दंतेवाड़ा . दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, बस्तर और बीजापुर इन 5 जिलों को जोड़ने की सीमा करीब 22 सालों से सील पड़ी है, सीमा सरकार ने नहीं बल्कि नक्सलियों ने सील कर रखी है। जिसे सड़क के ज़रिए तोड़ने का काम किया जा रहा है। लेकिन इसे तोड़ना भी आसान नहीं, बल्कि हर दिन सीआरपीएफ 195वी बटालियन अपनी जान को हथेली पर लेकर निकलते हैं। दो सालों से सिलसिला यही चल रहा। कदम- कदम पर खतरा है। साल 2020 के आखरी तक सड़क निर्माण पूरा कराने का टारगेट लेकर काम किया जा रहा है। यदि योजना के मुताबिक काम होता है तो इसी साल पांच जिले आपस में जुड़ेंगे, गांवों में विकास होगा। नक्सलियों के पैर उखाड़ने इस साल इलाके में ऑपरेशन भी लांच होंगे।
बस्तर पहुंचे विशेष सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार ने भी मुख्य तौर पर इस इलाके के बारे में विस्तृत जानकारी अफसरों से ली थी। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब 200 मीटर के दायरे में ही 20 दिनों में नक्सलियों ने 4 आईईडी लगाई। दो मजदूर आईईडी ब्लास्ट से घायल हुए, आईईडी की चपेट में आते खुद टूआइसी कुमार सौरभ, एसी आशीष मिश्रा व इनकी टीम बची है। इनकी सतर्कता से आईईडी को निकाला गया। इसके पहले भी एक जवान की शहादत व एक घायल हुआ था। सीआरपीएफ 195 बटालियन के प्रभारी सीओ कुमार सौरभ बताते हैं कि अभी पुसपाल से बोदली के बीच सड़क बन रही है। इस साल इस क्षेत्र में बहुत से काम होंगे।
एक पत्थर रख व हटा पाना भी बहुत मुश्किल
अरनपुर- जगरगुंडा के बाद 5 जिलों को जोड़ने वाली सबसे मुख्य सड़क है। हर दिन पुसपाल सीआरपीएफ 195 बटालियन कैम्प से 100 जवान एक साथ निकलते हैं, बम का पता लगाते हैं, तब जाकर यहां मजदूर एक पत्थर रख व हटा पाते हैं। सीएएफ के जवानों का भी सहयोग है।
और जब कैंप खुलते ही हुआ था हमला
4 जनवरी 2018 को पुसपाल में सीआरपीएफ 195 बटालियन का कैम्प खुला था। 17 जनवरी की रात को नक्सलियों ने कैम्प पर हमला किया था। कैम्प के अंदर ही 5 आईईडी भी ब्लास्ट हुए थे।
इधर, सीमावर्ती गांव नक्सलियों के कब्जे में
इस क्षेत्र में 5 जिलों की सीमा लगती है। कई गांव ऐसे हैं, जिसके खुद के राजस्व, पुलिस ज़िला अलग- अलग हैं। वजह यही है इन सीमावर्ती गांवों में बसे 25 से ज़्यादा गांवों की बड़ी आबादी विकास को तरसती है। इसे नक्सलियों ने अपने कब्जे में ले रखा है।
ऐसे टूटेगा नक्सलियों का संपर्क
इंद्रावती नदी पार गांव कौशलनार, मंगनार के इलाके में नक्सलियों की बैठकें होती है। यहां से कुर्सिनार, हितावाड़ा, गुफा, तोड़मा के रास्ते बाकेली, कचनार तक नक्सली पहुंचते हैं। कचनार नक्सलियों का मुख्य जंक्शन कहा जाता है। यहां से बोदली या पुसपाल मालेवाही के रास्ते एरपुण्ड, हर्राकोडर, पिच्चिकोडेर, अमलीडीह, भटपाल, बेंगलूर में बैठकें लेते हैं। पुसपाल में कैम्प खुलने के बाद अफसरों का दावा है, नक्सलियों का ये रास्ता कमज़ोर पड़ा है। बोदली कैम्प खुलते ही नक्सलियों की आफत और बढ़ जाएगी।
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