झाबुआ. शिवजी का हलमा कार्यक्रम इस साल 29 फरवरी और 1 मार्च काे होगा। इसके लिए शिवगंगा संस्था ने बड़े स्तर पर तैयारियां की हैं। हजारों की संख्या में गांवों से कार्यकर्ता आकर हाथीपावा की पहाड़ी पर कंटूर ट्रेंच बनाएंगे। इनसे भू-जलस्तर में बढ़ोतरी होती है। आयोजन में 2 दिनों तक हजारों ग्रामीण राणापुर रोड पर एक मैदान में रहेंगे। 29 फरवरी को शहर में गेती यात्रा निकाली जाएगी और 1 मार्च की सुबह ये लोग हलमा के लिए पहाड़ी पर पहुंचेंगे। आयोजकों ने 20 हजार लोगों को लाने का लक्ष्य रखा है। 40 हजार कंटूर ट्रेंच बनाने या सुधारने की बात की जा रही है।
यहां का आदिवासी विश्व के लिए उदाहरण, प्रदूषण फैलता है तो हम सबकी जिम्मेदारी है इसे रोकें
शिवगंगा के महेश शर्मा ने बताया, आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग से परेशान है। धरती का तापमान महज 1 डिग्री कम करने के लिए करोड़ों खर्च कर विचार किया जा रहा है। इसमें झाबुआ की जनजातीय समाज की हलमा परंपरा एक समाधान है। हलमा में जल संरचनाएं बनाई, वृक्ष लगाए। ये न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए चौंकाने वाला काम है। जब प्रदूषण फैलता है तो हम सबकी जिम्मेदारी है इसे रोकें। इसी तरह ये लोग दूसरों के लिए श्रम करने आते हैं। समस्या से निजात के लिए पब्लिक पार्टिसिपेशन जरूरी है। 700 करोड़ लोग धरती पर हैं। वो सब प्रयास करें तो ये बड़ा काम नहीं है। केवल सामर्थ्य के उपयोग की जरूरत है।
2 दिनों के ये आयोजन
ऐसे की तैयारी
संस्था के राजाराम कटारा ने बताया, 2010 से अब तक 1 लाख 10 हजार कंटूर ट्रेंच बना चुके हैं। यहां का भू जलस्तर बढ़ रहा है। नवंबर से आयोजन की तैयारियां शुरू की गई थी। 125 विहार बनाकर 600 गांव के प्रभारी बनाए गए। 150 कार्यकर्ताओं ने 70 हजार परिवारों तक पहुंचने का संकल्प लिया। घर-घर निमंत्रण भेजा। दिसंबर में 2 हजार लोगों का प्रशिक्षण हुआ।
मैनेजमेंट के विद्यार्थी यहां समझते हैं कैसे होता है काम
आईआईटी रुढ़की से बैचलर डिग्री लेने वाले नितिन ने बताया, ये सब हम बाहर के विद्यार्थियों को अचंभित करने वाला होता है। आईआईएम और आईआईटी जैसे संस्थानों के लोग जब ये देखते हैं कि हजारों परिवारों तक जाना, हजारों लोगों का एक जगह जमा होना, उनके रहने, खाने का प्रबंधन, स्वच्छता, शौचालय, 150 अस्थायी टॉयलेट का इंतजाम कैसे हो जाता है। जिन लोगों को अनपढ़ समझते हैं, उनका नेटिव इंटेलिजेंस काफी ज्यादा है। दिल्ली में प्रदूषण उच्चतम स्तर पर है, लेकिन हम कुछ नहीं कर पा रहे। जब यहां आकर देखते हैं तो पता चलता है, यहां चिंता नहीं चिंतन होता है।
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