Monday, 9th June 2025

बेहमई हत्याकांड / 39 साल बाद आज फैसला आ सकता है; फूलन ने 35 साथियों के साथ 26 लोगों पर 5 मिनट में सैकड़ों गोलियां दागी थीं

Sat, Jan 18, 2020 10:01 PM

 

  • 14 फरवरी 1981 को फूलन और उसके 35 साथियों ने बेहमई गांव में 26 लोगों को गोली मारी थी, 20 की मौत हुई
  • बेहमई कांड में 6 जनवरी को फैसला आना था, लेकिन आरोपियों के वकील ने दलीलों के लिए याचिका दाखिल कर दी थी

 

कानपुर. कानपुर देहात के बेहमई गांव में 39 साल पहले हुए हत्याकांड में सेशन कोर्ट शनिवार को फैसला सुना सकती है। पहले इसमें 6 जनवरी को फैसला आना था, लेकिन तब बचाव पक्ष ने दलीलें पेश करने के लिए कोर्ट से वक्त मांग लिया। कोर्ट ने फैसले की तारीख 18 जनवरी तय की और दलीलें रखने के लिए वकीलों को 16 जनवरी तक का समय दिया गया।

14 फरवरी 1981 को फूलन ने अपने 35 साथियों के साथ बेहमई के 26 लोगों पर 5 मिनट में सैकड़ों गोलियां बरसाईं थीं। इनमें से 20 की मौत हो गई थी। फूलन ही मुख्य आरोपी थी, लेकिन मौत के बाद उसका नाम हटा दिया गया। इसके बाद 5 आरोपियों श्याम बाबू, भीखा, विश्वनाथ, पोशा और राम सिंह पर केस चलाया गया। इसमें से राम सिंह की 13 फरवरी 2019 को जेल में मौत हो गई। पोशा जेल में है। तीन आरोपी जमानत पर हैं।

फूलन ने 1983 में आत्मसमर्पण किया, 2001 में हत्या हो गई
बेहमई हत्याकांड की मुख्य आरोपी फूलन देवी थी। उसने 1983 में मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया था। 1993 में फूलन जेल से बाहर आई। इसके बाद मिर्जापुर लोकसभा सीट से दो बार सपा के टिकट पर सांसद बनी। 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन की दिल्ली में हत्या कर दी थी। इसके बाद फूलन का नाम केस से हटा दिया गया।


इस केस में इतनी देरी क्यों हुई?

  • डीजीसी राजू पोरवाल बताते हैं कि 14 फरवरी 1981 को मुकदमा दर्ज हुआ। घटना के बाद बड़े स्तर पर कार्रवाई हुई। एनकाउंटर हुए और कई डकैत ऐसे गिरफ्तार हुए, जिनका नाम बेहमई कांड की एफआईआर में नहीं था। तब शिनाख्त करवाई गई। गवाहों को जेलों में ले जाकर पहचान करवाई गई।
  • शिनाख्त के आधार पर एक के बाद एक आरोप पत्र दाखिल होते रहे। उसमें लंबा समय लगा।
  • ट्रायल की यह प्रक्रिया है कि जब तक सभी आरोपी नहीं इकठ्ठा होंगे, तब तक आरोप तय नहीं होंगे। कभी कोई गायब रहता, कभी कोई बीमार या कभी किसी तारीख पर किसी आरोपी की मौत की खबर आ जाती थी। कई ऐसे भी आरोपी रहे, जिनके बारे में जानकारी तो मिली, लेकिन वे फरार हो गए।
  • पोरवाल ने कहा- 2012 में यह केस मेरे पास आया। आरोपियों की फाइल अलग करवाई और फरार लोगों की संपत्ति की कुर्की की करवाई। 5 आरोपियों के खिलाफ अगस्त 2012 में आरोप तय हुए। तब तक 33 साल बीत चुके थे। गवाहों को लाना और जिरह कराना भी मुश्किल था।

कई आरोपियों की शिनाख्त नहीं, किसी के खिलाफ सबूत नहीं मिले

एडवोकेट गिरीश नारायण दुबे ने कहा- पूरे मामले कुल 35 आरोपी थे। इनमें से 11 का एनकाउंटर हुआ था। 15 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई थी। फूलन कभी पकड़ी नहीं गईं। उन्होंने खुद ही सरेंडर किया था। घटना के बीस साल बाद फूलन की हत्या हो गई थी। इसके अलावा 8 आरोपियों में किसी के खिलाफ फाइनल रिपोर्ट दाखिल हुई तो किसी के खिलाफ सबूत नहीं मिले या शिनाख्त ही नहीं हुई। इस वजह से वह बरी होते गए। 2012 में जिन 15 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होनी थी, उनमें से कई की मौत हो चुकी थी तो कुछ फरार चल रहे थे। ऐसे में जो कोर्ट में उपस्थित हुआ, उस पर ट्रायल शुरू किया गया।

40 बीघा जमीन के लिए फूलन बनी थी बैंडिट क्वीन
फूलन के पिता की 40 बीघा जमीन पर चाचा मैयाराम ने कब्जा किया था। 11 साल की उम्र में फूलन ने चाचा से जमीन मांगी। इस पर चाचा ने फूलन पर डकैती का केस दर्ज करा दिया। फूलन को जेल हुई। वह जेल से छूटी तो डकैतों के संपर्क में आई। दूसरे गैंग के लोगों ने फूलन का गैंगरेप किया। इसका बदला लेने के लिए फूलन ने बेहमई हत्याकांड को अंजाम दिया। इसी वारदात के बाद फूलन बैंडिट क्वीन कहलाने लगी। हालांकि, जिस जमीन के लिए फूलन बैंडिट क्वीन बनी.. वह उसके परिवार को आज भी नहीं मिल सकी है।

Comments 0

Comment Now


Videos Gallery

Poll of the day

जातीय आरक्षण को समाप्त करके केवल 'असमर्थता' को आरक्षण का आधार बनाना चाहिए ?

83 %
14 %
3 %

Photo Gallery