भोपाल. मध्य प्रदेश में सियासी घमासान के बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को धोखेबाज बताया है। सिंह ने कहा- "मैंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि महाराज (क्षमा करें, क्योंकि मैं खुद एक रियासती पृष्ठभूमि से आता हूं, मैं उन्हें ज्योतिरादित्य कहकर संबोधित नहीं कर सकता) कांग्रेस और गांधी परिवार को धोखा देंगे और किसके लिए! राज्यसभा और कैबिनेट मंत्री बनने मोदी-शाह के नेतृत्व में? दुःखद है कभी भी उनसे यह उम्मीद नहीं करता था। लेकिन, फिर कुछ लोगों के लिए पावर ऑफ हंगर यानी सत्ता की भूख विश्वसनीयता और विचारधारा (जो एक स्वस्थ लोकतंत्र का सार है) से अधिक महत्वपूर्ण है।"
मेरे लिए विचारधारा महत्वपूर्ण रही
दिग्विजय ने कहा, "मैं सत्ता से बाहर रहा और कांग्रेस के लिए 2004 से 2014 तक काम किया, इस तथ्य के बावजूद कि मुझे मंत्रिमंडल में शामिल होने और राज्यसभा में जाने की पेशकश की गई थी लेकिन मैंने विनम्रता से मना कर दिया। मैं अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से आसानी से लोकसभा में आ सकता था लेकिन मैंने मना कर दिया और कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली। क्यों? क्योंकि मेरे लिए विश्वसनीयता और विचारधारा अधिक महत्वपूर्ण है जो दुर्भाग्य से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गई है।"
संघ ने पहले जेपी और अब नीतिश को मूर्ख बनाया
सिंह ने कहा, 'मैं संघ / भाजपा से बिल्कुल सहमत नहीं हूं लेकिन उनकी विचारधारा के प्रति समर्पण की प्रशंसा करता हूं। आरएसएस ने 1925 से 90 के दशक तक अपने अंतिम लक्ष्य "हिंदू राष्ट्र" को भुलाए बगैर दिल्ली में सत्ता में आने के लिए इंतजार किया। उन्होंने सफलतापूर्वक समाजवादियों और विशेष रूप से जेपी और अब नीतीश को आरएसएस प्रचारक को पीएम बनाए जाने के अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मूर्ख बनाया है। मैंने ऐसे आरएसएस कार्यकर्ताओं को भी देखा है जिन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर अपने परिवार को संघ के लिए काम करने के लिए छोड़ दिया।'
आरएसएस की नई नस्ल का उदाहरण हैं मोदी
दिग्विजय ने कहा, 'अब आरएसएस के नए प्रचारक बदल गए हैं। नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रचारकों की इस नई नस्ल का सबसे शानदार उदाहरण हैं। मैं नरेंद्र मोदीजी का प्रशंसक नहीं हूँ बल्कि उनके सबसे कटु आलोचकों में से एक हूं, लेकिन हर मुद्दे और हर अवसर पर बिना कोई समझौता किए देश को ध्रुवीकृत करने के उनके साहस के प्रयास की प्रशंसा करता हूं। ऐसा करते वक्त उन्होंने कभी परवाह नहीं की कि भारत के सनातन धर्म और हिंदू धर्म की मान्य परंपराओं द्वारा बुने गए सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने से देश को क्या नुकसान हो रहा है?'
विजयराजे सिंधिया चाहती थीं मैं जनसंघ में शामिल हो जाऊं
दिग्विजय सिंह ने कहा, "राजमाता विजया राजे सिंधियाजी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है, वे चाहती थीं कि मैं 1970 में जनसंघ में शामिल हो जाऊं। उस समय मैं राघौगढ़ नगर पालिका का अध्यक्ष था। मैंने गुरु गोलवलकर की किताब "बंच ऑफ थॉट्स" को पढ़ा और आरएसएस के नेताओं से बातचीत की, इसके बाद मैंने विनम्रता से मना कर दिया। मेरे लिए मेरा धर्म सनातन धर्म है और सार्वभौम भाईचारे में मेरा विश्वास है। मेरे लिए मेरा धर्म मानवतावाद 'इंसानियत' है जो हिंदुत्व के बिलकुल विपरीत है।"
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