Monday, 4th August 2025

असम / ट्रांसजेंडर जज की याचिका- एनआरसी में 'अन्य' का कॉलम नहीं, दस्तावेज के अभाव में थर्ड जेंडर के 2000 लोग लिस्ट से बाहर

Tue, Jan 28, 2020 12:59 AM

 

  • असम की पहली ट्रांसजेंडर जज स्वाति बिधान ने कहा- जरूरी दस्तावेज न होने की वजह से ज्यादातर ट्रांसजेंडर लिस्ट से बाहर
  • एनआरसी के आवेदन में "अन्य' जेंडर का जिक्र नहीं, यह खुद की लैंगिक पहचान चुनने के अधिकार का उल्लंघन- स्वाति बिधान

 

नई दिल्ली. असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) से करीब 2000 ट्रांसजेंडरों को बाहर रखने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। असम की पहली ट्रांसजेंडर जज जस्टिस स्वाति बिधान बरुआ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कहा कि असम में एनआरसी लागू करते समय ट्रांसजेंडरों के लिए कोई अलग कैटेगरी नहीं बनाई गई। एनआरसी के आवेदन में 'अन्य' कैटेगरी शामिल न होने की वजह से ट्रांसजेंडरों को महिला या पुरुष के तौर अपनी पहचान बताने को बाध्य किया गया।

याचिका में यह भी कहा गया कि राज्य के ज्यादातर ट्रांसजेंडर एनआरसी से बाहर ही रह गए, क्योंकि उनके पास सूची में शामिल होने के लिए जरूरी माने गए 1971 से पहले के दस्तावेज नहीं थे। याचिका पर सोमवार को चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।

ट्रांसजेंडर को समान अधिकार

संसद ने पिछले साल 26 नवंबर को 'ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण कानून, 2019' को मंजूरी दी थी। इस कानून में ट्रांसजेंटरों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक उत्थान के लिए जरूरी उपाय करने का उल्लेख था। राष्ट्रपति ने इसे 5 दिसंबर को मंजूरी दी थी। इस कानून में ट्रांसजेंडर लोगों के साथ किसी भी तरह के भेदभाव पर पाबंदी लगाई गई है। इसमें किसी को भी अपना जेंडर निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि रोजगार देने के मामले में ट्रांसजेंडरों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होगा। उनकी नियुक्ति, पदोन्नति और अन्य मुद्दों पर भी जेंडर आधारित भेदभाव से परे होकर निर्णय लेना होगा।

असम में एनआरसी की अंतिम सूची जारी

असम में एनआरसी की आखिरी सूची शनिवार 31 अगस्त को जारी हुई थी। अंतिम सूची में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों में से 3.11 करोड़ लोगों को भारत का वैध नागरिक नहीं माना गया। करीब 19 लाख लोग इस सूची से बाहर हैं। जिन लोगों के नाम लिस्ट में नहीं थे, उन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करने का मौका दिया गया। अंतिम सूची में उन लोगों के नाम शामिल किए गए, जो 25 मार्च 1971 के पहले से असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं। इस बात का सत्यापन सरकारी दस्तावेजों के जरिए किया गया।

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