Thursday, 22nd May 2025

शिमला मिर्ची / मंझी हुई अदाकारा हेमा मालिनी की सबसे कमजोर फिल्म, न शिमला सी हसीन न मिर्च सा तीखापन

Sat, Jan 4, 2020 12:58 AM

रेटिंग 1/5
स्टारकास्ट  हेमा मालिनी, रकुल प्रीत सिंह, राजकुमार राव
निर्देशक  रमेश सिप्पी
निर्माता  रमेश सिप्पी, रोहन सिप्पी, किरण जुनेजा
म्यूजिक मीत ब्रदर्स 
जोनर कॉमेडी
अवधि 129 मिनट

बॉलीवुड डेस्क.  हिंदी सिने इतिहास के हस्ताक्षर नामों में से एक रमेश सिप्पी की 20 सालों बाद बतौर डायरेक्टर इस फिल्म से वापसी हो रही है। उनके चाहने वालों को इससे खासी उम्मीदें थीं, पर इसने उस पर पानी फेर दिया है। टाइटल के अनुसार यह तीखी तो कतई नहीं साबित हो पाई। यकीन नहीं हुआ कि अपने जमाने में लकदक फिल्में बनाने वाले रमेश सिप्पी ने इसे डायरेक्ट किया है। वह भी तब, जब इसमें उनके जमाने की उनकी फेवरेट हेमा मालिनी मौजूद हैं। आज के जमाने के फेवरेट राजकुमार राव और रकुल प्रीत सिंह की जोड़ी है।

नहीं चला हेमा का जादू : हेमा मालिनी को रमेश सिप्पी ने 'शोले' से लेकर सीता और गीता' में दिलचस्प और मजबूत किरदार दिए थे। यहां बतौर रुक्मिणी ऐसी भूमिका थमाई, जो लेष मात्र भी इंप्रेसिव नहीं है। लाउड और मेलोड्रैमेटिक है। अपनी बेटी नैना की उम्र के युवक अभि के प्यार में पड़ी रुक्मिणी के रोल में मंझी हुई अदाकारा हेमा मालिनी की यह सबसे कमजोर फिल्म है।

रमेश सिप्पी ने कहानी को आज की तारीख में प्रासंगिक बनाने के लिए कौसर मुनीर, ऋषि विरमानी, विपुल मिनजोला की टीम बनाई। शिमला के खूबसूरत लोकेशन में सेट किया। मगर अभि (राजकुमार राव), रुक्मिणी (हेमा मालिनी), दादी (कमलेश गिल) नैना (रकुल प्रीत सिंह) से लेकर कैप्टन अंकल (शक्ति कपूर) और अभि के परिवार वालों बुआ (किरण जुनेजा) में से एक भी किरदार दिलचस्प नहीं बन पाए।

यह मूल रूप से कॉमेडी फिल्म है। तिलक (कंवलजीत सिंह) से तलाक की दहलीज पर खड़ी रुक्मिणी की बेटी नैना अपनी मां की जिंदगी में खुशी के रंग भरना चाहती है। यह रंग वह अभि के प्यार के तौर पर भरना चाहती है, जो नैना की उम्र का है। नैना से प्यार करता है,  मगर इजहार नहीं कर पा रहा। वह जो कुछ कहना भी चाह रहा,  उसे नैना समझ नहीं पा रही। अभि को दिल दे चुकी रुक्मिणी फिर सबके जीवन में क्या रंग भरती है, फिल्म उस बारे में है।

ऐसी कहानियों में किरदारों की वाकपटुता की दरकार होती है। बुजुर्ग का अपने बच्चों की उम्र से प्यार में पड़ने की ठोस वजह जरूरी होती है। कॉमेडी से हंसी की अंतहीन परिस्थितियां पैदा करने की संभावनाएं करनी होती हैं। इन सबसे यह फिल्म कोसों दूर है। गीत-संगीत से लेकर शिमला की खूबसूरती और लोगों के जज्बात तक सही से कैप्चर नहीं हुए हैं। यह खुमारी में बनी हुई फिल्म साबित हुई है। जिसे देखकर अफसोस होता है।

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