भोपाल. प्रदेश में शराब दुकानें खुलेंगी या नहीं, इसे लेकर राज्य सरकार और ठेकेदार आमने-सामने आ गए हैं। ठेकेदार लॉकडाउन में दुकानें नहीं खोलना चाहते, जबकि सरकार ग्रीन जोन वाले 24 जिलों में राजस्व जुटाने दुकानें खोलने का आदेश दे चुकी है। सरकार ने ठेकेदारों को स्पष्ट कर दिया है कि यदि वे जिद पर अड़े रहे तो दूसरे विकल्पों पर विचार करेंगे। संभवत: ठेके रद्द भी किए जा सकते हैं। दूसरी ओर, हाईकोर्ट ने भोपाल, इंदौर समेत कई जिलों के 30 शराब ठेकेदारों की याचिका पर सरकार से पूछा है कि जब लॉकडाउन में शराब दुकानें खोलने का समय सरकार ने कम कर दिया है तो इनके ठेकों की पूर्व निर्धारित बिड राशि क्यों नहीं घटाई। कोर्ट ने आबकारी आयुक्त व सरकार को नोटिस जारी कर 19 मई तक जवाब मांगा है। उल्लेखनीय है कि निविदा के वक्त 14 घंटे शराब दुकानें खोलने
की अनुमति थी, जबकि सरकार ने अब 4-5 घंटे दुकानें खोलने का आदेश दिया है।
दिल्ली जैसी व्यवस्था संभव नहीं, क्योंकि...
हमारी आबकारी नीति अलग है। 70% ड्यूटी नहीं लगा सकते। ठेके बंटने के पहले दरें तय होती हैं। एक्साइज ड्यूटी दरों पर लगती है। शराब नीति में साफ है कि कोटे के हिसाब से शराब उठाने पर पहले 5% और बाकी 95% 15 दिन में जमा करना होंगे। नीति में ठेकेदार को तय कोटे की शराब उठानी पड़ेगी। लॉकडाउन में कोटे की 50 फीसदी बिक्री हो, लेकिन एक्साइज ड्यूटी पूरे कोटे की भरना होगी।
सरकार को मार्च-अप्रैल में 1800 करोड़ रु. के राजस्व का नुकसान
तकरार क्यों : सरकार इसलिए दुकान खुलवाना चाहती है क्योंकि दो माह में उसे 1800 करोड़ रु. राजस्व का नुकसान हुआ, मई में एक हजार करोड़ का नुकसान होगा। ठेकेदार इसलिए परेशान हैं क्योंकि उन्हें मिनिमम गारंटी कोटा में तय शराब खरीदनी पड़ेगी, लेकिन उतने खरीदार नहीं होंगे। एक्साइज ड्यूटी तय चुकाना पड़ेगी। कोटे से स्टॉक बढ़ेगा। मिनिमम कोटा मतलब मई का टारगेट देखा जाए तो 10% के हिसाब से ठेकेदारों को ड्यूटी के एक हजार करोड़ रु. चुकाने होंगे।
सरकार का पक्ष- गृह मंत्री नरोत्तम मिश्राने जैसा कहा
ठेकेदारों का पक्ष- मप्र लिकर एसो. के सचिव राहुल जायसवाल बोले
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