भिलाई. दृष्टि बाधित रुक्मिणी सेन। आज नेट और स्लेट सफल हैं। छत्तीसगढ़ के रायपुर और दुर्ग जिले के विकास में महिलाओं की भूमिका पर शोध कर रही हैं। लक्ष्य है सहायक प्राध्यापक बनना। इस दिशा में वह आगे बढ़ रही हैं, लेकिन सफर आसान नहीं रहा। ऐसा भी क्षण आया जब छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने उन्हें दिव्यांग मानने से इनकार कर दिया था। तब उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली। आज वह न केवल खुद का अधिकार हासिल करने में सफल है, बल्कि प्रदेशभर के सभी दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए पीएससी में सीटें सुरक्षित करा ली हैं।
छग लोक सेवा आयोग ने जनवरी 2019 में सहा. प्राध्यापकों के रिक्त 1384 पदों पर चयन के लिए आवेदन आमंत्रित किया। इसमें फिजिकल हैंडीकैप उम्मीदवारों के लिए पद सुरक्षित रखे गए। दृष्टिबाधित उम्मीदवारों का मुद्दा रखे जाने पर 23 फरवरी 2019 को शुद्धि पत्र जारी कर फिजिकल हैंडीकैप को 13 विषयों में और दृष्टि बाधित को सिर्फ दो विषयों में 5 सीटों की पात्रता दी।
हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार सभी विषयों में फिजिकल हैंडीकैप के साथ दृष्टि बाधित उम्मीदवारों के लिए अलग से पद सुरक्षित रखे गए हैं। इसी वजह से पीएससी ने सभी उम्मीदवारों से पुन: 10 से 20 जनवरी के बीच आवेदन मंगाए हैं। जो पहले से आवेदन कर चुके हैं, उन्हें पुन: आवेदन नहीं करना पड़ेगा। 20 के बाद सहा. प्राध्यापकों की नियुक्ति के संबंध में आगे प्रक्रिया होगी। इससे उन सभी उम्मीदवारों को राहत मिलेगी, जो किसी न किसी कारणवश पहले आवेदन नहीं कर पाए हैं।
मैं सुन सुनकर पढ़ाई करती हूं। लेक्चर को मोबाइल में रिकार्ड कर लेती हूं। घर जाकर उसे सॉफ्टवेयर में डालकर देवनागरी लिपि में कन्वर्ट कर लेती हूं। माता-पिता गांव में रहते हैं। रायपुर हीरापुर स्थित प्रेरणा संस्था में रहती हूं। यहां रहकर शोध कर रही हूं। मेरे गाइड डॉ. अनिल कुमार पांडेय हैं। पीएससी के खिलाफ कार्रवाई में अधिवक्ता एसके रूंगटा का विशेष सहयोग रहा। लड़ाई में सभी दृष्टि बाधित दिव्यांग साथियों की भी सहायता मिली। इसलिए सभी को अधिकार दिला सकी।
उन्होंने बताया कि बचपन से सिर्फ काला रंग को जाना। पढ़ने में शुरू से तेज रही। 5वीं, 8वीं और 12वीं में अपने वर्ग में टॉप किया। ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन में सफलता प्रथम श्रेणी में मिली। खैरागढ़ संगीत विवि से संगीत (गायन) में विशारद की उपाधि ली। सहायक प्राध्यापक बनने प्री-पीएचडी दी। सफल रहीं। पर गाइड के पास सीटें नहीं थीं। यह परीक्षा सिर्फ दो साल के लिए मान्य था। ऐसे में उसे फिर से परीक्षा देनी पड़ सकती थी। प्रकरण लेकर कुलपति डॉ. शिवकुमार पांडेय से भीड़ गईं।
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