Saturday, 7th June 2025

लॉकडाउन का दर्द / इंदाैर में फंसे पश्चिम बंगाल के 250 लोगों की 8 बसों से घर वापसी, बस में बैठते ही बोले - लॉकडाउन खुला तो फिर काम करने आएंगे

Sat, May 16, 2020 5:24 PM

 

इंदौर के सराफा में जिनता भी सोने-चांदी का कारोबार होता है, उन गहनों को पश्चिम बंगाल से आए यही कारीगर तरासते हैं

 

इंदौर. लाॅकडाउन के बाद से ही यहां-वहां फंसे श्रमिकों की घर वापसी शुरू हो गई है। पश्चिम बंगाल से काम करने इंदौर आए 250 कारीगर भी लॉकडाउन का शिकार हो गए थे। काम-धंधे बंद होने के बाद खाने-पीने की परेशानी होने पर इन्होंने पश्चिम बंगाल में अपने परिजनों से संपर्क किया। उन्होंने वहां के स्थानीय नेताओं से बात की। इसके बाद इनकी परेशानी भाजपा महासचिव और पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय तक पहुंची, जिसके बाद पास की व्यवस्था कर शुक्रवार रात इन्हें इनके घर रवाना किया गया। बस में सवार होकर घर वापसी कर रहे कारीगरों ने कहा कि लॉकडाउन खुला तो फिर से काम करने आएंगे।

घर वापसी कर रहे कारीगर बोले...

  • मोहम्मद रफीक ने बताया कि वह छह महीने से गणेश नगर रेडीमेड कॉम्प्लेक्स में रहकर काम कर रहा था। लॉकडाउन के कारण फंस गया था। अभी बस से कोलकाता जा रहा हूं। एक बस में हम 38 लोग सवार हैं, सभी लोग पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जगहों से हैं।
  • तुषार दास ने बताया कि वह पश्चिम बंगाल के गंगा सागर से यहां काम करने आया था। यहां पर खाने-पीने की परेशानी है। इसलिए जा रहा हूं। फैक्ट्री के मालिक से मदद की गुहार लगाई, लेकिन वहां से भी कुछ नहीं हुआ। उनसे काम के रुपए मांगे तो बोला कि अभी मेरे पास रुपए नहीं हैं, लॉकडाउन खुलने के बाद ही दे पाऊंगा। लाॅकडाउन खुलने के बाद फिर से काम के लिए आएंगे। तुषार के अनुसार मेरे दोस्त ने फोन कर बताया कि यहां के एक बड़े नेता ने बस की व्यवस्था की है। अपने घर चलना हो तो चलो। 
  • मोहम्मद मुफीजुल ने बताया कि लॉकडाउन में फंसा हुआ था। काम करके जो भी थोड़े बहुत रुपए जोड़कर घर भेजने के लिए रखे थे, सब खत्म हो गया। काम-धंधा बंद होने से काफी परेशानी हुई तो हम यहां के नेता कैलाश विजयवर्गीय से मिले। उन्हें अपनी परेशानी बताई। इसके बाद उन्होंने हमारे लिए दो बसों की व्यवस्था की। खाने-पीने को देकर हमें अपने घर के लिए रवाना किया।
  • फिरोजा ने बताया कि घर गांव में सब रो रहे थे कि तुम वहां अकेले हो, खाने-पीने को भी कुछ नहीं है। काम-धंधे का कुछ पता नहीं कब चालू होगा। कैसे भी करके के घर लौट आओ। इसके बाद हम कैलाश जी से मिले उन्हें बताया कि हम यहां फंसे हैं। भूखे-प्यासे जीने को मजबूर हैं। इसके बाद उन्होंने हमारा बहुत सपोर्ट किया। खाने-पीने के साथ ही बस की भी व्यवस्था की।

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