धार (राजीव तिवारी) . मांडू को प्रेम और संगीत की नगरी कहा जाता है। यहां के कण-कण में संगीत है तो यहां की हवाओं में रानी रूपमति और बाजबहादुर के प्रेम की कहानी। यहां विंध्य पर्वत पर करीब 2000 फीट की ऊंचाई पर आदिवासी संस्कृति, मालवा का संगम और ट्रैकिंग का रोमांच है। इंडो-फारसियन वास्तुकला भी है। मांडू की वास्तुकला के कायल जहांगीर ने इसे शादिया बाद नाम देते हुए लिखा था- मांडू वास्तुकला और नैसर्गिक सौंदर्य में भारत की अन्य वास्तुकलाओं में श्रेष्ठ है। मांडू उत्सव के मौके पर दैनिक भास्कर आपको बता रहा है उन रानी रूपमति की कहानी, जिनके शौर्य के आगे शहंशाह अकबर भी हार गए थे।
मांडू को नजदीक से जानने वाले, इतिहासकार और सीनियर गाइड विश्वनाथ तिवारी बताते हैं- रूपमति का जन्म धार जिले के धरमपुरी में जमींदार थान सिंह के घर हुआ था। उनके जन्म को लेकर कहा जाता है कि थान सिंह के यहां कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने मां नर्मदा से संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगी, जिसके बाद उनके घर एक बहुत ही खूबसूरत बेटी का जन्म हुआ। जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती गई, उसका रुझान गायन और वादन की ओर बढ़ता गया। क्योंकि धरमपुरी के समीप नर्मदा नदी है और बिल्वेश्वर महादेव भी यहां विराजित हैं। इसलिए दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन को आते और भजन कीर्तन करते थे। रूपमति उनके साथ शामिल हो जातीं और गायन-वादन करती थीं।
चंदेरी के राजा ने भेजा था शादी का प्रस्ताव
बेटी का संगीत के प्रति रुझान देख पिता ने उन्हें संगीत की तालीम दिलाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनकी गायकी के चर्चे चारों ओर होने लगे। उनके गायन-वादन के कायल चंदेरी के राजा मान सिंह ने रूपमति से शादी का प्रस्ताव भिजवा दिया, लेकिन समय-सीमा निर्धारित नहीं हो पाने के कारण शादी नहीं हो सकी।
शिकार के बहाने रूमपति का गायन सुनने पहुंच थे मांडू के सुल्तान
मांडू के सुल्तान बाजबहादुर खुद बहुत बड़े संगीतज्ञ थे। जब उन्हें रूपमति के गायन-वादन की चर्चा सुनी तो वे शिकार के बहाने धमरपुरी पहुंचे और यहां उनके गायन को सुना और अपना दिल दे बैठे। गायन खत्म होने के बाद उन्होंने रूपमति के समक्ष दरबार में गायकी करने का अनुराेध किया। उनके प्रस्ताव को उन्होंने मान लिया, लेकिन साथ ही कहा कि वे प्रतिदिन मां नर्मदा के दर्शन करती हैं, इसलिए आपके यहां कोई ऐसी व्यवस्था हो, जहां से मां नर्मदा को वे नमन कर सकें। बाज बहादुर ने उनके आग्रह को स्वीकार किया और उनके लिए 2000 फीट ऊंचाई पर रूपमति मंडप का निर्माण करवाया। इससे वे प्रतिदिन मां नर्मदा के दर्शन करती थीं।
ऐसे हुआ था प्रेम कहानी का अंत
तिवारी के अनुसार रानी रूपमती जितनी ही खूबसूरत थीं, उनकी आवाज उससे भी ज्यादा सुरीली थी। रानी के सौंदर्य और गायन-वादन की चर्चा जब शहंशाह अकबर तक पहुंची तो वे उनसे मन ही मन प्रेम कर बैठे। उन्होंने बाजबहादुर के नाम एक पत्र भिजवाया, जिसमें रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजने की बात कही। अकबर का यह पत्र पढ़कर बाजबहादुर गुस्से से लाल हो गए और उन्होंने अकबर को पत्र का जवाब देते हुए लिखा कि वह अपनी रानी को वे यहां भेज दें।
अकबर से युद्ध में हार गए थे बाज बहादुर
बाज बहादुर का खत पढ़कर शहंशाह अकबर आगबबूला हो उठे। बाजबहादुर के खत से तमतमाए अकबर ने सिपहसालार आदम खां को मालवा पर आक्रमण करने का हुक्म दिया। इस बीच बाज बहादुर और अकबर की सेना में युद्ध हुआ। इसमें बाज बहादुर की हार हो गई। यह जानकारी लगते के बाद रूपमती ने हीरा निगल कर अपनी जीवन समाप्त कर ली। यहां भागकर बाज बहादुर मेवाड़ पहुंचे। उनके बारे में पता चलने पर अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुलाया। बाज बहादुर ने अकबर के दरबार में लंबे समय तक गायन किया।
बाजबहादुर 'आशिक-ए-सादिक' रानी रूपमति 'शहीदे ए वफा'
बीमार बाजबहादुर ने अकबर से रानी रूपमति के पास वापस सारंगपुर जाने की इच्छा जाहिर की। अकबर ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए सारंगपुर भिजवा दिया। यहां बाज बहादुर ने रूपमती की मजार के पास आखिरी संास ली। दो प्रेमियों को अलग करने की बात ने अकबर को बेचैन कर दिया और उन्होंने सारंगपुर के नजदीक 1568 में मकबरा बनवाया। अकबर ने बहादुर के मकबरे पर 'आशिक ए सादिक' और रानी रूपमति की समाधि पर 'शहीदे ए वफा' लिखवाया।
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