Tuesday, 10th June 2025

गुजरात-झारखंड / संसाधनों की कमी-लापरवाही से राजकोट में 1 महीने में 111 नवजातों की मौत, रांची में एक साल में 1150 बच्चों की जान गई

Sun, Jan 5, 2020 7:50 PM

 

  • राजकोट के सिविल अस्पताल में एनआईसीयू में क्षमता कम होने की वजह से डेढ़ किलो से कम वजन वाले नवजात जिंदा नहीं बच पाते
  • राजकोट की घटना पर गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने कहा- जांच के बाद ही सही जानकारी दे सकता हूं
  • रांची के सरकारी अस्पताल रिम्स में हर महीने औसतन 96 बच्चों की मौत हुई, मैन पावर की कमी और मशीनों की किल्लत मौत की वजह
  • झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दैनिक भास्कर की खबर ट्वीट करते हुए लिखा- राज्य की स्थिति में बदलाव होगा

 

राजकोट/रांची. गुजरात के राजकोट में एक सरकारी अस्पताल में पिछले एक महीने में 111 बच्चों की मौत हो चुकी है। सिविल अस्पताल के चिल्ड्रन हॉस्पिटल की हालत इतनी खराब है कि मरने वाले सभी बच्चे नवजात थे। यहां बच्चों की इंटेसिव केयर यूनिट ‘एनआईसीयू’ में तो ढाई किलो से कम वजन वाले बच्चों को बचाने की सुविधा तक नहीं है। दूसरी तरफ झारखंड के रांची में स्थित सरकारी अस्पताल रिम्स में पिछले एक साल में 1150 बच्चों की इलाज के दौरान मौत हुई। संसाधनों की कमी, मशीनों की किल्लत और रिम्स प्रबंधन के उदासीन रवैये की वजह से हर महीने औसत 96 बच्चों की मौत हुई। सबसे ज्यादा 124 मौतें सितंबर महीने में हुईं। 

गुजरात:
राजकोट सिविल अस्पताल में दिसंबर में 386 बच्चे भर्ती हुए, 111 की मौत हुई
यहां के सिविल अस्पताल में 111 बच्चों में से 96 प्री-मैच्योर डिलीवरी से हुए थे और कम वजन वाले थे। इनमें से 77 का वजन तो डेढ़ किलो से भी कम था। चिकित्सा अधीक्षक ने कहा कि बच्चों के अस्पताल में एक एनआईसीयू है, लेकिन इसमें डेढ़ किलो वजन वाले बच्चों को बचाने की क्षमता और सुविधा नहीं है। डॉक्टरों के मुताबिक, गांव क्षेत्र में कई बच्चों की डिलिवरी घर पर ही हो जाती है। ऐसे में जब तक बच्चों को अस्पताल लाया जाता है, तब तक उनकी हालत बहुत बिगड़ चुकी होती है। 

दिसंबर में 386 बच्चे भर्ती हुए, इनमें 111 की मौत हुई
सिविल अस्पताल में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक, अस्पताल में 2018 में 4321 बच्चों को भर्ती किया गया था। इनमें से 20.8 प्रतिशत यानी 869 की मौत हो गई। 2019 में, 4701 बच्चे भर्ती हुए और नवंबर तक 18.9% बच्चों की मौत हुई। हालांकि, दिसंबर महीने में भर्ती हुए 386 में से 111 बच्चे बचाए नहीं जा सके। इसके चलते बच्चों की सामूहिक मृत्यु 28% तक पहुंच गई। 

एनआईसीयू में 2 बच्चों पर 1 नर्स की जरूरत, सिविल अस्पताल में में 10 के लिए एक नर्स
एनआईसीयू में विशेष नर्सिंग देखभाल, तापमान नियंत्रण, संक्रमण मुक्त हवा की विशेष जरूरत होती होती है। बच्चा अगर कम वजन का है, तो उसके लिए कम से कम एक नर्स और अधिकतम दो नर्स मौजूद होनी चाहिए। हालांकि, राजकोट सिविल अस्पताल में 10 नवजातों के लिए केवल एक नर्स है।

मुझे इस मुद्दे की जानकारी नहीं है, लेकिन मैं आपको इसकी जांच करने के बाद ही सही बात बता सकता हूं।
नितिन पटेल, उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री

झारखंड:
रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में बच्चों की स्थिति नाजुक

रांची स्थित रिम्स से मिले आंकड़ों के अनुसार, 2019 में जनवरी से लेकर दिसंबर तक यहां भर्ती होने वाले 1150 बच्चों की मौत हुई। संसाधनों की कमी, मरीजों की बढ़ती संख्या के चलते यहां 1 वॉर्मर पर 2-3 बीमार नवजातों को रखा जाता है। वार्मर और फोटोथेरेपी मशीन की कमी इतनी की एक-एक वार्मर पर दो से तीन बीमार नवजात को रखा जाता है, जिससे इनके आपस में ही संक्रमण का खतरा बना रहता है। रिम्स के 16 बेड वाले शिशु रोग आईसीयू में हर दो बीमार बच्चे पर एक नर्स की जरूरत होती है पर यहां 16 बेड के लिए 24 घंटे के लिए सिर्फ 9 नर्स हैं। 

प्रबंधन को कई बार समस्या दूर करने के लिए कहा गया: डॉक्टर
रिम्स अधीक्षक डॉ. विवेक कश्यप का कहना है कि अधिक संख्या में बीमार नवजात और बच्चे रिम्स पहुंचते हैं। कई गंभीर स्थिति में आते हैं, इसलिए मृत्यु दर ज्यादा है। हालांकि, रिम्स शिशु रोग विभाग में सुविधाओं की कमी है। वहीं, रिम्स शिशु विभाग के एचओडी का कहना है कि गंभीर रूप से बीमार बच्चों को देर से रिम्स पहुंचने के चलते चाहकर कई बीमार बच्चों को डॉक्टर नहीं बचा पाते हैं। कई संसाधनों की भी कमी है, जिसको दूर करने के लिए रिम्स प्रबंधन को कई बार कहा गया है।

हेमंत सोरेन ने ट्वीट की भास्कर की खबर
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने दैनिक भास्कर की खबर के साथ ट्वीट में कहा ‘झारखंड की यह स्थिति बदलेगी।'

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