पटना. राज्य में जच्चा-बच्चा की सेहत पर फोकस का नतीजा है कि एक साल में लगभग 10 हजार बच्चों की जान बचा ली गई। यह खुलासा सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2020 के बुलेटिन हुआ है। नए आंकड़ों के अनुसार राज्य की शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। प्रति हजार होने वाली बच्चों की मृत्यु 35 से कम होकर 32 हो गई है।
बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का नतीजा है कि जन्म के समय प्रति हजार तीन और बच्चों की जान बच गई। अब बिहार का शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत के बराबर हो गया। इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक की राज्य शाखा के पूर्व सचिव डॉ. एनके अग्रवाल और दी जार्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के सीनियर फेलो डॉ.विकास केसरी ने बताया कि शिशु मृत्यु दर में तीन अंकों की कमी होने से सालाना लगभग 10 हजार बच्चों की जान बचेगी। यह राज्य की बड़ी उपलब्धी है।
मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से भी कम
बिहार ने मृत्यु दर पर भी लगाम लगाई है। यह दर भी राष्ट्रीय आंकड़े 6.2 से नीचे चली गई है। बिहार में यह प्रति हजार 5.8 है जो राष्ट्रीय दर से 0.4 कम है। जन्म दर में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। यह वर्ष 2017 के 26.4 की तुलना में 0.2 कम होकर 26.2 रह गया है।
जांच-इलाज में सुधार से ये संभव हुआ : मंगल पांडेय
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बताया कि राज्य में शिशु मृत्यु दर में कमी की बड़ी वजह जेंडर आधारित भेदभावपूर्ण में कमी और प्रसव पूर्व होने वाली जांच में हुए सुधार हैं। बेहतर टीकाकरण, सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में बाल चिकित्सा गहन देखभाल इकाई (पिकू), जिला अस्पतालों में नवजातों की देखभाल के लिए एसएनसीयू और लड़कियों की शादी की उम्र में हुई बढ़ोतरी जैसे सामाजिक कारक भी इसमें सहायक हैं।
सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2020
2017 का आंकड़ा | देश | बिहार |
शिशु मृत्यु दर | 33 | 35 |
अशोधित मृत्यु दर | 6.3 | 5.8 |
अशोधित जन्म दर | 20.2 | 26.4 |
2018 का आंकड़ा | देश | बिहार |
शिशु मृत्यु दर | 32 | 32 |
अशोधित मृत्यु दर | 6.2 | 5.8 |
अशोधित जन्म दर | 20.0 | 26.2 |
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