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छत्तीसगढ़ / 'असहिष्णुता से डर लगता है', बयान पर फिल्म अभिनेता आमिर खान को बिलासपुर हाईकोर्ट से नोटिस

Tue, Mar 17, 2020 6:02 PM

 

  • वर्ष 2015 में फिल्म अभिनेता ने कहा था कि उन्हें और उनकी पत्नी को देश में रहने से डर लगने लगा है
  • कोर्ट के निर्देश पर पुलिस ने जांच कर कहा, बयान वैमनस्य फैलाने वाला, अगली सुनवाई 17 अप्रैल को

 

बिलासपुर. फिल्म अभिनेता आमिर खान के 2015 में दिए बयान पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सोमवार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। आमिर खान ने देश में असहिष्णुता पर कहा था कि उन्हें और उनकी पत्नी को देश में रहने से डर लगने लगा है। इस मामले में परिवार दाखिल होने के बाद काेर्ट के आदेश पर पुलिस ने जांच कर कहा था कि बयान वैमनस्य फैलाने वाला दर्शित होता है। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के अग्रवाल की एकलपीठ में हुई। अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी।


रायपुर के दीपक दीवान ने अभिनेता आमिर खान के विरुद्ध धारा 153-ए और 153-बी आईपीसी के तहत अपराध का परिवाद दाखिल किया था। जिस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट रायपुर ने परिवादी और उनके साक्षियों का कथन अंकित कर मामले को जांच के लिए पुरानी बस्ती थाने को भेज दिया था। थाना पुरानी बस्ती ने कोर्ट के निर्देश के तारतम्य में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया कि मामले के तथ्यों, साक्षियों के बयान से अभिनेता का बयान आपसी वैमनस्य फैलाने वाला दर्शित होता है।


न्यायिक मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था परिवाद
इसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट रायपुर ने परिवाद को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उक्त दोनों ही धाराओं के लिए केंद्र-राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक है। परिवाद के पूर्व कोई अनुमति नहीं ली गयी है। अतः मामले का संज्ञान नहीं लिया जा सकता। इसके विरुद्ध परिवादी ने सेशन कोर्ट में रिवीजन वाद दायर किया था जो कि समान आधार पर खारिज कर दिया गया। इसे चुनौती देते हुए परिवादी ने अधिवक्ता अमियकांत तिवारी के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 


याचिका में बताया है कि फिल्म अभिनेता आमिर खान के खिलाफ दायर परिवाद को इस आधार पर खारिज किया गया कि पूर्वानुमति नहीं ली गई। दूसरा मजिस्ट्रेट के समक्ष समस्त सामग्री थी कि मामले को अनुमति हेतु प्राधिकृत को अनुमति के लिए भेजा जा सकता था। वहीं पुरानी बस्ती थाना ने जब जांच पर अपराध के होने का प्रमाण पाया तब उसे सीधे ही मामला दर्ज करते हुए जांच पूरा कर रिपोर्ट दाखिल करना था। दोनों ही अपराध संज्ञेय और अजमानती प्रकृति के हैं। इसके बाद कोर्ट ने 5 मार्च 2020 को आदेश के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

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