भिलाई. छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर की एक डॉक्टर बेटी एम्स रायपुर में अपनी सेवाएं दे रही हैं। वह 20 दिन से घर नहीं लौटी है। अस्पताल के रेसीडेंशियल हाॅस्टल में रह रही हैं। हर दिन 12 से 16 घंटे मरीजों की सेवा कर रही हैं, लेकिन अपना नाम नहीं सार्वजनिक नहीं करना चाहती। उनके पिता का कहना है कि हम नाम नहीं चाहते और न ही किसी तरह से अपने काम को लोगों के सामने रखना चाहते हैं। डॉक्टर बनते समय मानव सेवा की शपथ ली थी, उसे पूरा कर रही है।
इन दिनों वह अस्पताल में ही रहकर चुपचाप मरीजों की सेवा में जुटी है। उसकी ड्यूटी कोरोना वार्ड में ही लगी है। वहां जाने के पहले उन्हें अलग से आइसोलेटेड पोशाक पहना होता है। पूरा चेहरा मास्क से ढंका होता है। आंख के ऊपर भी एक चौड़ा चश्मानुमा उपकरण लगा होता है। 4 से 6 घंटे की ड्यूटी रोटेशन के हिसाब लगती है। इमरजेंसी में सब जुट जाते हैं।
उपचार करते वक्त सावधानी जरूरी
उनका कहना है कि मरीज वैसे तो सामान्य रहता है, लेकिन लीवर, किडनी, लंग्स में प्रॉब्लम हो और वह स्टेरॉयड का उपयोग कर रहा हो तो अधिक सावधानी बरतनी होती है। मरीजों के संपर्क में बने रहने और संक्रमण रोकने के लिए सेल्फ आइसोलेशन जरूरी है। इसके लिए ड्यूटी खत्म करने के बाद सैनिटाइज करते हैं और नहाते हैं। डॉक्टरों की टीम 12 से 14 घंटे लगातार मरीजों की सेवा डटी हुई है।
वार्ड से निकलते ही पोशाक करना होता है डिस्पोज
कोरोना वार्ड में जिन लोगों की ड्यूटी लगी होती है, वार्ड में जाने के पहले वह खुद को पूरी तरह सैनिटाइज करते हैं। पोशाक पहनते हैं, फिर ग्लब्स और चश्मा लगाते हैं। पूरी तरह पैक होने के बाद में वार्ड में प्रवेश करते हैं। इस दौरान मोबाइल और जरूरी सामान अपने पास नहीं रखते। एक बार में 4 से 6 घंटे का शिफ्ट रहता है। ड्यूटी पूरी होने के बाद मास्क और ग्लब्स को निकालते हैं और उसे प्रिपरेशन रूम में ही जला देते हैं।
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