भोपाल. मध्य प्रदेश में सत्ता के लिए शुरू हुआ संघर्ष अब कानूनी दांव-पेंच में उलझ गया है। सोमवार को राज्यपाल के आदेश के बावजूद स्पीकर के फ्लोर टेस्ट नहीं कराए जाने के खिलाफ भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिस पर मंगलवार को सुनवाई होनी है। उधर, राज्यपाल ने फिर सोमवार शाम को सरकार को पत्र लिखकर फ्लोर टेस्ट कराने का पत्र कमलनाथ को लिखा था। हालांकि, सरकार की ओर से इस पत्र को लेकर अभी तक कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई।
वहीं, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्यपाल को पत्र लिखकर उनके आदेश की वैधता को ही चुनौती दे दी है। कमलनाथ ने 14 मार्च को राज्यपाल द्वारा लिखे पत्र का जिक्र करते हुए कहा, 'पत्र में आपने यह मान लिया है कि मेरी सरकार बहुमत खो चुकी है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आपने भाजपा से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ऐसा माना है।' दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। मुख्यमंत्री देर रात से अब तक लगातार कानूनी पहलुओं पर विशेषज्ञों से बात कर रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री ने कानूनी विशेषज्ञों से मध्यप्रदेश के ताजा हालात से जुड़े केसों के बारे में जानने की कोशिश की। वे विधानसभा से संबंधित सभी नियमों को बारीकी से समझ रहे हैं। मंगलवार सुबह से सीएम हाउस की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
आज शिवराज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने याचिका दायर की है। भाजपा ने दावा किया है कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है और कांग्रेस को सरकार चलाने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। इस स्थिति में तत्काल विधानसभा फ्लोर टेस्ट कराया जाए। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि वह मजबूती से कोर्ट में अपना पक्ष रखेंगे। सरकार बहुमत में है। सबकी निगाहें आज सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हैं।
अब आगे क्या हो सकता है?
1) सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार
फ्लोर टेस्ट में देरी के विरोध में भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। सुनवाई आज होगी। अगर स्पीकर अगले 10 दिन के भीतर बागी विधायकों को अयोग्य करार देते हैं तो भी मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है। कोर्ट में तुरंत सुनवाई हुई तो 26 मार्च से पहले भी फ्लोर टेस्ट हो सकता है।
एक्सपर्ट व्यू : संवैधानिक मामलों के जानकार फैजान मुस्तफा के मुताबिक, स्पीकर के पास दो विकल्प हैं। या तो वे विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लें या उन्हें डिस्क्वालिफाई (अयोग्य) करार दें। स्पीकर अपने फैसले को डिले कर सकते हैं, ताकि सत्ताधारी पार्टी के लोगों को बागियों को मनाने का कुछ वक्त मिल जाए। लेकिन दो विकल्पों के अलावा स्पीकर के पास कोई और चारा नहीं है।
2) क्या राष्ट्रपति शासन लगने के आसार हैं?
ये भी एक संभावना है। इसके उदाहरण भी हैं। पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों के 19 दिन बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के तीन प्रमुख दलों भाजपा, शिवसेना और राकांपा को सरकार बनाने का न्योता दिया था, लेकिन कोई भी दल सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बल नहीं जुटा पाया। 12 दिन बाद रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटा और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। इससे भी पहले जून 2018 में जम्मू-कश्मीर में जब भाजपा ने महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की। हालांकि, इसी बीच वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया।
एक्सपर्ट व्यू : फैजान मुस्तफा बताते हैं कि सरकार या स्पीकर जानबूझकर फ्लोर टेस्ट नहीं कराते तो प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का कारण बताकर राज्यपाल सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं।
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