में रैली की. प्रदर्शन उग्र हो गया और पुलिस को गोली चलानी पड़ी. इसमें एक शख्स की जान चली गई. आखिरकार राज्यपाल ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बुलाया. मोहनलाल सुखाड़िया चौथी बार मुख्यमंत्री बने.
फिर राजस्थान में सत्ता संघर्ष
अब ऐसा ही सत्ता संघर्ष फिर राजस्थान में होता नजर आ रहा है. अबकी बार कांग्रेस में दो धड़े होने से अशोक गहलोत सरकार संकट में आ गई है. हालांकि गहलोत बार बार विधानमंडल की बैठक बुलाकर शक्ति परीक्षण कराने की बात कह रहे हैं और राज्यपाल मौन साधे हुए हैं.
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