जयपुर. राजस्थान की राजनीति में आज जो मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत की सरकार के साथ खेमेबाजी हो रही है, वह यहां की राजनीति में कोई नई बात नहीं है। ऐसा ही भैरों सिंह शेखावत के साथ 1990 और 1996 में दो बार हुआ था। दोनों बार शेखावत अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे। इसी के चलते उनका भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा कद माना जाता है। दूसरी तरफ, कांग्रेस में भी यहां एक बार जवाहर लाल नेहरू के करीबी रहे मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास को इस्तीफा देना पड़ा था।
अमेरिका इलाज कराने गए तो पीछे तख्तापलट की तैयारी हो गई
जनता दल के विधायक टिकट पर जीत कर आए भंवर लाल शर्मा ने 1996 में शेखावत सरकार के तख्तापलट के प्रयास किए थे। शेखावत अमेरिका में हार्ट का ऑपरेशन करवाने गए थे। इस बीच शर्मा ने निर्दली राज्यमंत्री शशि दत्ता के साथ सरकार को गिराने की तैयारी कर ली थी। इसमें शर्मा ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भजनलाल की मदद ली थी।
अमेरिका से ऑपरेशन कराए बिना लौट आए थे शेखावत
निर्दलीय करौली विधायक रणजी मीणा को लालच दिया गया। साथ ही मंत्री बनाने का वादा भी किया, लेकिन मीणा ने यह बात शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी तक पहुंचा दी। उस समय राजवी, शेखावत के साथ अमेरिका में थे। इसके बाद शेखावत डॉक्टरों के मना करने के बाद भी बिना ऑपरेशन कराए लौट आए थे। शेखावत ने लौटने के बाद विधायकों और मंत्रियों को चौखी ढाणी में ले जाकर ठहरा दिया। करीब 15 दिन तक वे यहीं रुके रहे। इसके बाद विधानसभा में बहुमत सिद्ध किया।
शर्मा ने कहा- धोखा मिला था, इसलिए सरकार गिराने की कोशिश की
भंवर लाल शर्मा का कहना है कि 1990 में केंद्र में तत्कालीन वीपी सिंह सरकार के समय राजस्थान में शेखावत सरकार को बचाने में उनका अहम योगदान था। इसी के चलते उपचुनाव में शेखावत ने राजाखेड़ा से चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया था। जब दूसरा उम्मीदवार तय कर लिया तो उन्हें ठेस पहुंची। इसी के चलते उन्होंने 1996 में शेखावत सरकार को गिराने का फैसला कर लिया।
बगावत का पहला दौर 1954 में हुआ था
1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खास माने जाने वाले मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास को पद गंवाना पड़ा था और वोटिंग के बाद मोहनलाल सुखाडिया को सीएम बनाया गया था। पिछले 23 साल में कांग्रेस 3 बार सत्ता में आई और दिग्गज नेताओं में कलह भी हुई, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सत्ता बचा गए। अब फिर से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट बगावत पर है। लेकिन आलाकमान ने पायलट को ही प्रदेशाध्यक्ष पद से हटा दिया।
1980 के बाद 10 साल में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 5 मुख्यमंत्री बदले
मार्च 1980 से मार्च 1990 तक के शासन काल में सबसे ज्यादा सीएम बदले। राष्ट्रपति शासन के बाद चुनावों में मार्च 1980 में कांग्रेस ने जगन्नाथ पहाड़िया को सीएम बनाया। उनके काम करने के तरीके और ब्यूरोक्रेसी के फीडबैक के बाद आलाकमान ने जुलाई 1981 में उन्हें हटाकर शिवचरण माथुर को सीएम बना दिया। फरवरी
1985 में भरतपुर में मानसिंह एनकाउंटर की घटना हुई। जाट समाज के आक्रोश को शांत करने के लिए आलाकमान ने शिवचरण माथुर को हटा दिया। हीरालाल देवपुरा को कार्यवाहक सीएम बना दिया। मार्च 1985 में हरिदेव जोशी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन पार्टी का विरोधी गुट लगातार जोशी के खिलाफ एक्टिव रहा। राजीव गांधी ने जोशी को बुलाकर इस्तीफा ले लिया और असम का राज्यपाल बना कर भेज दिया।
जनवरी 1988 में शिवचरण माथुर को फिर से मुख्यमंत्री बनया, लेकिन लोकसभा चुनावों में हुई हार के बाद सीएम शिवचरण माथुर का इस्तीफा हो गया। हरिदेव जोशी को फिर से दिसंबर 1989 में मुख्यमंत्री बनाया गया।
आलाकमान के आशीर्वाद के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे मिर्धा
सीएम बरकतुल्लाह खान की हार्ट अटैक से मौत के बाद अगस्त 1973 में हरिदेव जोशी को सीएम बनाया। जाट नेता रामनिवास मिर्धा के विरोध के बाद विधायक दल के नेता के लिए वोटिंग हुई। मिर्धा को हरिदेव जोशी से कम वोट मिले और जोशी मुख्यमंत्री बने रहे।
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