नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में संचार माध्यमों पर प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इंटरनेट एक्सेस दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का बुनियादी हक है। इंटरनेट अनिश्चितकाल तक के लिए बंद नहीं किया जा सकता। प्रशासन इस पर लगाई गई सभी पाबंदियों की एक हफ्ते में समीक्षा करे और सभी पाबंदियों का आदेश सार्वजनिक करे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, ‘‘स्कूल-कॉलेज और अस्पताल जैसी जरूरी सेवाओं वाले संस्थानों में इंटरनेट बहाल किया जाना चाहिए। अलग-अलग विचारों को दबाने के हथकंडे के तौर पर धारा 144 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हम कश्मीर में सुरक्षा के साथ-साथ मानवाधिकार और स्वतंत्रता के बीच संतुलन साधने की कोशिश करेंगे।’’ कोर्ट ने प्रशासन को फटकार लगाते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा लागू करते समय दिमाग का इस्तेमाल और अनुपात के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
‘नागरिकों को बराबर अधिकार मिलें’
जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने मामले पर फैसला सुनाया। जस्टिस रमना ने चार्ल्स डिकन्स की टेल ऑफ टू सिटीज का जिक्र करते हुए फैसले की शुरुआत की। उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर ने हिंसा का लंबा इतिहास देखा है। हम यहां मानवाधिकार और सुरक्षा के मद्देनजर आजादी के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करेंगे। यह कोर्ट की जिम्मेदारी है कि देश के सभी नागरिकों को बराबर अधिकार और सुरक्षा तय करे। लेकिन ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता और सुरक्षा के मुद्दे पर हमेशा टकराव रहेगा।’’
अभिव्यक्ति की आजादी में ही इंटरनेट की स्वतंत्रता भी निहित
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, ‘‘अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की आजादी में इंटरनेट का अधिकार भी आता है, तो अनुच्छेद 19(2) के तहत इंटरनेट पर प्रतिबंध के मामले में समानता होनी चाहिए। बिना वजह इंटरनेट पर रोक नहीं लगानी चाहिए। स्वतंत्रता पर तभी रोक लगाई जा सकती है, जब कोई विकल्प न हो और सभी प्रासंगिक कारणों की ठीक से जांच कर ली जाए। इंटरनेट को एक तय अवधि की जगह अपनी मर्जी से कितने भी समय के लिए बंद करना टेलीकॉम नियमों का उल्लंघन है।’’
धारा 144 लगाने के मुद्दे पर जस्टिस रमना ने कहा कि यह सिर्फ इमरजेंसी हालात देखते हुए ही लगानी चाहिए। सिर्फ असहमति इसे लगाने का आधार नहीं हो सकता। लोगों को असहमति जताने का हक है।
गुलाम नबी आजाद समेत कई लोगों ने याचिका दायर की थी
जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा को हटाए जाने के बाद राज्य मेें इंटरनेट सेवाओं के साथ-साथ टेलीफोन सेवाओं और अन्य संचार माध्यमों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जिसके खिलाफ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन समेत कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
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