रायपुर. किसी ने सच ही कहा है.. जब आगे कोई रास्ता दिखाई न दे तो लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। गुरदासपुर (पंजाब) के रहने वाले 65 वर्षीय बुजुर्ग नीसंगत सिंह भी उसी हालात के शिकार हैं। नीसंगत सिंह अपने दो अन्य साथियों के साथ रायपुर के एक गैरेज में काम करते थे। लॉकडाउन के चलते गैरेज एक महीने से बंद है।
खाने और गुजर के लिए पैसे भी खत्म हो रहे थे। दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा तो रायपुर में फंसे नीसंगत सिंह अपने दोनों साथियों के साथ करीब 1600 किलोमीटर दूर गुरदासपुर (पंजाब) के लिए निकल पड़े हैं। उसके दोनों साथियों को मुग्गा और भटिंडा (पंजाब) जाना है। मंगलवार सुबह 7 बजे नीसंगत सिंह और उसके साथी साइकिल चलाते हुए बोड़ला के नेशनल हाईवे को पार कर रहे थे तभी उन्होंने बताया कि वे रायपुर में अपने साथियों के साथ मोटर गैरेज में काम कर रहे थे। 22 मार्च से जारी लॉकडाउन में फंसे होने के कारण महीने भर से काम बंद है। ऐसे में खाली कितने दिन तक बैठते। इसलिए रायपुर से 3 साइकिल खरीदी, 25 अप्रैल को रवाना हुए। रायपुर से गुरदासपुर (पंजाब) तक करीब 1600 किलोमीटर तय करने में 13 दिन लगने की बात कही।
मजदूरी के पैसे से खरीदी साइकिलें, यूपी व हरियाणा के लिए निकले 13 मजदूर : सारगांव (बिलासपुर) के गुड़ फैक्ट्री में काम करने वाले 13 मजदूर भी साइकिल से ही उत्तरप्रदेश और हरियाणा के सीमा से लगे सामली के लिए रवाना हुए। मजदूर राकेश सिंह ने बताया वे लोग भी लॉक डाउन में फंसे थे। अरविंद ने बताया कि खर्चे से बचा कर रखे 4-4 हजार रुपए से सभी ने एक-एक साइकिल खरीदी है। इसी से 27 अप्रैल की सुबह 10 बजे बिलासपुर से निकले हैं। बिलासपुर से सामली करीब 1100 किमी है। वहां पहुंचने में 9 दिन लग जाएंगे।
फैक्ट्री मालिक ने दो दिन ही भोजन का बंदोबस्त किया: मजदूर जशपाल ने बताया कि लॉकडाउन के कारण पूरा काम बंद हो गया है। जिस गुड़ फैक्ट्री में काम कर रहे थे, वहां के मालिक ने सिर्फ दो दिन ही भोजन व्यवस्था की थी। तीसरे दिन से हाथ खड़े कर दिया। एक महीने जैसे-तैसे तंगी में गुजारा। अब रहना कठिन हो गया था, इसलिए सभी ने फैसला किया कि सामली वापस जाना है। मजदूरों ने बताया कि उनके बच्चे घर में बीमार हैं।
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