नई दिल्ली. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक सुस्ती से निपटने की है। चालू वित्त वर्ष (2019-20) में जीडीपी ग्रोथ रेट 5% रहने की संभावना है, जो 11 साल में सबसे कम होगी। बेरोजगारी दर भी बढ़ती जा रही है। पिछले साल ही सरकार की एक लीक रिपोर्ट से पता चला था कि देश में बेरोजगारी दर 45 साल में सबसे ज्यादा है। 'अच्छे दिन आने वाले हैं' का नारा देकर सत्ता में आई मोदी सरकार में क्या वाकई अच्छे दिन आए भी या देश अभी भी पहले की तरह ही है। इसे जानने के लिए यूपीए-2 और भाजपा के अब तक के कार्यकाल में जीडीपी ग्रोथ, महंगाई, रोजगार और टैक्स कलेक्शन का एनालिसिस किया।
जीडीपी ग्रोथ
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (सकल घरेलू उत्पाद)। किसी भी देश की आर्थिक हालत को मापने का पैमाना जीडीपी ग्रोथ ही होती है। अगर जीडीपी बढ़ रही है तो देश की आर्थिक हालत अच्छी है, लेकिन जीडीपी घट रही है तो देश की आर्थिक स्थिति खराब है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 की दूसरी तिमाही तक जीडीपी ग्रोथ रेट 4.5% रही और पूरे वित्त वर्ष (2019-20) में ये 5% ही रहने का अनुमान है। जबकि, 2018-19 में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.1% थी। यानी एक साल में जीडीपी ग्रोथ रेट 1.1% तक घट गई।
यूपीए-2 का कार्यकाल मई 2009 से मई 2014 तक रहा। वित्त वर्ष के लिहाज से 2009-10 से लेकर 2013-14 तक। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2009-10 में जीडीपी ग्रोथ रेट 8.6% थी जो 2013-14 तक घटकर 6.4% पर आ गई। यानी, यूपीए-2 में जीडीपी ग्रोथ 2.2% तक गिर गई। भाजपा सरकार मई 2014 से है और वित्त वर्ष के लिहाज से देखें तो 2014-15 से है। 2014-15 में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.4% थी, जो 2018-19 तक घटकर 6.1% पर आ गई। यानी, मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में जीडीपी ग्रोथ रेट 1.3% की कमी आई है।
आम आदमी पर क्या असर: जीडीपी ग्रोथ रेट कम होने का असर देश की आर्थिक हालत ही नहीं बल्कि आम लोगों पर भी होता है। जीडीपी ग्रोथ कम होती है, तो नौकरियां कम होती हैं और इनकम की ग्रोथ भी कम रहती है। उदाहरण के लिए- 2018-19 में प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपए थी। अगर जीडीपी ग्रोथ 5% रहती है तो 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय में सिर्फ 526 रुपए का इजाफा होने के आसार हैं।
टैक्स कलेक्शन
सरकार ने मार्च 2020 तक 13.5 लाख करोड़ रुपए के डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य तय किया था, लेकिन पिछले दिनों न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट में दावा किया गया कि सरकार को डायरेक्ट टैक्स से 23 जनवरी तक सिर्फ 7.3 लाख करोड़ रुपए मिल पाए। यूपीए-2 के कार्यकाल में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 69% बढ़ा था। 2009-10 में सरकार को इससे 3.78 लाख करोड़ रुपए मिले थे, जो 2013-14 तक बढ़कर 6.38 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया। वहीं, मोदी सरकार में 2014-15 में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 6.95 लाख करोड़ रुपए था, जो 2018-19 में 63% बढ़कर 11.37 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया।
आम आदमी पर क्या असर : डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन कम होने का आम आदमी पर सीधा असर तो नहीं पड़ता, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर इसका असर पड़ सकता है। टैक्स कलेक्शन से ही सरकार की कमाई होती है और इससे ही सरकार नीतियों, योजनाओं और विकास पर खर्च करती है। अगर टैक्स कलेक्शन कम होता है, तो योजनाओं पर पैसा खर्च करने की उम्मीद कम हो जाती है।
महंगाई: यूपीए ने बिगाड़ा गणित, एनडीए ने सुधारा
2009-10 में महंगाई दर 3.57% थी, जिसका कारण बेहतर मॉनेटरी पॉलिसी (मौद्रिक नीति) और विकास को बताया गया, लेकिन 2010-11 में यह आंकड़ा बढ़कर 9.56% पहुंच गया। दिसंबर 2010 में जहां सब्जियों के दामों में 29.26 फीसदी बढ़ोतरी हुई, वहीं दूध के दाम 26.64 और प्याज के रेट 39.66% तक बढ़ गए थे। साल 2011-12 में थोक महंगाई दर में मामूली सुधार हुआ और इसकी दर 8.94% रही। फाइनेंशियल ईयर 2012-13 में थोक महंगाई दर करीब 2 फीसदी कम होकर 6.9% पर आ गई। सरकार के अंतिम साल (2013-14) में महंगाई की दर 5.2% थी।
2014 में आई मोदी की सरकार ने तेजी से बढ़ रही महंगाई दर को रोकने में सफलता हासिल की। 2014-15 में थोक मूल्य सूचकांक पर महंगाई महज 1.2% रह गई, वहीं उपभोक्ता महंगाई दर 5.9% रही। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वित्त वर्ष 2015-16 में महंगाई का आंकड़ा थोक मूल्य सूचकांक पर (-)3.7% पहुंच गया। सरकार के अनुसार बढ़ती कीमतों पर लगातार रिव्यू मीटिंग्स और निगरानी के चलते महंगाई दर काफी कम हो गई थी। वहीं साल 2016-17 में महंगाई दर करीब 4% इजाफे के साथ 1.7% पहुंच गई। इसके बाद मोदी सरकार में लगातार महंगाई दर बढ़ती रही। वित्त वर्ष 2017-18 में महंगाई का आंकड़ा 3% रहा, लेकिन वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार लगभग सभी बड़े कमोडिटी सेक्टर्स में महंगाई कम हुई थी। साल 2018-19 मोदी सरकार के लिए सबसे चुनौती पूर्ण रहा, इस वर्ष महंगाई 4.3 प्रतिशत रही थी। दिसंबर माह में खुदरा महंगाई दर पांच साल के सबसे ऊंचे स्तर 7.35% पर पहुंच गई। इस दौरान दूध के दामों में 4.22%, सब्जियों में 60%, दालों में 15% से ज्यादा इजाफा हुआ।
2013 से 2019 तक उपभोक्ता महंगाई दर
साल |
उपभोक्ता महंगाई दर (सीपीआई) |
2019 |
3.5 |
2018 |
3.6 |
2017 |
4.5 |
2016 |
4.9 |
2015 |
5.9 |
2014 |
9.4 |
2013 |
9.9 |
भारत में साल 2013 में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स(सीपीआई) ने होलसेल प्राइस इंडेक्स को रिप्लेस किया। इससे पहले डब्ल्यूपीआई महंगाई मापने का मुख्य तरीका था। भारत से पहले कई बड़े देशों में सीपीआई के जरिए ही महंगाई का पता लगाया जाता है।
आम आदमी पर क्या असर : मान लीजिए आपकी कमाई 100 रुपए है और आप 60 रुपए घर पर खर्च करते हैं। लेकिन महंगाई 10% बढ़ गई, तो आपके घर का खर्च 66 रुपए हो गया। लेकिन, कमाई नहीं बढ़ी तो आपकी बचत कम हो गई।
रोजगार: दोनों सरकार असफल, भाजपा के शासन में रोजगार कम
यूपीए-2 के शुरुआती साल में बेरोजगारी की दर 2% थी। वहीं 2011-12 में एनएसएस की 68वीं रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी 2.2% पहुंच गई। श्रम ब्यूरो के अनुसार 2013-14 में बेरोजगारी दर बढ़कर 3.4% पहुंच गई। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के मुताबिक 2009 में एक करोड़ 78 लाख लोग पब्लिक सेक्टर में कार्यरत थे, वहीं प्राइवेट में यह संख्या एक करोड़ दो लाख से ज्यादा थी। यूपीए की तुलना में एनडीए सरकार में बेरोजागारों की संख्या बढ़ी है। श्रम ब्यूरो की वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी दर 3.7% थी। वहीं 2017-18 में बेरोजगारी दर करीब 2.5% बढ़कर 6% पर पहुंच गई।
क्या है सीपीआई और डब्ल्यूपीआई
कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ऐसा तरीका है जिसके जरिए आम वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों का औसत निकाला जाता है। इसमें उपभोग की चीजों का पता करने के लिए अलग-अलग कैटेगरी और सब कैटेगरी होती हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स यानी थोक मूल्य सूचकांक वस्तुओं की थोक कीमतों में बदलाव का इंडेक्स है।
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