भोपाल। मुरैना जिले में बटेश्वर मंदिर समूह की खोज के बाद जब यहां काम शुरू करना था, तो कोई भी मदद को तैयार नहीं था। मैं डाकू निर्भय गुर्जर से मिलने गया और उनसे कहा कि मंदिर बनाने आया हूं आपकी परमिशन चाहिए। उसके बाद यह तथ्य दुनिया के सामने है कि बटेश्वर मंदिर समूह जैसा व्यापक पुरातात्विक संरक्षण का काम आजादी के बाद हिंदुस्तान भर में कहीं नहीं हुआ।
जब तक बागी निर्भय गुर्जर जिंदा रहा, तभी तक तेजी से एक-एक कर करीब 100 मंदिर खड़े होते चले गए। लेकिन जैसे ही उसकी मौत हुई, उसके छह महीने बाद ही खनन माफिया सक्रिय हो गया और बने हुए मंदिर तक टूटने लगे। जब सरकारें भी खनन माफिया को नहीं रोक पाई, तो 2005 में तत्कालीन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख केसी सुदर्शन को चिट्ठी लिखी। 24 घंटे के अंदर एक्शन हुआ।
मंदिरों को फिर से गिरना तो रुक गया, लेकिन मेरी नौकरी खतरे में आ गई। उस वक्त तमाम मीडिया संस्थान खासतौर से आईबीएन-7 और दैनिक भास्कर ने खुलकर मेरे पक्ष में लिखा और दिखाया भी.... लेकिन किसी भी सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि मुझ पर कार्रवाई कर सके। न तो मेरा सस्पेंशन हुआ, न ही डिसमिस किया गया, लेकिन कॉमनवेल्थ प्रोजेक्ट में मेरा चयन कर यहां से हटा दिया गया। आज भी बटेश्वर मंदिर समूह का काम अधूरा पड़ा हुआ है। इसी तरह जब भोजपुर मंदिर का काम शुरू किया तो, एएसआई के पास इतना बजट ही नहीं था, मैंने वहां के महंत जी से बात की। भोजपुर मंदिर के चारों ओर बने गार्डन के लिए सारी मिट्टी महंत जी ने हमें मुफ्त में उपलब्ध कराई।
1858 के बाद दुनिया ने माना बुद्ध को भारतीय
भारत में जब तक पुरातात्विक शोध शुरू नहीं हुए तब तक भारतीय सभ्यता के 6वीं शताब्दी से पहले के प्रमाण नहीं मिल रहे थे। दुनिया की तरह हम भी खुद को इतना ही पुराना मानने लगे। लेकिन 1954 आते-आते यह दुनिया मान चुकी थी कि भारत 2500 साल पुरानी सभ्यता है। 1858 से पहले यूरोप और पश्चिमी दुनिया महान बुद्ध को अफ्रीकी या इजिफ्थियन मान रहे थे, क्योंकि प्रतिमाओं में उनके बाल घुंघराले (कर्ली) थे, जो अफ्रीकन नीग्रो नस्ल के लोगों के होते हैं। लेकिन जब प्राकृत ग्रंथों का अनुवाद फ्रेंच और बाद में अंग्रेजी में हुआ तो उसमें वर्णित स्थान दुनिया में कहीं नहीं मिले, सिवाए भारत के। इसके बाद दुनिया ने स्वीकार किया कि बुद्ध भारत में हुए।
हमीदिया में विवादित ढांचा विवाद पर
हमीदिया अस्पताल में विवादित ढांचे या शिलालेख से जुड़े विवाद को राज्य सरकार को पालकर नहीं रखना चाहिए। सरकार को एक एक्सपर्ट कमेटी बनाकर विवादित स्थल का परीक्षण कराना चाहिए। विशेषज्ञों की राय और कानून के मुताबिक फैसला लेकर इसका समाधान करना चाहिए, यही भोपाल व यहां की जनता के हित में है। गौरतलब है कि वर्ष 2017 में पुराने भवन की तुड़ाई के दौरान प्रथम विश्वयुद्ध से जुड़े अंग्रेजी में लिखे एक शिलालेख मिलने के बाद इसे धर्म स्थल समझे जाने के कारण विवाद खड़ा हो गया था। तभी से भवन का एक जर्जर हिस्सा पुलिस निगरानी में है।
ताजमहल या तेजो महालय विवाद पर
मैं आगरा में पदस्थ रहा हूं। मेरी समझ से वह पूर्णत: मुगलकालीन स्थापत्य है। कुछ अतिवादी हिंदू समूह उसे मंदिर बताते हैं, मैं उनसे कतई सहमत नहीं हूं।
यह भी कहा - हम इतिहास में जाकर सारी गलतियों को तो ठीक नहीं कर सकते
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