जयपुर. 13 मई...सिर्फ एक तारीख नहीं, जयपुर की आत्मा को झकझोरने वाला वो दिन है, जब मंदिरों की आरती के घंटे और नगाड़े अचानक खामोश हो गये...बमों के धमाके गूंजे। कुछ ही घड़ियों में लाशें एसएमएस अस्पताल पहुंचना शुरू हुईं तो ढेर लग गए। गिनती मुश्किल थी। तब भी फ्रंट लाइन वॉरियर्स डॉक्टर थे। कुछ परिवारों का दुख हर घर ने महसूस किया। सब मददगार बने। अस्पतालों में सहयोग का मेला लग गया। मगर अब कोरोना ने मदद के हाथों को संक्रमित कर दिया है। तारीख वही है। दर्द वैसा ही। डर भी... लेकिन जज्बा पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर। हम अब एकसाथ जुड़ भले नहीं सकते, मगर अपील है कि जयपुर 12 साल पुराने उसी जज्बे से फिर जीतेगा।
डेडबॉडी ले जाने को तैयार नहीं, अंत्येष्टि का विरोध : डॉ. अनिल
तब 58 डेडबॉडी निकलवाई थी। पूरी रात जुटे थे। मदद करने वालों का भी रेला था, लेकिन आज कोरोना का आतंक देखिए, अपने ही अपनों से दूरी बना रहे हैं। डेडबॉडी को ले जाने के लिए एंबुलेंस तैयार नहीं है। अंतिम संस्कार के लिए लोग विरोध कर रहे हैं। कई मामलों में अपनों की दूरी भी दिल दुखाती है, जबकि बीमारी के कायदों के साथ मदद का हाथ नहीं छोड़ना है। - डॉ. अनिल सोलंकी, असिस्टेंट प्रोफेसर, फोरेंसिक मेडिसिन, एसएमएस
कोरोना ब्लास्ट के बाद की शांति धमाकों जैसी ही : डॉ. जगदीश
धमाकों के बाद तब भी शहर शांत था और अस्पताल में मदद का शोर गूंज रहा था। कोरोना ब्लास्ट के बाद परकोटे में वैसी ही तनावभरी शांति पनपी है। आज भी हमारे डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, वॉर्ड बॉय सभी की मदद का शोर किसी से छिपा नहीं है। मेडिकोज के जज्बे से आतंकियों के नापाक मंसूबे इंसानियत के आगे पस्त दिखे। इस जंग में भी ऐसी ही जीत होगी।- डॉ. जगदीश मोदी, ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज
खुद सहयोग करें, इस आतंक को भी हराना है : डॉ. अजीत
कोई भी आतंक का साया अवाम की मदद बगैर नहीं जीता जा सकता। धमाकों के समय भी जयपुर के हौसले से हम घायलों काे बचा पाए थे, आज भी वही करना है। तब खून देने वालों की भरमार थी, आज भी मदद दूरी बनाते हुए करनी है। शुरुआती मुश्किलों के बाद कारवां बनता दिख रहा है। लोगों को यही करना है कि डॉक्टर और सरकार की सुझाई बातों का ध्यान रखें।- डॉ. अजीत सिंह, डिप्टी सुपरिटेंडेंट
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