Thursday, 22nd May 2025

मोरारी बापू का कॉलम / सिख-जैन-हिंदू सभी के पास अपना एक शास्त्र है, इस कठिन समय में शास्त्र रूपी मंत्री हमारे पास होना चाहिए, उसका मार्गदर्शन जरूरी है

Mon, Jul 6, 2020 3:43 PM

श्री हनुमानजी लंका जाकर सीताजी की खोज के लिए सभी जगह घूमते हैं। वे कहीं नहीं मिलतीं। फिर विभीषण के आंगन में जाते हैं और कुछ विशेष दृश्य देखकर उन्हें लगता है कि लंका में एक सज्जन, साधु पुरुष निवास करते हैं। विभीषण से उनकी भेंट होती है। उनसे हनुमानजी कहते हैं कि मुझे सीताजी तक पहुंचने का उपाय बताएं। विभीषण उपाय बताते हैं। आश्रम में रहकर साधु जीवन जीना सरल है, लेकिन विभीषण जहां रहते हैं, वह लंका कैसी है?

लंका निसिचर निकट निवासा। 
इहां कहां सज्जन कर बासा

चारों ओर मद्यपान, आतंक, फरेब, भ्रष्टता। ऐसी स्थिति में एक आदमी हरि की आराधना करता है। एक आदमी सज्जन बनकर जी रहा है। विभीषण की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि वे ऐसी जगह रहकर भी हरि को भज सकते हैं और हनुमानजी को उपाय बता सकते हैं।

तुलसी तीन शब्द प्रयुक्त करते हैं विभीषण के लिए। एक शब्द है ‘सज्जन’ दूसरा शब्द है ‘साधु’ और तीसरा शब्द प्रयुक्त हुआ है ‘संत।’ यह क्रमशः आंतरिक विकास की भूमिका है। यानी युक्ति बताने वाला सज्जन है। यही साधु है। यही संत है। और ऐसे कोई सिद्ध पुरुष युक्ति बताएं तो ही भक्ति तक पहुंच सकते हैं।

दूध में और अमृत में बहुत फर्क है। यह युक्ति अमृत है। विभीषण ने हनुमानजी को भक्ति तक, शांति तक, परम शक्ति तक पहुंचने के लिए युक्ति बताई। 

किसी सिद्ध पुरुष से जीवन जीने की युक्ति जान लें तो जीवन सुंदर हो जाता है। ऐसा ही उपाय हमें किसी से जानना होगा। और इसके लिए कुछ वस्तुओं की आवश्यकता होगी। ‘रामायण’ में लिखा है कि विभीषण जब राम के पास पहुंचते हैं, तब अपने मंत्रियों को भी लेकर जाते हैं।

वे कौन-से मंत्री लेकर गए थे, उनके बारे में कुछ नहीं लिखा है। लेकिन, विभीषण जिन मंत्रियों को साथ ले गए, ऐसे मंत्रियों की खोज मैंने की है। उनका संग हमें मिल जाए तो हम भी परम तक पहुंच सकते हैं। 

एक मंत्री का नाम तो ‘रामायण’ में है, सुमंत। दशरथ के मंत्री हैं सुमंत। सुमंत सारथि भी हैं और मंत्री भी हैं। सुमंतरूपी मंत्री हमें मिल जाए तो हम परम तक पहुंच सकते हैं। सुमंत यानी कोई कल्याणकारी मंत्र, कोई बुद्धिपुरुष से मिल जाए तो वह बहुत बड़ा मंत्री है।

‘रामायण’ के आधार पर कहूं तो दूसरा है वैराग्यरूपी मंत्री। जब त्याग करने का वक्त आए तब पहल करना। वैराग्यरूपी मंत्री हमें राम तक पहुंचाता है। तीसरा मंत्री है शास्त्र। आप जिस धर्म के अनुयायी हैं, उसके भगवान का शास्त्र।

पैगंबर साहब का शास्त्र है। सिख भाइयों का शास्त्र है। जैन भाइयों का अपना शास्त्र है। हिन्दुओं के पास वेद हैं। ‘रामचरित मानस’ का ज्ञान है। अपने शास्त्र रूपी एक मंत्री हमारे पास होना चाहिए। उसका मार्गदर्शन जरूरी है। 

वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि इस समय पूरे विश्व में जो शांति है, उतनी कभी नहीं थी। वे आध्यात्मिक आदमी नहीं है, वैज्ञानिक हैं। यद्यपि उनका अनुमान अच्छा है लेकिन फिर भी हम ऐसा कहते हैं कि आजकल अशांति तो बहुत है और दिखाई भी देती है।

ये सब दिखाई देता है इसका कारण एक ही है कि इस समय हमारे पास जानकारी देने वाले साधन इतनी बड़ी मात्रा में हैं कि एक छोटी-सी घटना घटे और दूसरे ही सेकंड पूरी दुनिया में बात फैल जाती है। और ये बात सतत घूमती रहती है, इसलिए हमें सब कुछ अशांत लगता है।

पहले के युगों के संदर्भ में सोचिए तो मुझे ऐसा लगता है कि पहले दो समाज लड़ते थे, दो समाजों में पूरी दुनिया विभक्त थी। देव और दानव, सुर और असुर, सतयुग से यह दो समाज सतत लड़ते ही रहे! उसके बाद ऐसा समय आया कि दो परिवार लड़ने लगे। कौरवों और पांडवों, इन दोनों के बीच पूरा परिवार खत्म हो गया!

‘रामायण’ काल में देखें तो लंका और अयोध्या के बीच में झगड़ा हुआ है। दशानन वृत्ति और दशरथी वृत्ति के बीच वह संघर्ष था। आजकल दो समाज के बीच युद्ध नहीं होता। आजकल जो संघर्ष है वह केवल व्यक्ति-व्यक्ति के बीच संघर्ष है कि वो मुझसे आगे निकल गया! ऐसे व्यक्ति-व्यक्ति के बीच लड़ाइयां शुरू हुई हैं। ऐसे विषम समय में हमें जीवन के आकार का अनुभव करना हो तो कोई बुद्धिजीवी व्यक्ति से उसकी युक्ति प्राप्त करनी होगी।

Comments 0

Comment Now


Videos Gallery

Poll of the day

जातीय आरक्षण को समाप्त करके केवल 'असमर्थता' को आरक्षण का आधार बनाना चाहिए ?

83 %
14 %
3 %

Photo Gallery