रायपुर (अमिताभ अरुण दुबे ) . राजधानी के सेरीखेडा़ में उजाला महिला सेल्फ हेल्पग्रुप से जुडी़ विनती,अनिता ,खिलेश्वरी जैसी दस से ज्यादा महिलाएं रोजाना सुबह 9 बजे से शाम पांच बजे तक करीब तीस किलो खुशबूदार हर्बल गुलाल का उत्पादन कर रही हैं। शहर में बडे़ शादी समारोह, मंदिरों फूलों के बाजार से निकलने वाली इस्तेमाल किए हुए फूल पत्तियों को सुखाकर प्रोसेसिंग यूनिट में पीसकर गुलाल तैयार किया जाता है। गुलाब, गेंदे, स्याही फूल के साथ चुकंदर, हल्दी, आम और अमरूद की हरी पत्तियां को भी प्रोसेस किया जाता है।
समूह ने जिला पंचायत प्रशासन के सहयोग से इस साल इस पहल की शुरूआत की है। जिला पंचायत रायपुर के सीईओ गौरव कुमार सिंह के मुताबिक महिला समूहों के द्वारा बनाए उत्पाद केवल रायपुर छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि देश में बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं। पिछले साल दीवाली में बनचरौदा की महिलाओं द्वारा बनाए मिट्टी और गोबर के दीये, सजावटी सामान दिल्ली व देश के अन्य राज्यों में खूब लोकप्रिय हुए।
सीएम हाउस से भी आते हैं फूल: सेरीखेडी़ में मुख्यमंत्री आवास से भी फूलों का कलेक्शन किया जाता है। यहां आने वाले आगंतुकों के भेंट किए हुए फूल गुलदस्ते रोजाना कलेक्ट किए जाते हैं। नगरनिगम रायपुर की ओर से संस्था को शहर के बागीचों और बडे़ मंदिरों की सूची दी गई है, सुबह शाम यहां से फूल उठाये जाते हैं। सेरीखेडी़ के समूह में आने के बाद अच्छे और खराब क्वालिटी के फूलों की छंटाई होती है। खराब फूल पत्तियों को कंपोस्ट पिट में डाला जाता है।
जनवरी के पहले हफ्ते से अब तक 400 किलो गुलाल बनाया
समूह की महिलाओं ने जनवरी के पहले हफ्ते से हर्बल गुलाल बनाना शुरु किया था, एक किलो गुलाल की बाजार में कीमत करीब 300 रुपये प्रति किलो है। इस हिसाब से दो महीनों में महिलाओं ने एक लाख बीस हजार मूल्य का हर्बल गुलाल बनाया है।रोजाना 800 से 1000 किलो यानी करीब एक टन तक फूल पत्तियां इकट्ठा होती है।
छह रंगों में हर्बल गुलाल
यहां काम करने वाली विश्वासर कहती हैं कि पहली बार यहां महिलाओं ने हर्बल गुलाल बनाया है, ये लाल, हरे, पीले, गुलाबी, नीले और संतरा छह रंगों में बनाया गया है। अगले साल इसकी और वैरायटी भी बनायी जाएगी। होली के बाद फूलों के पाउडर से सुगंधितअगरबत्ती, साबुन और कॉस्मैटिक प्रोडेक्ट बनाने का प्लान है। हर्बल रंग पर्यावरण के साथ त्वचा के लिए भी अच्छे होते हैं।
बांस के सामान, मछली पालन भी
सेरीखेडी़ में विभिन्न महिला समूह मछली पालन, बांस के फर्नीचर, ट्री गार्ड और अन्य सामान भी बना रहे हैं। इसके अलावा मधुमक्खी पालन, शहद, अचार पापड़ बडी़ जैसे कामों में सौ से भी ज्यादा महिलाएं काम करती है।
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