Monday, 9th June 2025

इनसाइड स्टोरी / अमित शाह ने दिल्ली में 18% वोट और शून्य सीटें मिलने की रिपोर्ट से बेचैन होकर खुद को प्रचार के मैदान में झोंका था

Sat, Feb 15, 2020 6:08 PM

 

  • 21-22 जनवरी को शाह के साथ रणनीतिकारों की बैठक में आक्रामक प्रचार पर फैसला हुआ था
  • चुनौती सीटों की बजाय वोट शेयर बचाने की थी ताकि भाजपा को कांग्रेस के साथ न तोला जाए

 

नई दिल्ली. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा भले ही जीत का दावा कर रही थी, लेकिन अंदरूनी रिपोर्ट में उसे हार तय दिख रही थी। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी शुरू से बढ़त लेती दिख रही थी, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की आक्रामकता ने इस एकतरफा चुनाव को बहुत हद तक मुकाबले वाला चुनाव बना दिया था। इसके बाद ही यह बहस शुरू हो गई थी कि पहले वॉकओवर देती भाजपा अब चुनाव लड़ती नजर आ रही है। लेकिन नतीजों के बाद सवाल उठा कि चुनाव में हार सामने नजर आने के बावजूद शाह खुद इस तरह मैदान में क्यों कूदे और प्रचार में पूरी ताकत क्यों झोंक दी?

भास्कर ने इस रणनीति को समझने के लिए पड़ताल की तो पाया कि 21 और 22 जनवरी को शाह के घर पर रात ढाई बजे तक बैठक हुई थी। इसमें भाजपा को दिल्ली चुनाव में 18% वोट मिलने के अनुमान पर चर्चा की गई थी। यानी 2015 के विधानसभा चुनाव में मिले 32.19% वोट से करीब आधे और लोकसभा चुनाव में मिले 56.86% वोट से तीन गुना कम। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने खुलासा किया कि दिल्ली चुनाव से जुड़े तमाम रणनीतिकारों के साथ हुई इस बैठक में जो रिपोर्ट रखी गई, उसके मुताबिक दिल्ली में भाजपा भी कांग्रेस की तरह शून्य पर सिमट रही थी। इस रिपोर्ट ने शाह को बेचैन कर दिया। इसी दिन भाजपा ने उम्मीदवारों की आखिरी सूची जारी कर दी और तीन सीटें सहयोगी दलों जदयू और लोजपा को दे दी। दिल्ली में पार्टी अमूमन अपने चुनाव चिह्न पर ही सहयोगियों को लड़ाती रही है, लेकिन इस बार सहयोगी दल खुद के सिंबल पर लड़े।

शाह ने कहा- नतीजा जो भी हो, मैं लड़ूंगा
वोट पर्सेंट और सीटों से जुड़ी इस रिपोर्ट पर चर्चा के बाद शाह ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से ज्यादा पार्टी की साख से जोड़ा और कहा कि सीटों से ज्यादा वोट शेयर को बचाना बड़ी चुनौती है। उनका इशारा था कि अगर भाजपा का वोट शेयर घटा तो उसे भी कांग्रेस के साथ एक तराजू में तोला जाएगा। लेकिन वहां मौजूद रणनीतिकारों ने शाह से कहा कि हारी हुई लड़ाई में आप न कूदें तो ही ठीक रहेगा। इस पर शाह ने कहा, “मैं योद्धा हूं, नतीजा जो भी हो लड़ूंगा।”

शाह ने बैठक के बाद प्रचार बढ़ाया
23 जनवरी से शाह ने एक दिन में 3 से 5 पदयात्रा और जनसभाएं करना शुरू कर दी। इतना ही नहीं, गणतंत्र दिवस के दिन भी शाह ने तीन जनसभाएं कीं तो 29 जनवरी की बीटिंग रीट्रीट में भी शिरकत नहीं की और चार जनसभाओं में शामिल रहे। दिल्ली चुनाव का संकल्प पत्र जारी होने वाले दिन 31 जनवरी को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को संकल्प पत्र जारी करने का काम सौंपा गया और शाह ने उस दिन चार सभाओं को संबोधित किया। दिल्ली में शाह ने कुल 36 पदयात्रा, जनसभाएं कीं। इसके अलावा कुछ उम्मीदवारों के चुनाव कार्यालय तक खुद गए।

प्रदेश संगठन में बड़े बदलाव की तैयारी में भाजपा
चुनाव नतीजों के बाद के विश्लेषण में भाजपा इस बात पर संतोष कर रही है कि उसका वोट शेयर शाह की रणनीति की वजह से न सिर्फ बचा, बल्कि इसमें इजाफा भी हुआ है। लेकिन दिल्ली संगठन को लेकर जिस तरह अकर्मण्यता की रिपोर्ट पार्टी को मिली है, उसके बाद शीर्ष नेतृत्व इस बार दिल्ली भाजपा में प्रतीकात्मक बदलाव की नहीं, बल्कि बड़ी सर्जरी की रणनीति बना रहा है।

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