रायपुर. जॉन राजेश पॉल | कोरोना को लेकर बदलते परिवेश का असर अब पचास हजार स्कूलों पर भी दिखने लगा है। गर्मी की छुटिट्यों के बाद जब स्कूल खुलेंगे तो करीब पचपन लाख बच्चों में लाइफ स्टाइल बदली नजर आएगी। हर बच्चे का मेडिकल टेस्ट, मास्क, स्कूल लगने, बैठने, पालियों और खाने-पीने को लेकर नया सिस्टम सामने आएगा। शिक्षा विभाग का अनुमान है कि कोरोना के साथ अभी लंबा वक्त गुजारना होगा अलबत्ता स्कूलों की कार्यप्रणाली बदलने रणनीति बनाई जा रही है।
स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. टेकाम ने भास्कर को बताया कि निजी स्कूलों की फीस को लेकर कई वर्षों से शिकायतें मिल रही हैं। अब तक इसे लेकर कोई कानून नहीं बना इस वजह से शासन भी ठोस कार्रवाई नहीं कर पाता है। इसलिए हमने पहले इस संबंध में विशेषज्ञों की कमेटी बना दी। उसकी रिपोर्ट आने पर उसमें जो भी सुझाव होंगे। उसके आधार पर कानून का खाका तैयार किया जाएगा। इसे विधानसभा में पारित कराया जाएगा। सरकार चाहती है कि बच्चों व पालकों की जेबें खाली न हो उसके साथ ही स्कूलों द्वारा दी जा रही सुविधाओं का ध्यान रखते हुए समुचित फीस भी तय हो। स्वाभाविक रूप से जो निजी स्कूल लक्सरीयस सुविधाएं दे रहे हैं उनकी फीस ज्यादा है और उसमें कुछ सुधार हो सकता है तो वो भी देखेंगे। टीचर्स की सैलरी कम होने की शिकायतें हैं इसके लिए भी वेतन बैंड जैसा स्तर बनाया जाएगा। ताकि योग्यता के अनुसार शिक्षकों को समुचित वेतन मिले। इस बारे में हमने दूसरे राज्यों में लागू कानून की कापी भी मंगवाई है जिसका परीक्षण कर रहे हैं। इसके बाद ही कोई ठोस कानून को सदन में लाया जाएगा। टेकाम ने कहा कि अभी हमारे पास एक महीने का वक्त है क्योंकि गर्मी की छुट्टी चल रही है। एक महीने में यानी 15 जून तक और उसके बाद क्या परिस्थिति होगी कोरोना और लॉकडाउन को लेकर इस मंथन चल रहा है। शेष|पेज 5स्कूल कब खोलें और किन गाइड-लाइन को अनुसार खोलें इसका ब्लूप्रिंट तैयार हो रहा है। हमने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री से भी कहा है कि स्कूल कब और कैसे खोलना है यह तय करने का अधिकार हमें (राज्य सरकार) दिया जाए। इसकी वजह यह कि हमारी परिस्थिति नार्थ-ईस्ट-साउथ व अन्य राज्यों से बिल्कुल अलग है। डॉ. टेकाम ने कहा कि लॉक डाउन में छूट के बाद हमने देखा कि किस तरह लोग बाजारों में और सड़कों पर निकल पड़े। इससे सोशल डिस्टेसिंग का पालन टूटा। इस वजह से हमने फैसला लिया कि बोर्ड की बाकी परीक्षाएं जो नहीं हो सकीं हैं वे रद्द् करें और इंटरनल इक्जाम के असेस्मेंट के आधार पर परीक्षार्थियों को मार्क्स दे दिए जाएं। क्योंकि परीक्षाएं लेते तो बच्चे व उनके परिजन रोल नंबर, कमरे ढूंढने व दूसरी बातों के लिए भीड़ लगा लेते इससे हालात बिगड़ सकते थे।
अब ऐसी होगी नई व्यवस्था
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