चीन ने कोविड संकट के दौरान खराब हुई छवि को दुरुस्त करने और अमेरिकी रणनीतिक घेरेबन्दी का जवाब देने के लिए अपना खजाना खोल दिया है। कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि चीन की कवायद भारत को कई जगहों पर प्रभावित कर सकती है। इसलिए सतर्कता से अपनी कूटनीति को आगे बढ़ाना होगा।
चीन की नजर अमेरिका से प्रतिस्पर्धा में उसके सहयोगियों को तोड़ने की है। कूटनीतिक जानकार मानते हैं कि भारत को सतर्कता से अपने सहयोगियों से संपर्क बनाए रखने की जरूरत है। जिससे कोविड संकट के दौरान मिली रणनीतिक बढ़त और भरोसे को भारत अपने पक्ष में भुना सके।
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि चीन को भारत की अमेरिका से मित्रता और अन्य देशों से अच्छे संबंध की वजह से खतरा नजर आने लगा है कि कहीं भारत बहुत आगे ना निकल जाए। खास तौर से जिस तरह से अमेरिका ने चीन के खिलाफ मुहिम चलाई है उसकी वजह से चीन भी काउंटर रणनीति में बहुत से ऐसे कदम उठा रहा है जिनका प्रभाव कई देशों पर पड़ रहा है।
पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि ऐसा लगता है कि नेपाल में पूरी तरह से भारत को लक्ष्य करके चीन अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। अमेरिका भी नेपाल को मदद करना चाहता था, लेकिन चीन ने उसे रोकने की कोशिश की है। चीन की कोशिश यह भी है कि वह ईरान और पाकिस्तान दोनों को मिलाकर चले। कई अन्य मुस्लिम देशों पर भी चीन की निगाहें हैं। जानकारों का कहना है कि चीन ने ईरान में भारी निवेश के लिए समझौता किया है। वह इजरायल में बड़ा निवेश करना चाहता है।
यूरोपीय देशों में पैठ बनाने के लिए अपना खजाना खोलना चाहता है। उसने फ्रांस में भारी निवेश की मंशा जाहिर की है। फ्रांस इन दिनों भारत के प्रमुख रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरा है। सूत्रों का कहना है कि ये बहुपक्षवाद का दौर है इसलिए किसी भी देश के साथ संबंधों को सीमित दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता। हरेक देश अपने फायदे के हिसाब से समझौता कर रहा है।
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