नई दिल्ली. मध्य प्रदेश विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने की भाजपा की याचिका पर गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर एनपी प्रजापति से पूछा कि क्या वे वीडियो लिंक के जरिए बागी विधायकों से बात कर सकते हैं और फिर उनके बारे में फैसला कर सकते हैं? इस पर स्पीकर की तरफ से पेश वकील अभिषेक सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- नहीं, ऐसा संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी स्पीकर को मिले विशेषाधिकार को हटा नहीं सकते।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। बेंच का सुझाव था कि हम बेंगलुरु या कहीं और पर पर्यवेक्षकों की नियुक्ति कर सकते हैं ताकि बागी विधायक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्पीकर से बात कर सकें। इससे पहले बुधवार को करीब 4 घंटे चली सुनवाई में कांग्रेस, भाजपा, राज्यपाल, स्पीकर और बागी विधायकों की ओर से 5 वकीलों ने दलीलें पेश कीं। कांग्रेस ने कहा कि बागी विधायकों के इस्तीफे सौंपने के पीछे भाजपा की साजिश है। इसकी जांच होनी चाहिए। बहुमत परीक्षण के लिए रातों-रात मुख्यमंत्री और स्पीकर को आदेश देना राज्यपाल का काम नहीं है। स्पीकर इस मामले में सबसे ऊपर हैं, राज्यपाल उन पर हावी हो रहे हैं।
कांग्रेस चाहती है कि उपचुनाव होने तक फ्लोर टेस्ट न हो
कांग्रेस ने विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई सीटों पर उपचुनाव होने तक फ्लोर टेस्ट नहीं कराने की मांग की। भाजपा ने इसका विरोध किया। कोर्ट ने कहा कि 16 बागी विधायक फ्लोर टेस्ट में शामिल हों या नहीं, लेकिन उन्हें बंधक नहीं रखा जा सकता। वहीं, विधायकों ने कहा कि स्पीकर को उनके इस्तीफे मंजूर करने का निर्देश दिया जाए। जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच में कांग्रेस के वकील दुष्यंत दवे, भाजपा के वकील मुकुल रोहतगी, राज्यपाल के वकील तुषार मेहता, स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने पैरवी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- बागियों को बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता
बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा- हम कैसे तय करें कि विधायकों के हलफनामे मर्जी से दिए गए या नहीं? यह संवैधानिक कोर्ट है। हम संविधान के दायरे में कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। टीवी पर कुछ देखकर तय नहीं कर सकते। 16 बागी विधायक फ्लोर टेस्ट में शामिल हों या नहीं, लेकिन उन्हें बंधक नहीं रखा जा सकता। अब साफ हो चुका है कि वे कोई एक रास्ता चुनेंगे। उन्होंने जो किया उसके लिए स्वतंत्र प्रक्रिया होनी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने वकीलों से सलाह मांगी कि कैसे विधानसभा में बेरोकटोक आने-जाने और किसी एक का चयन सुनिश्चित हो।
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