बलरामपुर/हरदोई/सुल्तानपुर. कोरोनावायरस (कोविड-19) वैश्विक महामारी की चेन तोड़ने के लिए देशभर में लॉकडाउन है। यातायात के सभी साधन बंद हैं। चिकित्सा से जुड़े संसाधनों को कोरोना की जंग में उतार दिया गया है। लॉकडाउन में कई तरह की दुश्वारियां हैं। जिसे इस रिपोर्ट से समझा जा सकता है। बलरामपुर में एंबुलेंस न मिलने के कारण एक पिता को अपने बीमार बच्चे को अस्पताल पहुंचाने के लिए 18 किमी ठेलिया खींचनी पड़ी। वहीं, हरदोई में एक बेटे को अपने पिता की दवा लाने के लिए 160 किमी साइकिल चलाकर बरेली जाना पड़ा। जब यह बात दवा विक्रेता को पता चली तो उसने दवा आधे दाम पर दे दी और खाने का भी प्रबंध कराया। जानिए तीन शहरों में चार दुश्वारियों की एक रिपोर्ट..
नहीं मिली एंबुलेंस तो बीमार बेटे को 18 किलोमीटर दूर ठेले से पहुंचाया अस्पताल
बलरामपुर जिले के सोनपुर गांव अंगनू उर्फ आंधी के 15 वर्षीय बच्चे राजाराम की मंगलवार को अचानक हालत खराब हो गई। पड़ोसियों ने एम्बुलेंस के लिए टोल फ्री नंबर पर फोन किया, लेकिन कॉल नहीं लगी। इस बीच राजाराम की हालत बिगड़ती जा रही थी। आखिरकार पिता ने ठेलिया पर लादकर 18 किलोमीटर दूर स्थित जिला मेमोरियल अस्पताल पहुंचाया। यहां इमरजेंसी कक्ष खाली पड़ा था। इमरजेंसी के बाहर कुछ स्टॉफ टहल रहा था। अंगनू ने उनसे बच्चे को देखने की बात कही। लेकिन उन लोगों ने उसे संयुक्त चिकित्सालय जाने के लिए कह दिया गया। अंगनू संयुक्त चिकित्सालय पहुंचा, जहां डॉक्टरों ने गंभीर हालत देखकर उसे बहराइच मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। अंगनू ने कहा- मेमोरियल अस्पताल में स्टॉफ ने कहा था कि, हम दवा या इंजेक्शन लगा सकते हैं। लेकिन भर्ती करने की कोई व्यवस्था है। उसने यह भी कहा कि, यदि किसी तबियत बिगड़ती है तो एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पाती है।
बलरामपुर जिला अस्पताल में ठेलिया पर मरीज व उसकी मां।
सीएमएस बोले- बेहद गंभीर थी हालत, इसलिए किया रेफर
प्रभारी सीएमएस एनके बाजपेई ने बताया कि मरीज को बेहोशी हालत में संयुक्त हॉस्पिटल लाया गया था। इमरजेंसी में उसका चेकअप किया तो स्थिति गंभीर लगी, इसलिए उसे बहराइच रेफर कर दिया गया था। इसके लिए उसके परिजन भी तैयार हो गए थे। उस वक्त उसे एम्बुलेंस की सुविधा दी गयी थी।
160 किलोमीटर साइकिल चलाकर बरेली दवा लेने पहुंचा बेटा
हरदोई में शाहबाद तहसील क्षेत्र में रसूलपुर गांव निवासी राजेश कुमार के पिता स्वामी दायल (60) मानसिक रोगी हैं। उनका 20 साल से बरेली के मानसिक अस्पताल से इलाज चल रहा है। एक हफ्ता पहले उनकी दवाएं खत्म हो गई। इससे स्वामी दयाल अस्वस्थ रहने लगे। यह देख बेटे राजेश ने हरदोई व सीतापुर में दवाओं के लिए कई मेडिकल दुकानों के चक्कर काटे। लेकिन दवा नहीं मिली। बताया गया कि, ये दवाएं सिर्फ बरेली में मिलेंगी। राजेश ने बीते शनिवार को दिन भर बरेली हाईवे पर वाहन के मिलने का इंतजार किया। लेकिन शाम तक वाहन नहीं मिला। अगले दिन रविवार को उसने साइकिल से 160 किमी बरेली तक का सफर पूरा करने का निश्चय किया। सोमवार सुबह राजेश ने बरेली पहुंचकर दवा खरीदी। दवा विक्रेता दुर्गेश खटवानी ने कहा- वह एक माह की दवा लेने आया था और पैसे भी पूरे थे। उसे एक माह की दवा आधे दाम पर दी गई। उसके कुछ खाने का भी प्रबंध कराया।
राजेश पिता की दवा लेने के लिए हरदोई से बरेली साइकिल चलाकर पहुंचा।
बंगाल गया था दुल्हनिया लेने, 37 दिनों से बहन के यहां बना मेहमान
सुल्तानपुर जिले में कोतवाली नगर के शास्त्री नगर निवासी सहबान हाशमी 23 मार्च को देशभर में जनता कर्फ्यू से एक सप्ताह पूर्व कोलकाता गए थे। वहां उसकी राशदा हाशमी से 31 मार्च को शादी तय थी। सहबान के साथ उसकी मां और छोटा भाई भी कोलकाता गया था। रिश्तेदारों को भी इस शादी में शामिल होना था। लेकिन लॉकडाउन के चलते वे नहीं जा सके। उधर, तय तारीख पर सहबान व राशदा का सादगी के साथ निकाह हुआ। सहबान ने कहा- एक ही बहन है, भाग्य अच्छा था कि वह कोलकाता में ब्याही है। वह शादी में शामिल हुई थी। उसी के घर में रह रहे हैं। वलीमे की रस्म एक मैरिज लॉन बुक किया था और 150-200 दोस्तों को आमंत्रित किया था। लेकिन, लॉकडाउन के चलते इसे रद्द करना पड़ा। अब दोस्त ताने दे रहे हैं कि जब खिलाना नहीं था तो बुलाया क्यूं था? उधर सहबान ने कोलकाता से लौटकर जिले में भी एक वलीमे का प्रोग्राम रखने का मन बनाया था। लेकिन इस लॉकडाउन में ये भी संभव नहीं है। सहबान ने कहा- सोचा तो ये था कि रमजान और ईद अपने घर पर करेंगे लेकिन लगता ये है के ये भी किस्मत में नहीं है।
सुल्तानपुर के सहबान निकाह करने कोलकाता गए थे, लेकिन लॉकडाउन के बीच वे वहीं फंसे हैं।
सरकारी अस्पताल में प्रसव के लिए 35 सौ रुपए लिए, इलाज के अभाव में नवजात की मौत
बलरामपुर जिले के हरिहरगंज बाजार क्षेत्र निवासी गौतम सोनी ने पत्नी को प्रसव पीड़ा पर बुधवार सुबह करीब 9 बजे जिला महिला अस्पताल में भर्ती कराया। आरोप है कि, स्वास्थ्यकर्मियों ने ऑपरेशन करने की बात कहते हुए 8-10 हजार रुपए की डिमांड की। लेकिन, गौतम ने ऑपरेशन कराने से इंकार कर दिया तो 35 सौ रुपए में नॉर्मल डिलीवरी कराने पर बात तय हुई। रुपए देने के बाद स्वास्थ्यकर्मियों ने प्रसव कराया। लेकिन नवजात रोया नहीं। इसके बाद प्रसूता को लेबर रूम से बाहर कर दिया गया। बेड नहीं दिया गया। इसके चलते प्रसूता अपने तीमारदारों के साथ अस्पताल के गेट पर तड़पती रही। वहीं, नवजात का शरीर धीरे-धीरे नीला पड़ने लगा। बार-बार स्वास्थ्यकर्मियों के पूछने के बाद भी बच्चे का इलाज नहीं किया गया। आखिरकार बच्चे की मौत हो गई।
नवजात की मौत के बाद अस्पताल परिसर में बैठी प्रसूता व परिजन।
लिखित शिकायत मिले तब होगी कार्रवाई
जिला महिला चिकित्सालय के सीएमएस डॉ पीके मिश्रा ने कहा- डिलीवरी के बाद करीब 24 घंटे हम मरीज को अंडर ऑब्जर्वेशन रखते हैं। उसे अस्पताल से बाहर निकालने का कोई मतलब ही नहीं है। उन्होंने बताया कि मरीज अपने मन से कहीं भी गेट पर या और कहीं बैठ जाए उसमें हम कुछ नहीं कह सकते, लेकिन जिनकी भी डिलीवरी होती है उन्हें हम बेड मुहैया कराते हैं। अगर किसी ने डिलीवरी के नाम पर पैसे लिए हैं तो उसकी लिखित शिकायत मेरे पास की जाए तो निश्चित तौर पर दोषी के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
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