सवाई माधोपुर. बुधवार सुबह सवाई माधोपुर कोटा हाईवे पर मेज नदी में बस गिरने से 24 लोगों की मौत हो गई। हादसे के शिकार सभी लोग सवाई माधोपुर नीम चौकी निवासी रमेश चंद्र की बेटी की शादी में भात लेकर आ रहे थे। इस घटना को जिसने भी सुना वह सन्न रह गया, लेकिन दुल्हन और उसकी मां रात को वरमाला होने तक पूरी तरह सहज तरीके से हर रस्म को विधि-विधान से निभाती दिखाई दीं। कारण था- परिवार के लोगों ने मां-बेटी को इस बात का अहसास भी नहीं होने दिया कि इस शादी में आ रहा उनका पूरा परिवार ही चल बसा है।
पुरानी कहावत है जन्म, मृत्यु और विवाह कभी रुकता नहीं है। यह कहावत बुधवार को सवाई माधोपुर में चरितार्थ हुई। शहर नीमचौकी निवासी रमेश का पूरा परिवार सुबह एक मैरिज गार्डन में शाम को बेटी के विवाह समारोह की तैयारी में मशगूल था और उनकी पत्नी दोपहर में अपने पीहर के लोगों द्वारा आकर भात पहनाने के इंतजार में पलके बिछाए बैठी थी। दुल्हन मामा-मामी, नानी एवं कोटा से आने वाले पूरे परिवार का इंतजार कर रही थी। तभी रमेश को सूचना मिली की बस हाईवे पर मेज नदी की पुलिया से पानी में गिर गई है और उस में सवार 27 में से 24 लोगों की मृत्यु हो गई है, तो वह गश खा गया।
बेटी और पत्नी को पता नहीं था कि परिवार खत्म हो गया
मैरिज गार्डन में जिस समय उसे मोबाइल पर यह सूचना मिली उस समय गार्डन के हॉल के शीशों के दूसरी तरफ उसका पूरा परिवार मौजूद था। कोई नाच रहा था तो कोई विवाह पूर्व के रस्मों को निभा रहा था। रमेश की बेटी सीमा (प्रीति) एवं रमेश की पत्नी बादाम सुबह 11 बजे होने वाले भात के कार्यक्रम लिए सजकर तैयार हो रही थी। रमेश सदमे में बेहाल था तो भीतर मां-बेटी एवं बाकी का परिवार खुशियों से झूम रहा था। वहां दर्द और खुशियों के बीच एक कांच की पतली दीवार थी।
मां-बेटी को नहीं लगने दिया पता
कुछ देर में ही वहां मौजूद बाकी रिश्तेदारों को भी इस हादसे का पता चलते ही सब रमेश के पास पहुंचे। दूसरी तरफ जयपुर से बारात रवाना हो चुकी थी। रमेश के रिश्तेदारों ने उसका हौंसला बंधाया और इस विकट घड़ी में धैर्य से काम लेकर बेटी का विवाह करने की सलाह दी, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तो यह थी कि दुल्हन एवं उसकी मां को आखिर किस प्रकार समझाया जाए। सभी ने तय किया कि चाहे जो हो जाए मां-बेटी को इस हादसे की भनक ही नहीं लगने देंगे। सभी ने हाथों हाथ वहां मौजूद महिलाओं की भीड़ को दूर किया। दोनों के पास चार-चार समझदार और जिम्मेदार लोगों को लगाया गया और हर उस आदमी को उनके पास जाने से रोका गया जो उनको इस हादसे के बारे में किसी भी प्रकार बता सकता था।
बार-बार पूछा भाई भात लेकर क्यों नहीं आए
रमेश ने भास्कर को बताया कि उसकी पत्नी एवं बेटी दोपहर 3 बजे तक बार-बार यही पूछती रही कि आखिर सुबह 11 बजे भात लेकर आने वाले उनके भाई एवं मामा आखिर तीन बजे तक भी क्यों नहीं आए हैं। इस पर रमेश एवं उन दोनों के पास मौजूद लोगों ने एक ही बात समझाई कि रमेश की पत्नी बादाम की बुजुर्ग मां की रास्ते में तबियत ज्यादा खराब होने एवं हालत नाजुक होने के कारण भात का कार्यक्रम रोकना पड़ा है। उनका पूरा परिवार वहां नानी के कारण अटक गया है। रमेश ने बताया कि बेटी एवं पत्नी के मोबाइल भी उनसे ले लिए गए थे। इस कारण उनका किसी से सीधा संवाद नहीं हो पाया है।
यह कैसा चेहरा
रमेश इस पूरे घटनाक्रम के कारण सुबह दस बजे से रात को बेटी की विदाई तक दोहरा जीवन जीते दिखाई दिए। जब वह बेटी एवं पत्नी के पास जाता तो उसका चेहरा पूरी तरह सहज एवं खुश दिखाई देता था, लेकिन ज्यौं ही वह उनसे दूर होता तो एक कोना या किसी का कंधा देखकर उससे लिपटकर बिलख पड़ता था। दिन में दर्जनों बार उसने इस दोहरे चरित्र को जीया और जिसने भी देखा वह या तो रमेश की हिम्मत की दाद दे रहा था या फिर उसे गले लगा कर सांत्वना।
कुछ दिन पहले ही खोया था बेटा
जिस समय मीडिया के लोग रमेश से मिलने गार्डन गए तो उसने सभी से हाथ जोड़कर उसका साथ देने का आग्रह किया। सभी ने इस दुख की घड़ी में उसके साथ खड़े होने का विश्वास भी दिलाया और वहां से रवाना हो गए। न तो किसी ने वहां कोई रिकार्डिंग की और न ही कोई फोटोग्राफी की। सभी इस प्रयास मे थे कि किसी भी प्रकार मां-बेटी को इस हादसे की भनक नहीं लगनी चाहिए। इस दौरान रमेश ने बताया कि अभी कुछ महीने पहले ही उसका 20 साल के बेटे की अचानक मौत हुई थी। उसकी दो ही संतान थी। बेटा जाने के बाद उसने अपनी सारी खुशियां बेटी के सपनों को पूरा करने में लगा दी थी, लेकिन जब खुशियां साकार करने का मौका आया तो चारों तरफ अंधेरा छा गया। वह क्या करे समझ नहीं आ रहा है।
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