भोपाल। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आज कहा कि अयोध्या में रामलला के मंदिर का निर्माण शासकीय कोष से नहीं होना चाहिए। दिग्विजय सिंह ने ट्वीट के माध्यम से कहा कि विश्व का हर हिंदू भगवान राम को ईश्वर का अवतार मानता है और मंदिर निर्माण में सहयोग करेगा। विहिप ने मंदिर निर्माण में जो चंदा उगाया, वो उसे अपने पास रखे और उसका उपयोग समाज की कुरीतियों को समाप्त करने में खर्च करे। शुक्रवार को दिग्विजय सिंह के गुरु द्वारका शारदा पीठाधीश जगद् गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने यही बात कही थी।
दिग्विजय सिंह ने रविवार को सिलसिलेवार कई ट्वीट में कहा कि रामालय ट्रस्ट में सभी शंकराचार्य और रामानंदी संप्रदाय से जुड़े अखाड़ा परिषद के सदस्य ही हैं। और जगतगुरू स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सबसे वरिष्ठ होने के नाते उसके अध्यक्ष हैं। रामालय ट्रस्ट के माध्यम से ही रामलला का मंदिर निर्माण होना चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान राम का मंदिर हिंदुओं के धर्माचार्यों द्वारा ही बनाना चाहिए। राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित संगठनों के द्वारा नहीं। भगवान राम सबके हैं। उनकी जन्मभूमि पर निर्माण की जिम्मेदारी रामालय ट्रस्ट को ही देना चाहिए। उच्चतम न्यायालय के कुछ समय पहले आए फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा- द्वारका शारदा पीठाधीश जगद् गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने शुक्रवार को भोपाल में कहा था कि अयोध्या के राम मंदिर का निर्माण सरकार के पैसों से न होकर जनभागीदारी के रुपयों से होना चाहिए। सरकार का पैसा टैक्स और गोमांस का है। इन रुपयों से मंदिर का निर्माण नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस संबंध में हमने गृहमंत्री और राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा है। हमने उनसे मंदिर निर्माण समिति में शामिल किए जाने की मांग की है। हम पहले से मंदिर समिति में शामिल रहे हैं। इस आधार पर हमें इसमें जगह मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए सरकार से एक रुपए भी नहीं लेंगे। अगर कोई स्वेच्छा से सहयोग करना चाहेगा तो उनका स्वागत होगा।
मस्जिद को जमीन देने किया था विरोध: मस्जिद के लिए अलग से जमीन देने का विरोध करते हुए स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने कहा कि इससे हिंदू अपने आप को मस्जिद तोड़े जाने का दोषी महसूस कर रहा है। वहां मस्जिद थी ही नहीं तो उसे तोड़ने का सवाल ही नहीं उठता। इस फैसले पर दोबारा से विचार होना चाहिए। मुस्लिमों को अपनी आस्था के अनुसार धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन अयोध्या में मस्जिद बनने से यह भविष्य में विवाद का विषय बनेगा।
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