पटना. (आलोक द्विवेदी) कोरोना काल में एक सुखद खबर है। पलायन से वीरान हुए गांव गुलजार हो गए है। सुबह-शाम बरगद, पीपल, नीम के पेड़ के नीचे चौपाल सज रही है। लोग अपने अनुभव को साझ कर रहे हैं। कोरोना सहित देश-विदेश की खबरों पर चर्चा कर रहे हैं। ये वही लोग हैं गांव वाले जिन्हें भूतिया (अचानक और कभी-कभी प्रगट होने वाले) कहते हैं।
रोजगार के लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, हैदराबाद सहित दूसरे राज्य गए यही भूतिया अब गांव आ गए हैं। कई तो ऐसे हैं जो 10 साल बाद लौटे हैं। कुछ होली में आए थे। लौटे नहीं थे। लॉकडाउन हुआ तो यहीं रह गए। खुद को किस्मत वाला मान रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान पटना जिले में लगभग 26 सौ लोग लौटे हैं, सभी क्वारेंटाइन में है। ऐसा ही आलम हर जिले में है।
बख्तियारपुर प्रखंड के केवल बिगहा, घांघ, शावनी, सरैया जैसे गांवों में होली और छठ को छोड़ कभी-कभी 100 लोग भी नहीं दिखाई देते थे। लेकिन, आज सभी आबाद है। खुसरूपुर की मोसिमपुर पंचायत की भी यही कहानी है। केवल विगहा के सिंकू कुमार हिमाचल प्रदेश के गुना शहर में काम करते थे। लौट आए। सबसे पहले अपने टूटे-फूटे घर की मरम्मत की। कहते हैं यहीं काम मिल गया, तो ताउम्र बिहार छोड़कर नहीं जाऊंगा।
संपतचक के नीतीश कुमार कहते हैं कि कोरोना ने नई जिंदगी दी है। पैसे से बड़ा परिवार है। यही सिखाया है वायरस ने। यहीं के अभिनव कुमार, पुणे से 9 साल बाद लौटे हैं। कहते हैं-पटना नजदीक है। अब वहीं काम करूंगा। लौटूंगा नहीं। हरियाणा की कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले संतोष कुमार ने तो बख्तियारपुर प्रखंड में ही ठेला चलाना शुरु कर दिया है।
राशन कार्ड और मनरेगा में रजिस्ट्रेशन करवा रहे लोग
दूसरे राज्यों से लौटे लोगों ने अपना राशन कार्ड बनवाना, मनरेगा में रजिस्ट्रेशन करवाना शुरू कर दिया हैं। साइकिल, मोटरसाइकिल, इलेक्ट्रिक सामान बनाने के साथ चार पहिया वाहन चलाना सीख रहे हैं, ताकि फिर बाहर जाना नहीं पड़े।
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