रायपुर. छत्तीसगढ़ में 10 कोरोना पॉजिटिव थे, सोमवार को यह संख्या महज 1 रह गई है। अन्य 9 संक्रमित ठीक होकर घरों को लौट चुके हैं। सरकार इसे अपनी बड़ी कामयाबी मान रही है। आम लोगों में भी एक राहत है कि कोरोना वायरस के संक्रमितों के हालात यहां अन्य राज्यों जैसे नहीं है। रायपुर एम्स में करीब 1 हफ्ते तक इलाज करवाने के बाद घर लौट रहे 21 साल के युवक ने दैनिक भास्कर से अपने अनुभव साझा किए पढ़िए, बात-चीत के अंश उसी युवक के शब्दों में कोरोना वॉरियर बना और इस वायरस को हराकर सामान्य जिंदगी में लौट रहा है।
डॉक्टरों से सीखा मुकाबला करना
मैंने इन 1 हफ्तों में अस्तपाल में रहकर सीखा कि मुश्किल वक्त का सामना किस हिम्मत से किया जाता है। हिम्मत ही वो चीज है जिससे आज डॉक्टर्स दुनिया में फैली इस बीमारी को हराने का काम कर रहे हैं। मैंने खुद देखा है कि जिस भारी भरकम सूट को पहनकर हम 1 मिनट भी नहीं रह सकते, उसे 12 घंटे तक डॉक्टर्स और नर्सिंग का स्टाफ पहने हुए होता था। इस टफ समय में वो अपना 100 परसेंट दे रहे हैं। आम लोग कम से कम घर रहकर रूल्स को फॉलो करके तो खुद को और अपनों को सेफ रख ही सकते हैं ना।
लक्षण नहीं दिखते, इसी वजह से ये फैलता जा रहा है
युवक ने बताया कि कम उम्र के लोगों में कोरोना के लक्षण कई बार नहीं मिलते। यह रोग मेरे शरीर में लक्षण लेकर नहीं आया। मैं आज भी उतना ही सामान्य हूं, जितना एम्स में भर्ती होते वक्त था। इस वजह से लोगों को पता नहीं होता, उन्हें लगता है कि वो तो ठीक हैं। इसी सोच में वो अन्य लोगों को भी अनजाने में खतरे में डाल रहे हैं। मैं 18 मार्च को लंदन से मुंबई होते हुए रायपुर पहुंचा। मुंबई एयरपोर्ट में व्यवस्था अच्छी थी। रायपुर में तो सभी को एक साथ रख दिया गया था, जांच करने वाले देर से आए। कोई ना कहकर निकल भी सकता था व्यवस्था इस कदर ढीली थी। आने के बाद 14 दिनों तक मैंने खुद को आइसोलेट कर दिया था।
मेरे साथ आए हुए पॉजिटिव निकले और फिर...
मैं जिस फ्लाइट से पहुंचा था, उसी में से कुछ पॉजिटिव हो गए थे। मुझ से टेस्ट करवाने को कहा गया, मैंने भी देर नहीं कि मैं भी जानना चाहता था क्योंकि खतरा मेरी फैमिली तक पहुंच सकता था। 30 मार्च को मेरा टेस्ट हुआ 31 तारीख को पता चला कि मैं भी पॉजिटिव हूं। सभी को अजीब लगा, हम सोचने लगे कि आखिर कहां से यह बीमारी आई होगी। मैं तो मास्क, दस्ताने, सैनिटाइजर भी यूज कर रहा था। लेकिन फिर मैं एम्स रायपुर आया मेरा यहां ट्रीटमेंट शुरू हुआ।
नहीं लगा कि अस्पताल में हूं मैं
मुझे मेरे परिवार के लोगों ने हौसला दिया। पहली बार लाइफ में ऐसा हो रहा था कि मुझे कई अनजान लोगों के कॉल आए, वो भी मुझसे यही कहत रहे कि हम आपके साथ हैं, आप कोरोना से जीतकर आएंगे। यह काफी अच्छा लगा मुझे, बोरियत दूर करने के लिए दोस्तों से यहा घर वालों से बात कर लिया करता था। मोबाइल पर गेमिंग भी इस दौरान काम आई। डॉक्टर्स, नर्स काफी अच्छे थे यहां समय-समय पर जांच करते थे बातें होती थीं। मुझे नहीं लगा कि मैं अस्पताल में हूं। अपनापन लगा सभी के साथ।
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