इंदौर की जिस कंपनी इंडिसन एग्रो ने तीन बैंकों को 180 करोड़ की चपत लगाई है उसका कर्ता-धर्ता पहले खुद एक दाल मिल में नौकरी करता था। वहां से सीखे धंधे के गुर का फायदा उठाकर खुद की कंपनी बनाई। फिर दाल, ग्वार सीड आदि की फर्जी लॉरी-रिसिप्ट बिल्टी बनाकर कागजों पर व्यापार बढ़ाता गया। इस फर्जीवाड़े के लिए उसने जिन फर्मों से करोड़ों का माल खरीदना दिखाया, उन्हीं को बेचना भी दिखाया। बैंकें भी आंख बंद कर सीसी लिमिट बढ़ाती रहीं। जब तक बैंक होश में आते तब तक विजय जैन, उसके साथी देवराज और महेंद्र जैन एसबीआई इलाहाबाद बैंक और आईसीआईसीआई को 180 करोड़ से ज्यादा की चपत लगा चुके थे।
इंदौर में रचे गए इस 180 करोड़ के घोटाले में हाल ही में सीबीआई ने इंदौर जोधपुर के कई ठिकानों पर दबिश दी है। जलगांव की दो और नागपुर की एक फर्म भी जांच के दायरे में हैं। कंपनी इंडिसन एग्रो का मुखिया विजय जैन पहले खुद भी इंदौर की जेजे दाल मिल में नौकरी करता था। सीबीआई के प्रारंभिक पड़ताल में सामने आया है कि कंपनी ने जोधपुर, जलगांव, इंदौर की 16 फर्मों के जरिए करोड़ों के ग्वार सीड की भी नकद में खरीदी बिक्री दिखाई है। बाद में यह पैसा दूसरे धंधों में डाइवर्ट कर दिया गया।
कागजों पर कारोबार से बढ़ाते रहे बैंक क्रेडिट की लिमिट
वेट के जमाने में परिवहन के लिए आज के जीएसटी के ई-वे बिल की तरह लॉरी-रशीद की जरूरत होती थी। इंडिसन एग्रो ने अपनी बैंक क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए फर्जी लारी रशीद बनाई। जिन फर्मों से माल खरीदना दिखाता, उन्हीं को बेचना भी दिखाता। इसी इंटरनल ट्रेडिंग के दम पर बढ़ा हुआ टर्नओवर दिखाया और उस के दम पर बैंक आंख बंद कर कैश क्रेडिट लिमिट बढ़ाते रहे।
सरकारी बैंकों को तो पता ही नहीं चला, निजी बैंक ने पकड़ा घोटाला
जब कंपनी ने दिए गए कर्ज के बदले बैंकों को ब्याज का भुगतान बंद किया तब बैंक हरकत में आए। इंदौर मे एसबीआई और इलाहाबाद बैंक ने इंदौर की ही एक सीए फर्म एम मेहता को इन्वेस्टिगेशन ऑडिट का काम सौंपा लेकिन वह घोटाले की तह तक नहीं पहुंच पाए। निजी बैंक आईसीआईसीआई ने जरूर जयपुर की एक चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म, राजवंशी एसोसिएट को काम सौंपा और उसने घोटाले की परतें खोल कर रख दी। तब जाकर दोनों सरकारी बैंकों ने मजबूरन सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई।
इंदौर के साथ जोधपुर, जलगांव, और नागपुर की 16 फर्में जांच के घेरे में
सरकारी बैंकों ने सीबीआई को की गई शिकायत में कहा है कि उनके स्टाफ का कोई व्यक्ति इस घोटाले में शामिल नहीं हैं। चार्टर्ड अकाउंटेंट हाउस विजयवर्गीय बताते हैं कि फर्जी लाॅरी रशीद से इतना बड़ा नगद कारोबार, बिना स्टॉक वेरिफिकेशन के लगातार सीसी लिमिट बढ़ाते जाना, यह सब बिना बैंक स्टाफ की सहमति के हो ही नहीं हो सकता है। सबसे चौंकाने वाला तथ्य है कि जोधपुर, जलगांव, इंदौर और नागपुर की 16 फर्म से करोड़ों में खरीदी बताई है उन्हीं को बेचना भी दिखाया है। फिर भी बैंकों ने ध्यान नहीं दिया।
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