भोपाल. चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान के शपथ लेने के 28 दिन बाद बने नैनो मंत्रिमंडल में बड़ी सोशल इंजीनियरिंग नजर आ रही है। इस सोशल इंजीनियरिंग की वजह से भाजपा में मंत्री बनने की आस लगाए बैठे कई वरिष्ठ नेताओं को तरजीह नहीं दी गई। हालांकि, अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि इससे मंत्री बनने की आस लगाए बैठे भाजपा नेताओं में असंतोष है। लेकिन, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय नेतृत्व के नैनो मंत्रिमंडल का फैसला हैरान जरूर करता है।
शिवराज ने अपने मंत्रिमंडल में प्रदेश हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। इसमें ब्राह्मण, ठाकुर, ओबीसी और दलित और आदिवासी वर्ग के नेताओं को मंत्री बनाया है। मंत्रिमंडल में दो सिंधिया समर्थक मंत्री हैं लेकिन उनके गढ़ ग्वालियर-चंबल संभाग से उनके किसी समर्थक को जगह नहीं मिली। उसकी जगह नरोत्तम मिश्रा इस क्षेत्र से मंत्री बनेे। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खेमे के विधायकों को भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली। उनके गढ़ निमाड़-मालवा से सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट मंत्री बने।
ऐसी है शिवराज की सोशल इंजीनियरिंग
बड़े नाम मंत्री क्यों नहीं बने?
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि रविवार दोपहर तक मंत्रिमंडल में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाना तय माना जा रहा था, लेकिन देर शाम तक दोनों को होल्ड कर दिया गया। इसकी दो वजह भी बताई जा रहीं हैं। पहली जातिगत और दूसरी क्षेत्रीय संतुलन। अगर शिवराज अपने मंत्रिमंडल में पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव को शामिल करते तो उनके मंत्रिमंडल में दो ब्राह्मण मंत्री होते। यदि भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाता तो गोविंद सिंह राजपूत को मिलाकर दो ठाकुर मंत्री होते। इसके अलावा दूसरी वजह जो बताई जा रही है, उसके अनुसार अकेले सागर संभाग से ही तीन मंत्री बनने से भी पद आस लगाए विधायकों और ज्योतिरादित्य खेमें के पूर्व मंत्रियों को अच्छा संदेश नहीं जाता।
ग्वालियर-चंबल संभाग में धमासान के आसार
सूत्रों का कहना है कि आने वाले समय में सबसे ज्यादा राजनीतिक धमासान ग्वालियर-चंबल संभाग में ही देखने को मिल सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के जो विधायक कमलनाथ सरकार में मंत्री थे, उनका मंत्री बनना तय है। इसमें से चार ग्वालियर-चंबल संभाग से ही आते हैं। इसके अलावा एंदल सिंह कंसाना और रघुराज कंसाना सिंधिया समर्थक तो नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस छोड़कर मंत्री बनाए जाने आश्वासन पर ही भाजपा में आए। ऐसे में यहां भाजपा नेताओं का क्या होगा और उनकी अगली रणनीति क्या होगी, इस पर भी कयास लगाए जा रहे हैं। ग्वालियर के ही कुछ वरिष्ठ नेता सिंधिया समर्थकों के पार्टी में आने और उन्हें मत्री बनाए जाने से खुश नहीं हैं।
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