रायपुर. गौरव शर्मा | 25 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन लागू है और तभी से प्रदेशभर के मठ-मंदिर बंद हैं। 28 जिलों के 11 हजार गांवों में ही 50 हजार से ज्यादा मंदिर हैं। शहरों के 5 हजार मंदिरों को मिलाकर ये आंकड़ा 55 हजार से ज्यादा हो जाता है। इनमें केंद्रीय पुरातत्व विभाग और छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पुरातत्व द्वारा संरक्षित 100 मंदिर भी शामिल हैं। विभाग के अफसरों की मानें तो लाॅकडाउन से पहले तक इन संरक्षित मंदिरों में ही प्रतिदिन देशभर से 2-3 लाख श्रद्धालु दर्शन के करने के लिए आते थे।
इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब प्रदेशभर के सारे मंदिर भक्तों के लिए बंद हैं। गर्भगृह में रोज पूजा तो हो रही है, लेकिन भक्तों के आने पर पाबंदी है। पहली बार भक्त और भगवान एक-दूसरे से इतने दिनों के लिए दूर हुए हैं। दूसरी ओर मंदिर के बाहर लगने वाली फूल और पूजन सामग्रियों की दुकानें भी बंद हैं। इस वजह से कई मंदिरों में रोज होने वाले भगवान के शृंगार में फेरबदल किए गए हैं। लॉकडाउन के चलते ही कई मंदिरों की सदियों पुरानी परंपराएं भी टूटीं। जैसे दूधाधारी मठ में इस बार रामनवमी पर भगवान का स्वर्ण शृंगार नहीं किया गया। मठ के साढ़े 5 सौ साल के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
श्रीराम मंदिर रायपुर
3 साल में पहली बार बंद हुआ।
1000 से ज्यादा रोज दर्शन करते हैं।
दूधाधारी मठ रायपुर
550 साल में पहली बार बंद हुआ है।
1500 लोग औसतन रोज पहुंचते हैं।
महामाया मंदिर रायपुर
1400 साल में पहली बार बंद हुआ।
1500 से ज्यादा लोग औसतन हर दिन आते हैं।
मां महामाया मंदिर रतनपुर
1000 साल में पहली बार बंद हुआ
8000 दर्शनार्थी रोज पहुंचते हैं।
राजीव लोचन मंदिर राजिम
1400 साल में पहली बार बंद हुआ
700 से ज्यादा लोग रोज आते हैं।
दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा
700 साल में पहली बार बंद
2000 दर्शनार्थी रोज पहुंचते हैं।
मां बमलेश्वरी डोंगरगढ़
2000 साल में पहली बार बंद हुआ।
5000 से ज्यादा लोग रोज दर्शन करते हैं।
शिव मंदिर, भाेरमदेव कवर्धा
1000 साल में पहली बार बंद।
700 दर्शनार्थी रोज पहुंचते हैं।
खल्लारी मंदिर महासमुंद
700 साल में पहली बार बंद।
1000 से ज्यादा लोग रोज आते हैं।
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