राकेश जायसवाल | कवर्धा . बैगा-आदिवासियों की पहचान केवल एक विशेष समुदाय के रूप में है, जिन्हें पिछड़ा और मुख्यधारा से दूर माना जाता है। लेकिन उनकी वैवाहिक परंपरा आधुनिक सामाजिक ढांचे से भी परिष्कृत है। बैगा आदिवासी समाज युवक-युवतियों का परिचय सम्मेलन आयोजित करता है, जहां युवक और युवती एक-दूसरे को पसंद करते ही विवाह करते हैं।
यानी पहली नजर में जिससे प्रेम हो जाए, उसे जीवन साथी चुनने की आजादी होती है। कबीरधाम जिले के अंतिम छोर पर बसे बैगा-आदिवासी बाहुल गांवों में यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। समाज के लोगों का मानना है कि इससे उनके देवी- देवता प्रसन्न होते हैं, शादी के लिए प्रेम का होना जरूरी है। इन दिनों पंडरिया ब्लॉक के दूरस्थ अंचल के गांव दमगढ़, बांसाटोला, झूमर और बाहपानी समेत गांवों में इस तरह के परिचय सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। परिचय सम्मेलन में बैगा युवक-युवतियां रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान पहने रहते हैं। सिर पर मयूर पंख का कलगी सजा रहता है। जंगल की बांस-बेलों व घास से पारंपरिक श्रृंगार करते हैं। युवक-युवती की रजामंदी के बाद भी अगर घरवाले नहीं माने, तो भागकर शादी करने की भी परंपरा प्रचलित है।
रिवाज देता है सामाजिक व्यवहार की सीख
बैगा समाज के प्रांतीय अध्यक्ष इतवारी मछिया बताते हैं कि आधुनिक समाज में परंपराएं लुप्त होती जा रही है। बैगाओं का यह रिवाज सामाजिक व्यवहार की सीख देता है। यह परिचय सम्मेलन देवी-देवताओं को खुश करने के लिए किया जाता है। देवताओं के समक्ष युवक-युवतियाें का आपस में परिचय कराया जाता है। नृत्य करते हुए ही बैगा युवक-युवतियां एक दूसरे को पसंद कर विवाह के लिए रजामंदी देते हैं। इसके बाद प्रेमी जोड़े को शादी के बंधन में बांध दिया जाता है।
बॉडर के गांवों से युवा होते हैं शामिल
बैगा आदिवासी समाज में परिचय सम्मेलन फाल्गुन यानी होली तक चलता है। 8- 10 गांव के प्रतिनिधि मिलकर परिचय सम्मेलन आयोजित करते हैं। इसमें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती गांवों से युवक-युवतियां शामिल होते हैं।
सभी का देवी-देवताओं की प्रतिमा के आगे उनका परिचय कराया जाता है फिर वे बेझिझक एक-दूसरे का हाथ पकड़कर मांदर की थाम पर नृत्य करते हैं। इसके बाद वे परिजन को अपनी पसंद बताते हैं व विवाह की रजामंदी हो जाती है।
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