नई दिल्ली. 1954 में चीन में एक किताब आई थी। नाम था "अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न चाइना"। इस किताब में चीन का नक्शा भी छपा था, जिसमें लद्दाख को उसका हिस्सा बताया गया था। फिर जुलाई 1958 में चीन से निकलने वाली दो मैगजीन "चाइना पिक्टोरियल" और "सोवियत वीकली" में भी चीन ने अपना जो नक्शा छापा था, उसमें भारतीय इलाकों को अपना बताया। भारत ने दोनों ही बार आपत्ति भी जताई, लेकिन चीन ने कहा कि नक्शे पुराने हैं और उसके पास नक्शे ठीक करने का टाइम नहीं है।
इस बीच 1956-57 में चीन ने शिंजियांग से लेकर तिब्बत तक एक हाईवे बनाया। इस हाईवे की सड़क अक्साई चिन से भी गुजार दी। उस समय तक अक्साई चिन भारत का ही हिस्सा था और सड़क बनाने से पहले चीन ने बताया तक नहीं। भारत को भी इस बारे में अखबार के जरिए ही पता चला था।
शिंजियांग-तिब्बत हाईवे पर जब उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन के राष्ट्रपति झोऊ इन-लाई को पत्र लिखा तो, झोऊ ने सीमा विवाद का मुद्दा उठा दिया और दावा कर दिया कि उसकी 5 हजार स्क्वायर मील यानी करीब 13 हजार स्क्वायर किमी का इलाका भारतीय सीमा में है।
ये पहली बार था जब चीन ने आधिकारिक रूप से सीमा विवाद का मुद्दा उठाया। झोऊ ने ये भी कहा कि उनकी सरकार 1914 में तय हुई मैकमोहन लाइन को भी नहीं मानती। मैकमोहन लाइन 1914 में तय हुई थी।
भारत की 15 हजार 106 किमी लंबी सीमा 7 देशों से लगती है। ये 7 देश हैं- बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, भूटान और अफगानिस्तान। इन 7 देशों में से सिर्फ चीन-पाकिस्तान और नेपाल ही हैं, जिनके साथ हमारा सीमा विवाद चल रहा है।
बांग्लादेश के साथ भी पहले महज 6.1 किमी की सीमा को लेकर विवाद था, जिसे 2011 में उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे में सुलझा लिया गया था। उसके बाद 2014 में भारत-बांग्लादेश के बीच समुद्री सीमा का मामला भी हल कर लिया गया।
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