Thursday, 22nd May 2025

Sawan Maas 2020: शिवप्रिय है बिल्वपत्र, जानिए तोड़ने और चढ़ाने के नियम

Thu, Jul 16, 2020 6:49 PM

Sawan Maas 2020: भगवान भोलेनाथ को जो वस्तुएं सबसे ज्यादा प्रिय है उनमें से एक बिल्वपत्र है। सिर्फ एक लोटा जल और उसके साथ बिल्वपत्र चढ़ाने से भोलेनाथ अति प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त को मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं। बिल्वपत्र का गुणगान पौराणिक शास्त्रों में काफी किया गया है और इसको सावन मास में चढ़ाने का काफी ज्यादा महत्व बतलाया गया है।

बिल्वपत्र और महादेव पूजा

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अमृत मंथन के दौरान अमूल्य रत्नों के साथ विष भी निकला था। यह विष इतना भयानक था कि देव और असुर दोनों इससे भयाक्रांत हो गए। उस समय दोनों ने अपनी और सृष्टि की रक्षा के लिए शिव से इस विष का उपाय करने का निवेदन किया। तब महादेव ने इस विष को ग्रहण कर अपने कंठ में रख लिया था और नीलकंठ कहलाए थे। तभी से विष के प्रभाव की गर्मी को ठंडा करने के लिए शिव का जलाभिषेक करते हैं और उसके साथ बिल्वपत्र भी समर्पित करते हैं। बिल्वपत्र की तासीर भी काफी ठंडी मानी जाती है।

ऐसे बिल्वपत्र करें समर्पित

 

महादेव को बिल्वपत्र समर्पित करने में कुछ खास बातों का ख्याल रखना चाहिए। इससे शिव आराधना का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। बिल्वपत्र छिद्रयुक्त नहीं होना चाहिए। शिवलिंग पर तीन पत्ते वाले, कोमल और अखण्ड बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिए। बिल्वपत्र पर चक्र और वज्र नहीं होने चाहिए। बिल्वपत्रों में जो सफेद लगा रहता है उसको चक्र कहते हैं और डण्ठल में जो गांठ होती है उसको वज्र कहते है। बिल्वपत्र शिवलिंग पर उलटा चढ़ाना चाहिए अर्थात उसका चिकना वाला हिस्सा नीचे की ओर रहना चाहिए।

बिल्वपत्र तोड़ने के नियम

 

बिल्वपत्र तोड़ने के लिए कुछ तिथि और वार का ख्याल रखना चाहिए। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि को, संक्रान्ति और सोमवार को बिल्वपत्र नहीं तोड़ने चाहिए। किंतु इन दिनों में पहले से तोड़कर रखा गया बिल्वपत्र चढ़ाया जा सकता है। यदि ताजे बिल्वपत्र उपलब्ध नहीं है तो शिवलिंग पर समर्पित बिल्वपत्र को धोकर चढ़ाया जा सकता है।

बिल्वपत्र के प्रकार

 

बिल्वपत्र के भी कुछ प्रकार होते हैं। सामान्यत: तीन पत्तियों वाले बिल्वपत्र पाए जाते हैं और शिवजी को यही समर्पित किए जाते हैं। तीन पत्तियों से अधिक पत्ते वाले बेलपत्र अत्यन्त पवित्र माने जाते हैं। चार पत्ती वाला बिल्वपत्र को ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। जबकि पांच पत्ती वाले बिल्वपत्र को शिव स्वरूप माना जाता है। छह से लेकर इक्कीस पत्तियों वाले बिल्वपत्र मुख्यत: नेपाल में मिलते हैं। इनका प्राप्त होना तो अत्यन्त ही दुर्लभ माना जाता है।

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